Life Of Sumit Mistri After Liver Transplant In Hindi: ऑर्गन डोनेशन शब्द बोलते ही हमारे मन में सबसे पहले यही ख्याल आता है कि काश! किसी को किसी के ऑर्गन की जरूरत ही न पड़े। हर कोई स्वस्थ जीवन जिए। लेकिन, फिर भी हम यह जानते हैं कि लाखों की संख्या में ऐसे लोग हैं, जिन्हें अगर ऑर्गन डोनर मिल जाएं, तो वे आम लोगों की तरह अच्छी और स्वस्थ जिंदगी जी सकते हैं। वहीं, ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जिन्हें समय पर ऑर्गन डोनर न मिलने के कारण, असमय मृत्यु हो गई। हालांकि, ऑर्गन डोनेशन की प्रक्रिया आम लोगों को जितनी सहज या सरल लगती है, सही मायनों में ऐसा नहीं है। सिर्फ दो ही किस्म के लोग ऑर्गन डोनेशन कर सकते हैं, एक मृत व्यक्ति के ऑर्गन, उनके परिवार के सदस्यों की पर्मिशन लेकर और दूसरा, कोई करीबी रिश्तेदार। सच कहा जाए, तो यहीं से इसकी जटिलताएं शुरू हो जाती हैं। इसके कई तरह के रिस्क हैं, कई तरह की दिक्कतें हैं और कई तरह की परेशानियां हैं, जिन्हें मरीज को भुगतने पड़ सकते हैं। 16 वर्षीय सुमित ऐसा ही एक बच्चा है, जिसे इतनी कम उम्र में ही ऑर्गन डोनर की जरूरत पड़ गई थी। सुमित मूल रूप से उत्तरांचल के कालीनगर गांव का है। हालांकि, लिवर ट्रांसप्लांट के बाद अब वह स्वस्थ जीवन जी रहा है। आम बच्चों की तरह हंस-बोल रहा है। लेकिन, उसका सफर कई तरह की विपत्तियों से भरा हुआ था। आइए, सुमित के लिवर ट्रांसप्लांट की कहानी जानते हैं, उसी की जुबानी जानते हैं।
हेल्थ से जुड़ी परेशानियां कब से शुरू हुईं?
यह सब लॉकडाउन में शुरू हुआ था। शुरुआती दिनों में मेरे सिर्फ पैरों में दर्द होता था। धीरे-धीरे मेरा खाना कम हो गया। खाना नहीं खाने के कारण, शरीर में कमजोरी रहने लगी और मेरी इम्यूनिटी भी काफी वीक हो गई। मैंने आसपास के डॉक्टर्स को दिखाया। लंबे समय तक मेरी परेशानी कम नहीं हुई। लॉकडाउन के कारण, हम कहीं दूर जा भी नहीं सकते थे। तकरीबन एक साल तक मैंने दवाईयां खाईं। बेशक, मुझे थोड़ा-बहुत आराम आ जाता था। लेकिन, पूरी तरह रिकवरी नहीं होती थी और ठीक से बीमारी का पता भी नहीं चला था।
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लिवर में प्रॉब्लम है, इसका पता कैसे चला?
एक साल दवाईयां खाने के बाद जब आराम नहीं आया, मेरे पापा मनोजीत मिस्त्री मुझे हलद्वानी ले गए। हम पहले से ही यह जानते थे कि वहां एक से एक अच्छे डॉक्टर्स हैं। फिर लॉकडाउन भी खुल गया था। ऐसे में पापा ने देरी नहीं की। मेरी हालत देखकर उन्होंने तुरंत अच्छे प्रोफेशनल के पास ले जाना जरूरी समझा। वहां भी करीब एक साल तक मेरा ट्रीटमेंट चला। लिवर फंक्शन टेस्ट की मदद से पहले ही पता चल चुका था मेरे लिवर में प्रॉब्लम है। हालांकि, डॉक्टर्स को यकीन था कि रिकवरी हो जाएगी। लेकिन, जैसे-जैसे समय बीतता गया, डॉक्टर्स को मेरी रिकवरी के आसार कम नजर आने लगे।
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जब रिकवरी नहीं हुई, तो डॉक्टर्स ने क्या किया?
जब रिकवरी नहीं हुई, तो डॉक्टर्स ने मुझे दिल्ली के आईएलबीएस यानी इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलेरी साइंस ले गए। वहां के बारे में पापा को डॉक्टर्स ने ही बताया था। वहां जाकर भी दोबारा मेरे कई टेस्ट किए गए, कई तरह की जांच की गई। वहां मेरा इलाज डॉ. विमियेंद्र पमेचा कर रहे थे। उन्हीं की दिशा-निर्देश अनुसार, मैं दवाईयां ले रहा था। दिल्ली में जब ट्रीटमेंट शुरू हुआ तो, मैं अक्सर गांव से दिल्ली में ट्रैवल करता था। हर 15 से 20 दिन में मुझे जाना पड़ता था। लेकिन, अक्टूबर 2022 को डॉक्टर ने यह क्लियर कर दिया था कि अब दवाईयां काम नहीं करेंगी, हमें लिवर ट्रांसप्लांट करवाना पड़ेगा।
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क्या आपको आसानी से डोनर मिल गया था?
