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क्या फूड कलर से कैंसर हो सकता है? डॉक्टर से जानें सही जवाब

Can food colour cause cancer: बाजार में बिकने वाले रंग-बिरंगे फूड आइटम में फूड कलर का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन क्या ये फूड कलर कैंसर जैसी घातक बीमारी का कारण बन सकते हैं।
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क्या फूड कलर से कैंसर हो सकता है? डॉक्टर से जानें सही जवाब


Can food colour cause cancer: आज के आधुनिक दौर में हम खाने को पोषक तत्वों से नहीं बल्कि उनके आकर्षक और लुभावने रंगों से जानते हैं। पिज्जा, बर्गर, स्वीट्स, बाजार में मिलने वाली कैंडी और चिप्स इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। लाल, पीला, नीला और गुलाबी रंगों में रंगा हुआ खाना जितना आंखों को लुभाता है, उतना ही स्वास्थ्य के लिए घातक होता है। खाने को इतना रंग-बिरंगा बनाने के लिए आर्टिफिशियल फूड कलर (Artificial Food Colors) का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन आपको ये बात जानकार हैरानी होगी कि आर्टिफिशियल फूड कलर डीएन को डैमेज करके कैंसर जैसी घातक बीमारी का कारण बन सकते हैं।

इस लेख में इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के इंटरनल मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ राकेश गुप्ता (Dr Rakesh Gupta, Senior Consultant, Internal Medicine, Indraprastha Apollo Hospitals) से जानेंगे कैसे आर्टिफिशियल फूड कलर्स कैंसर का कारण बन सकते हैं और इससे बचाव के लिए हमें क्या करना चाहिए।

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फूड कलर (आर्टिफिशियल कलर) क्या हैं?- What is Artifical colours

फूड कलर (आर्टिफिशियल कलर) एक प्रकार का केमिकल होता है। इसे किसी प्रकार के फल, फूल या अन्य प्राकृतिक स्रोतों से नहीं बल्कि लैब में सिंथेटिक केमिकल्स से तैयार किया जाता है। फूड कलर (आर्टिफिशियल कलर) का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर बेकरी प्रोडक्ट, कैंडीज और ड्रिंक्स बनाने के लिए किया जाता है।

फूड कलर (आर्टिफिशियल कलर) कैसे डीएनए को कैसे नुकसान पहुंचाते हैं?

डॉ. राकेश गुप्ता बताते हैं कि कई अध्ययनों से पता चला है कि फूड कलर (आर्टिफिशियल कलर) कई तंत्रों के माध्यम से डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं और कैंसर जैसी घातक बीमारी का कारण बनते हैं। इसमें शामिल हैः

- ऑक्सीडेटिव तनाव:फूड कलर (आर्टिफिशियल कलर) से बनें फूड्स खाने से ऑक्सीडेटिव तनाव हो सकता है। इससे प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजाति (आरओएस) का निर्माण होता है। आरओएस डीएनए, प्रोटीन और लिपिड को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। Environmental Health Perspectives (2012) में प्रकाशित रिसर्च बताती है कि Red 40 और Yellow 5 जैसे फूड डाईस कोशिकीय स्तर पर डीएनए में टूट-फूट और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस का कारण बन सकते हैं।

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- जीनो टॉक्सिसिटी: बाजार में मौजूद कुछ फूड कलर (आर्टिफिशियल कलर) में जीना टॉक्सिक पाए गए हैं। इसका आसान भाषा में अर्थ है कि वे सीधे डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं और म्यूटेशन का कारण बन सकते हैं। इसकी वजह से जेनेटिक डिसऑर्डर (Genetic Disorder Due to Artificial Colours) और कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।

- एपीजेनेटिक संशोधन:फूड कलर (आर्टिफिशियल कलर) शरीर में एपीजेनेटिक निशानों को भी प्रभावित कर सकते हैं, जो जीन अभिव्यक्ति को नियंत्रित करते हैं। इन निशानों को बदलने से सामान्य सेलुलर फंक्शन बाधित हो सकता है और बीमारी को बढ़ा सकता है।

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क्या फूड कलर कैंसर का कारण बन सकते हैं- Can food Colours cause cancer

डॉक्टर बताते हैं कि कुछ आर्टिफिशियल फूड कलर्स को कैंसरजनक (carcinogenic) माना गया है। हालांकि यह बात निर्भर करती है कि उसका इस्तेमाल किस प्रकार की डाई में और कितनी मात्रा में किया जा रहा है। अगर किसी फूड कलर (आर्टिफिशियल कलर) का इस्तेमाल निर्धारित दिशा-निर्देशों से अधिक मात्रा में किया जा रहा है, तो ये कैंसर का कारण बन सकता है। इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि Red 3 (Erythrosine) एक ऐसा फूड कलर है, जिसे अमेरिका में थायरॉइड कैंसर के कारण बैन कर दिया गया था। वहीं, Amaranth (Red No. 2) एक सिंथेटिक डाई है जिसे कैंसरकारी प्रभाव के कारण अमेरिका में बैन किया गया है। लेकिन इसके बावजूद ये भारत जैसे कई विकासशील देशों में इस्तेमाल किए जा रहे हैं।

