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बच्‍चों के खाने में म‍िला स‍िंथेट‍िक रंग ब‍िगाड़ सकता है उनकी सेहत, जानें इसके 7 नुकसान

Synthetic Food Colours Side Effects: सिंथेटिक फूड कलर बच्चों में एलर्जी, पाचन गड़बड़ी, चिड़चिड़ापन और मानसिक विकास में रुकावट का कारण बन सकते हैं।
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बच्‍चों के खाने में म‍िला स‍िंथेट‍िक रंग ब‍िगाड़ सकता है उनकी सेहत, जानें इसके 7 नुकसान


बच्‍चों को रंग-बिरंगे फूड आइटम्‍स जैसे कैंडी, टॉफी, जैली, आइसक्रीम और पैक्‍ड स्‍नैक्‍स बहुत पसंद आते हैं। ये चीजें जितनी दिखने में आकर्षक होती हैं, उतनी ही अंदर से हानिकारक भी हो सकती हैं। खासकर जब इन चीजों में सिंथेटिक फूड कलर (Synthetic Food Colors) मिलाए जाते हैं। लखनऊ के डफर‍िन हॉस्‍प‍िटल के वर‍िष्‍ठ बाल रोग व‍िशेषज्ञ डॉ सलमान खान ने बताया क‍ि बाजार में मिलने वाले ज्‍यादातर रंग, आर्टि‍फ‍िश‍ियल केम‍िकल्‍स से बनाए जाते हैं, जो खाने को, तो चमकदार बना देते हैं, लेकिन बच्चों की सेहत पर लंबे समय में बुरा असर डाल सकते हैं। कई माता-पिता बिना लेबल पढ़े ऐसे प्रोडक्‍ट्स बच्चों को दे देते हैं, जो धीरे-धीरे उनके शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करते हैं। खास बात यह है कि बचपन की उम्र शरीर के विकास का समय होता है, ऐसे में बार-बार सिंथेटिक रंगों वाले खाद्य पदार्थों का सेवन बच्‍चों के नर्वस सिस्टम, पाचन और हार्मोन पर बुरा असर पड़ सकता है। इस लेख में हम जानेंगे कि बच्चों के खाने में सिंथेटिक फूड कलर मिलाने से उनकी सेहत को कौन-कौन से 7 बड़े नुकसान हो सकते हैं और इससे कैसे बचा जा सकता है।

1. हार्मोनल असंतुलन- Hormonal Imbalance

लंबे समय तक आर्ट‍िफ‍िश‍ियल रंगों का सेवन बच्चों के हार्मोनल सिस्टम को प्रभावित कर सकता है। इससे व्यवहार में बदलाव या हॉर्मोनल विकास में रुकावट जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

इसे भी पढ़ें- खाने में फूड कलर का इस्तेमाल करते हैं तो हो जाएं सावधान, सेहत को पहुंचता है गंभीर नुकसान

2. पाचन तंत्र पर असर- Digestive Issues

सिंथेटिक रंगों में मौजूद केम‍िकल्‍स, बच्चों के नाजुक पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इससे पेट दर्द, गैस, अपच और एलर्जी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। कई बार ये रंग आंतों की परत को भी नुकसान पहुंचाते हैं जिससे कई बार पोषण के शरीर में एब्‍सॉर्ब होने की प्रक्र‍िया में भी रुकावट आ जाती है।

3. एलर्जी और स्किन रिएक्शन- Allergies & Skin Reactions

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कुछ बच्चों को सिंथेटिक रंगों से स्किन एलर्जी हो सकती है। जैसे- त्वचा पर चकत्ते, खुजली, सूजन या रेडनेस। E110 (सनसेट येलो) और E122 (कार्मोइसिन) जैसे रंग एलर्जिक रिएक्शन के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं।

4. इम्यून सिस्टम कमजोर होना- Weak Immune System

बढ़ते बच्चे के लिए मजबूत इम्यूनिटी जरूरी है, लेकिन सिंथेटिक फूड कलर शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित कर सकते हैं। इससे बच्चा बार-बार बीमार पड़ सकता है और वायरल, बैक्टीरियल इंफेक्शन की चपेट में जल्दी आ सकता है।

