
हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World Suicide Prevention Day) मनाया जाता है। इसका उद्देश्य आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं के प्रति जागरूकता फैलाना है। हमारा ज्यादातर समय या तो वर्कप्लेस पर बीतता है या फिर बचपन और किशोरावस्था में स्कूल में। यही जगहें हमारे व्यक्तित्व, सोच और भविष्य की दिशा तय करती हैं। ऐसे में स्कूल और ऑफिस जैसी जगहों में सपोर्टिव एनवायरनमेंट होना बहुत जरूरी है यानी एक ऐसा माहौल जहां इंसान को सम्मान मिले, उसकी समस्याओं को सुना जाए और मानसिक व शारीरिक सेहत का ख्याल रखा जाए। अगर कर्मचारी अपनी बात निडर होकर कह सके या बच्चा टीचर से अपनी समस्या शेयर कर सके तो इससे आत्मविश्वास और परफॉर्मेंस दोनों बढ़ते हैं। इस लेख में लखनऊ के एजुकेट टू एलीवेट की संस्थापक और इमोशनल फिटनेस कोच शेख उज़मा जमाल (Shaikh Uzma Jamal, Emotional Fitness Coach and Founder of Educate To Elevate, Lucknow) से जानिए, बच्चों और बड़ों की हेल्थ पर स्कूल और ऑफिस का माहौल कैसे असर डालता है?
ऑफिस के माहौल का असर - Role Of Workplaces In creating Supportive Environment
इमोशनल फिटनेस कोच शेख उज़मा जमाल बताती हैं कि आज के युग में, वर्कप्लेस मानसिक तनाव का बड़ा कारण बनते जा रहे हैं। ज्यादा काम, समय सीमा का दबाव, नौकरी की असुरक्षा, सहकर्मियों के साथ टकराव और वर्क-लाइफ बैलेंस की कमी, ये सभी कारक व्यक्ति की मानसिक स्थिति को प्रभावित करते हैं। ऐसे में ऑफिस और स्कूल का माहौल सही होना बहुत जरूरी होता है।
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- कर्मचारियों और मैनेजमेंट को मानसिक स्वास्थ्य की पहचान और प्राथमिक उपचार के बारे में ट्रेनिंग देना।
- कर्मचारियों को बिना डर या शर्मिंदगी के अपनी बात कहने का अवसर देना।
- सपोर्ट ग्रुप और काउंसलिंग भी बहुत जरूरी है। काउंसलर या बाहरी मनोचिकित्सक की सहायता से कर्मचारियों को नियमित परामर्श देना।
- वर्क-लाइफ बैलेंस को बढ़ावा देना भी जरूरी है, लचीला कार्य समय, छुट्टियों और "वर्क फ्रॉम होम" जैसे विकल्प देना।
इन उपायों से कर्मचारियों के भीतर आत्म-सम्मान और सुरक्षित महसूस करने की भावना को बल मिलता है, जिससे आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोका जा सकता है।
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स्कूल के माहौल का असर - Role Of Schools In creating Supportive Environment
इमोशनल फिटनेस कोच शेख उज़मा जमाल का मानना है कि विद्यालय और महाविद्यालय बच्चों और युवाओं के विकास का आधार होते हैं। किशोरावस्था और युवावस्था में मानसिक समस्याएं, जैसे कि डिप्रेशन, एंग्जायटी, अकेलापन तेजी से उभरती समस्याएं हैं। दुर्भाग्यवश, भारत में हर साल हजारों छात्र आत्महत्या करते हैं, जिनमें से अधिकतर पढ़ाई के दबाव, परीक्षा में असफलता, पारिवारिक अपेक्षाओं के शिकार होते हैं।

- पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य विषय को शामिल करें, जिससे विद्यार्थी आत्म-जागरूक और संवेदनशील बन सकें।
- हर विद्यालय में प्रशिक्षित काउंसलर होना जरूरी होना चाहिए, जो छात्रों की व्यक्तिगत समस्याएं सुन सकें।
- इमोशनल लर्निंग प्रोग्राम समय-समय पर होने चाहिए।
- रैगिंग और बुलिंग के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए, ताकि इन्हें बिलकुल रोका जा सके।
निष्कर्ष
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस केवल एक दिन नहीं, बल्कि यह याद दिलाने का अवसर है कि हर जीवन कीमती है और हर व्यक्ति को सहारा देने का हक है। कार्यस्थल और विद्यालय यदि अपने वातावरण को थोड़ा ज्यादा संवेदनशील और सहायक बना लें, तो कई कीमती जानें बचाई जा सकती हैं।
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