
कुछ बच्चों की आदत होती है कि वो दिनभर किसी खास गतिविधि को दोहराते रहते हैं, जैसे- होंठ चबाना, आंख मटकाना, सिर को झटका देना, नाखून चबाना आदि। ऐसी ज्यादातर आदतों पर उनका कंट्रोल नहीं होता है, इसलिए वो टोकने या समझाने के बाद भी इन्हें बंद नहीं कर पाते हैं। इस समस्या को अंग्रेजी में टिक्स (Tics) कहते हैं। टिक्स का मतलब होता है शरीर का अनियंत्रित गतिविधि करने की वजह से कुछ खास रिएक्शन होना। बच्चों में टिक्स 5 से 9 साल की उम्र में दिखना शुरू होते हैं और इसके बाद ज्यादा गंभीर होने लगते हैं। ऐसा लड़कियों से ज्यादा लड़कों में देखने को मिलता है। मदरहुड हॉस्पिटल में सीनियर पीडियाट्रिशन डॉक्टर अमित गुप्ता बताते हैं कि बच्चों में टिक्स की परेशानी आमतौर पर ब्रेन के कुछ पार्ट्स जो बॉडी मूवमेंट को कंट्रोल करते हैं उनमें बदलाव की वजह से होती है। कभी-कभी बच्चों में यह समस्या अनुवांशिक भी हो सकती है। आइए जानते हैं टिक के प्रकार, लक्षण और इसके इलाज के बारे में।
बच्चों में टिक्स के प्रकार
वोकल टिक्स
इसमें कुछ आवाजें निकालना शामिल है जैसे हर समय भुनभुनाना, अपने से बातें करना, गले की खराश दूर करना, चिल्लाना या किसी एक वाक्य को दोहराते रहना
मोटर टिक्स
इसमें बच्चे में कुछ बॉडी मूवमेंट्स होते हैं जैसे आंखें झपकना, नाक मसलना, नाक में उंगली डालना, कंधों को मटकाना और बाजुओं को चढ़ाना आदि।
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बच्चों में टिक्स के कारण
कुछ बच्चों में टिक्स जेनेटिक स्थिति होते हैं और यह एक पीढ़ी से कई पीढ़ियों तक आगे बढ़ते रहते हैं।
यह असामान्य मेटाबॉलिज्म का भी कारण हो सकती है। ऐसा दिमाग के केमिकल डोपामिन के कारण हो सकता है।
कई बार न्यूरोट्रांसमीटर डिस्टर्बेंस भी इस स्थिति से जुड़ा हुआ माना जाता है।
कुछ एक्सटर्नल और इंटरनल फैक्टर्स जैसे फूड एलर्जी, केमिकल्स से संपर्क में आना आदि से भी टिक होने का खतरा बच्चों में बढ़ जाता है।
कुछ दवाइयों का सेवन करना जैसे हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर और अटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर को ठीक करने वाली दवाइयों के कारण भी टिक्स जैसे साइड इफेक्ट्स देखने को मिल सकते हैं।
टिक्स के अन्य कारण
कुछ व्यवहार में आने वाले बदलाव भी टिक्स का कारण हो सकते हैं जैसे :
स्ट्रेस या काफी जज्बाती होना
एंजाइटी होना
काफी ज्यादा उत्साही होना
थकान होना
खुशी होना
टिक्स के बारे में बात करना या इस पर ध्यान देना।
टिक्स के लक्षण
खांसी आना
जानवरों जैसी आवाजें निकालना।
गले की खराश क्लियर करना।
नाक से सूंघते रहना।
वाक्य रिपीट करना।
चिल्लाना।
आंखे झपकना
अपने होंठ काटना
नाक मसलना
माथे को मरोड़ना
दूसरों की नकल करना
लात मारना।
बैठे-बैठे पैर हिलाना
हर चीज को सूंघना
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टिक्स के साथ अन्य स्थितियां
बहुत से बच्चों को टिक्स के साथ कुछ अन्य मेंटल डिसऑर्डर भी हो सकते हैं जैसे- ADHD, OCD, एंजाइटी होना
डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए?
वैसे तो टिक्स से कोई गंभीर मानसिक बीमारी नहीं होती है और यह कुछ दिन बाद अपने आप ही चली जाती है। अगर निम्न स्थिति देखने को मिलती है तो आप को अपने डॉक्टर से जरूर बात करनी चाहिए :
जब टिक्स काफी नियमित हो और बार बार देखने को मिल रही हो।
जब इसकी वजह से बच्चे को ज्यादा इमोशनल और सोशल समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हो जैसे पब्लिक में बेइज्जत महसूस होना या उन्हें घर पर ही ज्यादा रहना पसंद होता हो।
जब उन्हें इस वजह से दर्द हो रहा हो।
बच्चे की रोजाना की गतिविधियों प्रभावित हो रही हो।
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क्या है टिक्स का इलाज
कॉम्प्रिहेंसिव बिहेवियर इंटरवेंशन
इसमें बच्चों को कुछ ऐसी आदतें और व्यवहार सिखाया जाता है जिसमें उन्हें टिक्स में मदद मिल सके जैसे उनकी इस बारे में जागरूकता बढ़ाना और उनके रूटीन में बदलाव करना।
रिस्पॉन्सिव प्रिवेंशन के साथ एक्सपोजर
यह तकनीक बच्चों को असहज वातावरण से बाहर निकालने में और थोड़ा सहज करने में महसूस करती है।
आप बच्चों को अन्य गतिविधियां करने में मदद कर सकते हैं, ताकि वह टिक्स से डिस्ट्रैक्ट हो कर सामान्य जीवन जी सकें। बच्चे को समय से जरूर सुला दें जिससे स्लीप पैटर्न पर प्रभाव न पड़े और बच्चा पूरी नींद ले सके।
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