5. लि‍वर और किडनी पर बोझ- Burden on Liver & Kidney

फूड कलर्स शरीर से बाहर निकलने के लिए लिवर और किडनी पर निर्भर होते हैं। लगातार इनका सेवन करने से इन अंगों पर जरूरत से ज्‍यादा बोझ पड़ता है जिससे उनकी कार्यक्षमता धीरे-धीरे घट सकती है।

6. श्वसन संबंधी समस्याएं- Respiratory Issues

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कुछ बच्चों में सिंथेटिक फूड कलर, खासकर जिनमें सल्फाइट्स होते हैं, सांस लेने में दिक्कत, खांसी, या अस्थमा जैसी समस्याओं का कारण बन सकते हैं। यह खासकर उन बच्चों में ज्यादा देखा गया है जिन्हें एलर्जी या अस्थमा की पहले से समस्या रही हो।

7. मानसिक विकास में रुकावट- Hindered Cognitive Development

कुछ सिंथेटिक रंग न्यूरोटॉक्सिन की तरह व्यवहार करते हैं, जो बच्चों के मानसिक विकास को धीमा कर सकते हैं। इससे उनकी सीखने की क्षमता, याददाश्त और सोचने की क्षमता पर बुरा असर पड़ सकता है।

फूड कलर के नुकसान से बच्‍चों को कैसे बचाएं?- How to Protect Child From Side Effects of Food Colours

  • रंगीन कैंडी और ड्रिंक्स की जगह घर पर बने हेल्दी विकल्प दें जैसे- फ्रूट योगर्ट, हल्दी का दूध या बीटरूट इडली।
  • घर में नेचुरल रंगों का इस्तेमाल करें, जैसे हल्दी (पीला), चुकंदर (गुलाबी), पालक (हरा) और गाजर (नारंगी)।
  • ‘नो आर्टि‍फ‍िश‍ियल कलर’ या ‘नेचुरल कलर ओनली’ वाले उत्पाद ही चुनें।
  • बच्चों को ताजा और घर पर बने खाना खाने की आदत डालें, जिससे वे बाहर के प्रोसेस्ड फूड से दूर रहें।
  • अगर बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है, स्किन एलर्जी या व्यवहार में बदलाव दिखता है, तो डॉक्टर से पूछें कि कहीं यह फूड कलर के कारण तो नहीं है।

सिर्फ स्वाद और रंग के लिए बच्चों की सेहत से समझौता नहीं करना चाहिए। सिंथेटिक फूड कलर से भरे फूड आइटम्स दिखने में भले ही आकर्षक हों, लेकिन उनके असर लंबे समय तक रहते हैं, इसल‍िए इनका सेवन करने से बचना चाह‍िए।

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FAQ

  • कौन सा फूड कलरिंग सेफ है?

    नेचुरल फूड कलर सबसे सेफ माना जाता है क्योंकि ये फल, सब्जियों और मसालों से बनती है। जैसे हल्दी (पीला), चुकंदर (गुलाबी), पालक (हरा), गाजर (नारंगी)। ये शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते और बच्चों के लिए भी सुरक्षित हैं। FDA और FSSAI द्वारा अप्रूव सिंथेटिक रंग जैसे E160a (बेटा कैरोटीन) सीमित मात्रा में लेना, ठीक माने जाते हैं।
  • फूड कलर वेज है या नॉनवेज?

    फूड कलर 2 तरह के हो सकते हैं- वेज और नॉनवेज। कई सिंथेटिक डाईज जानवरों से भी बनाई जाती हैं, जैसे कोचीनियल (E120) जो कीड़ों से बनती है और नॉनवेज मानी जाती है। भारत में ज्‍यादातर फूड कंपनियां वेज फूड कलर का ही इस्‍तेमाल करती हैं, लेकिन लेबल पर ‘V’ या ‘Non-Veg’ साइन जरूर देखें।
  • फूड डाई किस चीज से बनती है?

    फूड डाई तीन स्रोतों से बनती हैं: नेचुरल सोर्स- जैसे हल्दी, चुकंदर, पालक, गाजर। सिंथेटिक सोर्स- जैसे पेट्रोलियम या कोल-टार बेस्ड केमिकल से बनी और एनिमल बेस्ड सोर्स- जैसे कोचीनियल डाई (कीड़ों से)। सिंथेटिक डाई सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती हैं क्योंकि ये सस्ती और टिकाऊ होती हैं, लेकिन ये हेल्थ के लिए ज्यादा सुरक्षित नहीं होतीं।

 

 

 

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