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फूड कलर के बारे में क्या कहता है भारतीय कानून- What does Indian law say about food color

भारत में FSSAI (Food Safety and Standards Authority of India) कुछ फूड कलर्स को अनुमति देता है लेकिन सीमित मात्रा में। इनमें शामिल हैं:

टार्ट्राजीन (E102)

सनसेट येलो (E110)

कारमोसिन (E122)

पोन्चो रेड (E124)

ब्रिलियंट ब्लू (E133)

इंडिगो कारमाइन (E132)

FSSAI के द्वारा विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों में कितनी मात्रा में फूड कलर (आर्टिफिशियल कलर) का इस्तेमाल करना है, इसकी गाइडलाइन तय की गई है। लेकिन इसके बावजूद कुछ छोटे चिप्स, कैंडी और कोल्ड ड्रिंक के निर्माता इन कलर्स का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं।

आर्टिफिशियल फूड खाने से कैसे बचें- How to avoid eating artificial food

हेल्थ एक्सपर्ट बताते हैं कि बाजार में मिलने वाले विभिन्न प्रकार के पैकेज्ड फूड का सेवन अगर जागरूकता के साथ किया जाए, तो डीएनए डैमेज और कैंसर जैसी घातक बीमारी से बचाव संभव है। आइए आगे जानते हैं इसके बारे में।

1. पैकेजिंग पढ़ें :

खाने-पीने की चीजें खरीदते समय उनके पैकेट पर लिखे इंग्रेडिएंट्स को जरूर पढ़ें। अगर इसमें E102 (टारट्राजीन), E110 (सनसेट येलो), E122, E133 जैसे कोड वर्ड्स लिखे हुए हैं, तो समझ लीजिए इसमें फूड कलर का इस्तेमाल किया गया है। इनका सेवन बिल्कुल भी न करें।

2. घर का बना ताजा खाना खाएं:

जहां तक संभव हो, घर का बना ताजा खाना खाएं। घर पर सब्जियों, दालों, फलों और मसालों से बने खाने में केमिकल्स की मात्रा कम होने की संभावना रहती है।

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3. प्राकृतिक रंगों का उपयोग करें:

अगर आप बच्चों के लिए खाना बना रहे हैं और उसमें कलर को शामिल करना चाहते हैं, तो प्राकृतिक रंग जैसे हल्दी (पीला), चुकंदर (गुलाबी), पालक (हरा), गाजर (नारंगी), केसर या फूलों का इस्तेमाल करें।

4. स्ट्रीट फूड और रंग-बिरंगे मिठाइयों से सतर्क रहें:

बाजार में बिकने वाली रंग-बिरंगी मिठाइयों, बर्फ के गोलों, गोलगप्पे का पानी और आइसक्रीम से दूरी बनाने की कोशिश करें।

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निष्कर्ष

रिसर्च और डॉक्टर के साथ बातचीत के आधार पर हम ये कह सकते हैं कि फूड कलर डीएनए को डैमेज करके कैंसर जैसी घातक बीमारी का कारण बनते हैं। हालांकि फूड कलर का सीमित मात्रा में उपयोग हो और खाद्य सुरक्षा मानकों का पालन किया जाए, तो खतरा कम हो सकता है। लेकिन ऐसा संभव होना मुश्किल काम है। इसलिए खुद जागरूक बनें और फूड कलर के जहर से खुद को और अपने परिवार को बचाएं।

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FAQ

  • कैंसर से बचने के लिए कौन सा फल खाना चाहिए?

    कैंसर से बचने के लिए अनार, ब्लूबेरी, अमरूद, पपीता, कीवी और आंवला जैसे फल खाने चाहिए। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन पर प्रकाशित रिसर्च बताती है कि इन फलों में विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो शरीर की कोशिकाओं को सुरक्षित रखते हैं।
  • कैंसर की शुरुआत कैसे होती है?

    कैंसर की शुरुआत तब होती है जब शरीर की कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं और सामान्य कोशिकाओं की तरह मरती नहीं हैं। कैंसर की शुरुआत के लिए खानपान और जीवनशैली की अहम भूमिका होती है।
  • कैंसर की गांठ कहां-कहां होती है?

    कैंसर की गांठ स्तन, गर्दन, थायरॉइड, फेफड़े, पेट, लिवर, आंत, त्वचा और लिम्फ नोड्स में हो सकती है। यह गांठ अक्सर बिना दर्द के होती है।

 

 

 

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