
What Is Dyssomnia And How To Deal With It In Hindi: डिस्सोम्निया एक तरह की नींद न आने की समस्या है। विशेषज्ञों की मानें, तो डिस्सोम्निया सामान्य स्थितियों का एक समूह है, जो नींद की क्वालिटी को इफेक्ट करती है। इसके साथ ही, डिस्सोम्निया के कारण आपकी नींद लेने का टाइम पीरियड भी प्रभावित होता है। जब किसी की नींद डिस्टर्ब होती है या नींद की क्वालिटी कम हो जाती है, तो इसका हेल्थ पर बहुत बुरा देखने को मिलता है। इस लेख में बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के पल्मोनरी एंड स्लीप कंसल्टेंट डॉ अंकित भाटिया ने विस्तार से जानकारी दी है। आप भी इन्हें जानिए।
क्या है डिस्सोम्निया
जैसा कि पहले ही जिक्र किया गया है कि डिस्सोम्नियाएक तरह की नींद से जुड़ी समस्या है, जो एक ऐसे ग्रुप की ओर इशारा करती है, जिसमें नींद की क्वालिटी और पर्याप्त मात्रा में नींद लेने की समय में गड़बड़ी की ओर इशारा करता है। आपको बता दें कि ’डिस्सोमनिया’ शब्द ग्रीक शब्द ’डिस’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ’बुरा’ या ’कठिन’ और ’सोम्निया’, जिसका अर्थ है ’नींद’। इस बीमारी के तहत मरीज को कई दिनों तक अच्छी तरह नींद नहीं आती या अच्छी नींद आने में परेशानी महसूस करता है। इसके साथ ही, व्यक्ति का स्लीपिंग साइकिल गड़बड़ाया हुआ रहता है।
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डिस्सोम्निया के प्रकार
डिस्सोम्निया के कई प्रकार हैं, जिसमें अनिद्रा, हाइपर्सोमनिया, सर्कैडियन रिदम डिसऑर्डर, स्लीप एपनिया , रेस्टलेस लेग सिंड्रोम शामिल हैं। अब इन्हें विस्तार से समझिए।
अनिद्राः यह डिस्सोमनिया का सबसे आम प्रकार है। अनिद्रा होने पर व्यक्ति को नींद नहीं आती। अगर नींद आती है, तो वह लंबे समय तक सो नहीं पाता है।
हाइपर्सोमनियाः इस समस्या के तहत व्यक्ति दिन के समय उनींदा सा रहता है। इस समस्या की वजह से व्यक्ति को दिन भर में जागे रहने में मुश्किलें आती हैं।
सर्कैडियन रिदम डिसऑर्डरः यह एक प्रकार का डिस्सोम्निया है। यह स्थिति तब होती है, जब शरीर का बायोलॉजिकल क्लॉक (मनुष्य के अंदर मौजूद जैविक घड़ी, जो कि मस्तिष्क द्वारा संचालित होती है। हमारे मस्तिष्क में हजारों कोशिकाएं होती हैं, जिसे न्यूरोन कहा जाता है। न्यूरोन की मदद से पूरे शरीर की गतिविधियां मैनेज होती हैं) इफेक्ट होता है। इस वजह से व्यक्ति के सोने और जागने का समय फिक्स नहीं होता है।
स्लीप एपनियाः यह भी एक तरह की समस्या है, जिसकी वजह से नींद के दौरान सांस लेने में तकलीफ होती है। इस परेशानी की वजह से बार-बार नींद टूट जाती है।
रेस्टलेस लेग सिंड्रोमः इस समस्या के तहत व्यक्ति को अपने पैरों को हिलाने की तीव्र इच्छा होती है। यह इच्छा इतनी ज्यादा होती है कि व्यक्ति इसे कंट्रोल नहीं कर पाता। यहां तक कि नींद में भी वह ऐसा करने लगता है, जिससे बार-बार नींद टूटती रहती है।
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डिस्सोम्निया का प्रभाव
डिस्सोम्निया किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती है। इसकी वजह से व्यक्ति का शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। यहां तक कि उसकी रोजमर्रा की लाइफस्टाइल में इसका असर देखने को मिल सकता है। इनके लक्षणों की बात करें, तो डिस्सोम्निया के कारण व्यक्ति दिन के समय थकान महसूस करता है, उसे ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होती है और पूरा दिन वह चिड़चिड़ा रहता है। इस वजह से उसमें तनाव का स्तर बढ़ सकता है, काम करने की इच्छा कम हो जाती है, नींद या उनींदेपन की वजह से दुर्घटना होने की आशंका बढ़ जाती है।
डिस्सोम्निया का उपचार
डिस्सोम्निया के लिए उपचार उसके प्रकार और उसकी गंभीरता पर निर्भर करता है। लाइफस्टाइल में चेंजेस करके, जैसे अच्छी नींद लेकर, स्लीप साइकिल को मैनेज करके, कॉफी और शराब से दूर रहरक, अच्छी तरह रिलैक्स करके आप डिस्सोम्निया के लक्षणों को कम कर सकते हैं। वैसे, डॉक्टर आपकी स्थिति के अनुसार कुछ दवाएं या ट्रीटमेंट का सुझाव दे सकते हैं। यहां आपको बता दें कि अगर आप अच्छी तरह से सो नहीं पा रहे हैं, थका हुआ महसूस कर रहे हैं या दिन के दौरान काम करने में असमर्थ हैं, तो आपके लिए स्लीप फिजिशियन के पास जाना मददगार हो सकता है, जो आपकी स्थिति का निदान कर सकता है और उपचार के विकल्पों की सिफारिश कर सकता है।
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