जैसा कि आप जानते ही हैं कि डोनर या तो घर का कोई व्यक्ति होता है या फिर कोई मृत व्यक्ति। जाहिर है, ऐसे में डोनर की तलाश करना एक चैलेंज बन सकता था। लेकिन, मेरे पापा इसके लिए तैयार थे। हालांकि, यह परिस्थिति अपने आप में एक चैलेंजिंग थी। लेकिन, अस्पताल से ही हमें पता चला कि एक डोनर मिला है। हमारी आधी समस्या वहीं खत्म हो गई। ये बात अलग है, लिवर ट्रांसप्लांट के इस प्रोसेस में काफी ज्यादा पैसा लगा है। सिर्फ सर्जरी के लिए शायद मेरे पापा ने करीब 14 से 15 लाख रुपए खर्च किए हैं और इसके अलावा भी कई लाख खर्च हो चुके हैं।
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जब आपको पता चला कि लिवर ट्रांसप्लांट होगा, तो डरे नहीं? कितनी देर चली आपकी सर्जरी?
ऑर्गन डोनेशन के बारे में मैं जानता जरूर था, लेकिन यह प्रोसेस कैसे होता है और किस तरह के रिस्क होते हैं, यह सब मुझे नहीं पता था। 23 अप्रैल 2023 को मेरी सर्जरी हुई थी। उस दिन थोड़ा डर लग रहा था। लेकिन, सर्जरी के दौरान तो कुछ पता नहीं चलता। सर्जरी के बाद पता चला कि मेरी सर्जरी करीब 5 से 6 घंटे तक हुई थी। भगवान का शुक्र है कि सर्जरी सफल रही। क्योंकि डॉक्टर्स ने हमें पहले आगाह किया था कि सर्जरी के बाद मेरी बीमारी वापिस आ सकती है। हालांकि, इसका रिस्क सिर्फ 20 पर्सेंट है। इसलिए, हमने यह रिस्क लिया।
सर्जरी के बाद कितने दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा?
सर्जरी के बाद मैं पूरे 30 दिन अस्पताल में रहा। वो दिन काफी कष्टकारी थे। क्योंकि मैंने अपनी मां संगीत मिस्त्री और पिता को अपने लिए बहुत परेशान देखा था। लेकिन, मैंने कभी हिम्मत नहीं हारी। कभी भी नेगेटिव नहीं सोचा। ऐसा इसलिए कर पाया क्योंकि मेरी फैमिली ने मुझे बहुत सपोर्ट दिया था। मेरे मम्मी-पापा की पर्सनल लाइफ बिल्कुल खत्म हो चुकी थी। वे हर समय मेरी हेल्थ को लेकर कॉन्शस रहते थे। मेरे पापा ने दिल्ली में रहते थे, ताकि बार-बार गांव न आना-जाना पड़े।
सर्जरी के पहले की लाइफ और अब की लाइफ में क्या फर्क आया?
मैं कई सालों तक बीमार रहा हूं। मुझे भूख नहीं लगती थी। अक्सर पैरों में दर्द रहता था। शरीर में ताकत जैसे खत्म हो गई थी। लेकिन, सर्जरी के बाद से अब मैं यह निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि मुझे अब बहुत अच्छा लगता है। अब मैं खाना खाता हूं, बीमार नहीं हूं, मेरी मां की चिंता खत्म हो गई है और मेरे पिता भागदौड़ भी कम हो गई है। हां, मेरी लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव आ गए हैं, क्योंकि मुझे अब भी दवाईयां लेनी पड़ती हैं, जो कि मुझे लंबे समय तक लेनी पड़ेंगी। दिन की पहली दवाई खाने के लिए मैं बिल्कुल सुबह 5 बजे उठता हूं। दवाई खाने के बाद मैं फिर से सो जाता हूं। इसके बाद 7.00 बजे उठने के बाद अपने रेगुलर काम खत्म करके नाश्ता करता हूं। नाश्ते में लाइट चीजें, जैसे दलिया आदि लेता हूं। इसके बाद फिर दवा खाता हूं। इसी तरह, पूरे दिन कई बार दवाई लेनी पड़ती है। मैं मसालेदार खाना बिल्कुल कम कर दिया है और मैदा या जंक फूड बिल्कुल नहीं खाता हूं। इसके बावजूद, मैं कहना चाहूंगा कि लिवर ट्रांस्पलांट के बाद मैं अब हेल्दी हूं और फिट लाइफ जी रहा हूं।
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