Female Bus Driver Talks on Periods: दिल्ली की रहने वाली गीता ने जब बस ड्राइवर का बनने का सफर शुरू किया था तो उन्होंने सोचा नहीं था कि ड्राइवर बनकर ऐसी तकलीफों का सामना करना पड़ेगा जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। आमतौर पर जब भी कोई महिला काम शुरू करती है, तो वह सोचकर ही चलती है कि बुनियादी सुविधाएं तो मिलेंगी ही, लेकिन गीता देवी के मामले में ऐसा नहीं था। 12 साल पहले जब उन्होंने ड्राइविंग का सफर शुरू किया था, तो जोश भी था और परिवार की मजबूरियां भी। जीवन में कुछ नया करने के लिए और समाज में अपनी एक नई पहचान बनाने के लिए उन्होंने एनजीओ के जरिए ड्राइविंग सीखी। जैसे ही ड्राइवर का काम शुरू किया तो उन्हें पता चला कि इस काम में न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक स्तर पर काफी कुछ झेलना पड़ता है। इसमें सबसे ज्यादा परेशानी उन्हें डीटीसी (DTC) का ऑफिस ज्वाइन करने के बाद आई। चलिए जानते हैं, महिला बस ड्राइवर की परेशानियां और कैसे वह इसे दूर करने की कोशिश करती है।
गीता का बस ड्राइवर का सफर कैसे शुरू हुआ?
इस बारे में बात करते हुए गीता काफी भावुक हो गई। उन्होंने कहा, “मेरे परिवार में लड़के-लड़की का बहुत भेदभाव था, जिसकी वजह से मैं कभी साइकिल तक नहीं चला सकी। मुझे ड्राइविंग करने जैसी कोई सुविधा नहीं मिली। शादी के बाद मेरे चार बच्चे हुए और जब मेरी चौथी बेटी 6 महीने की हुई तब मेरे घर के पास एक एनजीओ आई। उन्होंने ड्राइविंग सिखाने की बात कही। मैंने 6 महीने तक गाड़ी ड्राइव करने की ट्रेनिंग ली। मैं शुरू से ही साइकिल या स्कूटी चलाना चाहती थी, लेकिन कभी मौका नहीं मिला था। जब यह मौका मिला तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने तुरंत हामी भर दी और ड्राइविंग सीखी।”
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ड्राइविंग के सफर में आई दिक्कतें
ड्राइवर बनने के बाद गीता को कई समस्याएं आई। पहले तो उन्हें इस फील्ड में जॉब ही नहीं मिली, क्योंकि लोग महिलाओं को ड्राइवर के तौर पर कम ही देखते हैं और वह भी जॉब के नजरिए तो बिल्कुल ही नहीं सोचते। कुछ जगहों पर प्राइवेट काम करने के बाद डीटीसी (DTC) की कॉन्ट्रेक्ट जॉब्स निकली। कार की ड्राइविंग करने के बाद उन्हें बस चलाने का भी मौका मिल गया। जब वह ऑफिस पहुंची, तो उन्हें वॉशरूम की बड़ी समस्या झेलनी पड़ी। इस बारे में बताते हुए गीता ने कहा, “आमतौर पर ड्राइवर पुरुष ही होते हैं, तो महिलाओं के लिए रूट में वॉशरूम की कोई खास व्यवस्था नहीं होती। इस वजह से मुझे बड़ी परेशानी होने लगी। मैंने देखा है कि नार्थ में तो खासतौर पर महिलाओं के लिए कोई वॉशरूम ही नहीं है। इसलिए रोजाना वॉशरूम ढ़ूंढना एक मिशन बन गया है। कई बार मैं पेट्रोल पंप पर बस रोकती हूं, लेकिन वहां का वॉशरूम इतना ज्यादा गंदा होता है कि कई बार संक्रमण तक हो जाता है।”
पीरियड्स में होती है सबसे ज्यादा परेशानी
गीता ने बताया, “पीरियड्स के दौरान तो बहुत ज्यादा में तो बहुत ज्यादा दिक्कत होती है। उस दौरान एक तरफ तो वॉशरूम की दिक्कत तो दूसरी तरफ मिलने पर गंदगी की परेशानी। इसके चलते कई बार मुझे खुजली या इंफेक्शन हो जाती है। कई बार घंटों-घंटो तक पैड लगाकर ही रहना पड़ता है। अब तो पीरियड्स के दौरान डर ही लगता है। मुझे इतनी तकलीफ होती है कि सोचना पड़ता है कि काम पर जाऊं या न जाऊं। इस दौरान मूड स्विंग्स, पेट में दर्द भी पहले दो दिन तो काफी ज्यादा होता है। मेरे लिए छुट्टी लेना भी मुमकिन नहीं है, क्योंकि मैं कॉन्ट्रेक्ट पर हूं तो छुट्टी लेने पर पैसे कटते हैं। चार बच्चों के साथ सेलरी कटने का रिस्क भी नहीं ले सकती। इतना सब देखती हूं तो कई बार लगता है कि लोग ऐसे ही नहीं कहते कि महिलाओं को भगवान ने बहुत ज्यादा हिम्मत दी है। शायद यही कारण है कि मैं उन दिनों भी पूरी हिम्मत और जोश के साथ बस चलाती हूं।”
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गीता का मैसेज
मैं सभी से कहना चाहूंगी कि अब महिलाएं सिर्फ घर तक सीमित नहीं रह गई है। हम बस में ड्राइवर से लेकर कंडक्टर तक की हर भूमिका निभा रही हैं, ऐसे में हमारी बुनियादी जरूरतों जैसेकि साफ-सुथरे वॉशरूम की व्यवस्था होनी चाहिए। लोगों को महिलाओं के साथ थोड़ा अच्छा व्यवहार करना चाहिए ताकि उनका हौसला बढ़ें। महिलाओं को पीरियड्स के बारे में बात करनी चाहिए ताकि उस दौरान होने वाली समस्याओं को समझ सकें। उम्मीद है कि आने वाले समय में पुरुष भी पीरियड्स के बारे में खुलकर बात करेंगे और महिलाओं की परेशानी समझेंगे।