Stages of HIV: भारत में AIDS को लेकर कई तरह के मिथ फैले हुए हैं। इसमें बड़ा मिथ तो यह है कि लोग अक्सर HIV को ही AIDS समझ लेते हैं, जबकि यह दोनों अलग-अलग हैं। इसी वजह से कई बार लोग अपनी बीमारी को छिपाते हैं और फिर बीमारी बढ़ने पर रोगी के जीवन की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है। यह समस्या सिर्फ देश की ही नहीं है, बल्कि दुनियाभर की है। अगर आंकड़ों को देखें, तो डब्लूएचओ (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में दुनियाभर में 3 करोड़ 99 लाख लोग एचआईवी से पीड़ित हैं। भारत में भी HIV के लाखों में मामले हैं। नेशनल AIDS कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (NACO) और आईसीएमआर (ICMR) रिपोर्ट के अनुसार, भारत में साल 2023 में 25 लाख से ज्यादा लोग HIV के साथ रह रहे हैं। 1 दिसंबर को वर्ल्ड एड्स डे (World AIDS DAY) के मौके पर हमने HIV और एड्स (AIDS) से जुड़े मिथकों को तोड़ने की कोशिश की है। हमने नई दिल्ली के आकाश हेल्थकेयर के इंटरनल मेडिसन के एचओडी और सीनियर कंसल्टेंट डॉ. राकेश पंडित से बात की और HIV से AIDS बनने की पूरी प्रक्रिया को विस्तार से समझा।
भारत में HIV के मामले
नेशनल AIDS कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (NACO) और आईसीएमआर (ICMR) 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में करीब 4 लाख लोग एचआईवी पीड़ित हैं, और इसके बाद आंध्र प्रदेश में 3 लाख 20 हजार लोग HIV से ग्रसित हैं। एड्स से होने वाली मृत्यु के आंकड़े महाराष्ट्र में 7 हजार से ज्यादा हैं और कर्नाटक में 5 हजार 600 के करीब रहे हैं। इन आंकड़ों में सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि पंजाब में सबसे ज्यादा नए मामले रिकार्ड किए गए हैं। यह 9 हजार से ज्यादा है। हालांकि, साल दर साल देश में HIV पीड़ितों की बात की जाए, तो आंकड़ों में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई है। साल 2019 में 25 लाख 40 हजार 200 के करीब मामले थे, जो साल 2022 में बढ़कर 25 लाख 40 हजार 700 के करीब हो हो गए। साल 2023 में यह आंकड़ा 25 लाख 44 हजार तक पहुंच गया।
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HIV और AIDS के बीच अंतर
डॉ. राकेश कहते हैं कि एचआईवी वायरस इंफेक्शन है। कई मामलों में देखा गया है कि रोगी एचआईवी पॉजिटिव होता है, लेकिन उसे सालों साल कोई दिक्कत नहीं होती। अगर HIV पॉजिटिव व्यक्ति अपना इलाज समय पर न करवाए, तो रोगी की धीरे-धीरे इम्यूनिटी बहुत प्रभावित होती है। CD4 सेल्स, जो संक्रमण से बचाते हैं, वे समय के साथ कम होने लगते हैं। कई सालों में HIV धीरे-धीरे AIDS में तब्दील हो जाता है। अगर एड्स रोगी को सर्दी-जुकाम हो जाए, तो उसे निमोनिया तक हो सकता है। एड्स की वजह से शरीर में फंगल इंफेक्शन या बैकटीरियल इंफेक्शन, जैसे टीबी होने का खतरा बना रहता है। HIV का इलाज न होने पर सीडी 4 सेल्स 200 या इससे भी कम जा सकते हैं, जबकि इसकी सामान्य रेंज 500 से 1500 cells per cubic millimeter होती है।
HIV से AIDS बीमारी के तीन स्टेज
पहला स्टेज - एक्यूट HIV इंफेक्शन
डॉ. राकेश बताते हैं कि इस स्टेज में HIV का वायरस खून, सीमन, वजाइनल फ्लूड या रेक्टल फ्लूड के द्वारा किसी भी रोगी के शरीर में जा सकता है। इस स्टेज पर कई मामलों में रोगी को किसी भी तरह के लक्षण महसूस नहीं होते, जबकि कुछ मामलों में रोगी को फ्लू, शरीर में दर्द, शरीर पर रैशेस, मुंह में अल्सर और थकावट जैसे लक्षण होते हैं। ये लक्षण रोगी को 2 से 4 हफ्ते के बीच महसूस हो सकते हैं। इस दौरान रोगी के CD4 सेल्स पर भी असर पड़ने लगता है। अगर रोगी इस स्टेज पर चेकअप करवाकर इलाज शुरू कर दे, तो AIDS होने का खतरा काफी कम किया जा सकता है।
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दूसरा स्टेज - क्रोनिक HIV इंफेक्शन
अगर HIV का इलाज समय पर न हो, तो वायरस शरीर में एक्टिव रहता है। इस स्टेज पर वायरस इम्यून सेल्स को खत्म करने लगता है। हालांकि इस समय कई बार रोगी को लक्षण महसूस नहीं होते, लेकिन वह वायरस को दूसरों में ट्रांसमिट कर सकता है। डॉ. राकेश कहते हैं, “अगर इस स्टेज पर भी रोगी इलाज कराना शुरू कर दें, तो AIDS के खतरे से बच सकता है।” यह भी कहा जाता है कि अगर रोगी इस स्टेज पर इलाज न करवाए, तो भी एडवांस स्टेज तक पहुंचने में उसे 10 साल या इससे ज्यादा समय लग सकता है।
तीसरा स्टेज - एड्स
यह आखिरी या एडवांस स्टेज होता है, जिसे एड्स भी कहा जाता है। इस स्टेज पर रोगी के CD4 सेल्स 200 से भी नीचे चले जाते हैं और वह आसानी से संक्रमण की चपेट में आ सकता है। किसी भी तरह की छोटी से छोटी बीमारी गंभीर बन सकती है। इस स्टेज पर रोगी को बुखार, दस्त, त्वचा या मुंह से जुड़ी बीमारी और वजन कम होने जैसे लक्षण नजर आते हैं। इस स्टेज पर आकर रोगी के न्यूरो और कॉर्डियो जैसे शरीर के लगभग सभी अंग प्रभावित होते हैं।
HIV का इलाज
डॉ. राकेश ने एचआईवी का इलाज बताते हुए कहा, “एक स्टडी के अनुसार अगर कोई HIV रोगी दवाई ले रहा हो, तो वह आम इंसान की तरह जिंदगी बिता सकता है और वह एड्स की ओर नहीं बढ़ता। इसके इलाज में एंटीरिट्रोवायरल (ART) दवाइयां ली जाती हैं। नियमित चेकअप और समय पर इलाज कराने से एचआईवी से AIDS होने की संभावना काफी हद तक कम हो सकती है।”