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लिवर ट्रांसप्लांट कराना कब जरूरी हो जाता है? जानें इस दौरान किन बातों का रखें ध्यान

लिवर की बीमारियों के इलाज का आखिरी स्टेज ट्रांसप्लांट है। एक्सपर्ट से जानें, इस दौरान क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।
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लिवर ट्रांसप्लांट कराना कब जरूरी हो जाता है? जानें इस दौरान किन बातों का रखें ध्यान

When Liver Transplant Required in Hindi: लिवर शरीर का बहुत महत्वपूर्ण अंग है, जो भोजन पचाने, शरीर से वेस्ट निकालने का काम करता है। अगर लिवर शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर न निकालें, तो शरीर के अन्य अंग प्रभावित होने लगते हैं। इसलिए, लिवर का सेहतमंद रहना बहुत जरूरी है। लेकिन, अस्वस्थ जीवनशैली, जंक फूड, प्रोसेस्ड फूड, अल्कोहल और अनुवांशिक कारणों की वजह से लिवर का काम करना धीमा हो जाता है। अगर समय रहते लिवर की जांच न कराई जाए और इलाज न कराया जाए, तो समय के साथ लिवर हेपेटाइटिस, फिबरोसिस, सिरोसिस और लिवर फेल्योर जैसी स्टेज पर पहुंच जाता है। अंत में जब लिवर बिल्कुल काम करना बंद कर देता है, तो डॉक्टर के पास लिवर ट्रांसप्लांट के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचता। लिवर ट्रांसप्लांट कराने से पहले, प्रक्रिया के दौरान और बाद में कई तरह की सावधानियां बरतना जरूरी है।

क्यों बढ़ रहे हैं आंकड़े?

NCBI की रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में हर साल 20 लाख लोगों की मृत्यु का कारण क्रोनिक लिवर से जुड़ी बीमारियां है। इसका मतलब यह है कि 25 में से एक की मौत का कारण लिवर की बीमारी है। लिवर से जुड़ी दो तिहाई मौत पुरुषों की होती है। अगर भारत की बात की जाए, तो NCBI में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि WHO के अनुसार, साल 2017 में लिवर की बीमारी से देश में करीब 259749 लोगों की जान गई थीं। भारत में लिवर की बीमारी बढ़ने का कारण लोगों में जागरुकता की कमी है। इस बारे में नई दिल्ली के पीएसआरआई अस्पताल के लिवर ट्रांसप्लांट और सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के हेड डॉ. मनोज गुप्ता कहते हैं, “भारत में सबसे मुख्य वजह अल्कोहल है। इसके बाद वायरल इंफेक्शन, हेपेटाइटिस बी और सी, एक्यूट समस्याएं जैसे हेपेटाइटिस ए और ई लिवर की बीमारियां बढ़ा रही हैं। ऑटोइम्यून बीमारियां, कैंसर, ड्रग्स से जुड़ी समस्याएं, बिना किसी सलाह के हर्बल सप्लीमेंट्स लेने से भी लिवर की बीमारियोंं में इजाफा हो रहा है। भारत में नॉन अल्कोहिल्क फैटी लिवर की समस्या भी बहुत देखने को मिल रही है। इसकी वजह मेटाबॉलिक डिसआर्डर जैसेकि डायबीटिज, थॉयरायड, मोटापा, बीपी है। इसके अलावा, लोगों का कसरत न करना, जंक फूड खाना, संतुलित भोजन न करना भी फैटी लिवर का कारण बनता है। इसलिए लोगों को अपने खान-पान और फिजिकल गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिए।”

Liver transplant expert advice

लिवर ट्रांसप्लांट की सलाह कब दी जाती है?

पुणे के मणिपाल अस्पताल के मेडिकल गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट कंस्लटेंट डॉ. मंगेश केशवराव बोरकर ने बताया, “ जब रोगी को एक्यूट या क्रोनिक लिवर की बीमारी होती है और उनका लिवर सामान्य रुप से काम नहीं करता, तो ऐसे में लिवर ट्रांसप्लांट के सिवाय कोई और विकल्प नहीं रहता। इसे लिवर की बीमारी का आखिरी स्टेज कहा जा सकता है। इसमें हेमोक्रोमैटोसिस या विल्सन बीमारी, क्रोनिक हेपेटाइटिस बी या सी, अल्कोहिल्क लिवर की बीमारी, नॉन अल्कोलिक फैटी लिवर बीमारी, लिवर कैंसर या कोई अन्य जेनेटिक बीमारियां शामिल है। लिवर ट्रांसप्लांटेशन के मुख्य कारण सिरोसिस, लिवर कैंसर, एक्यूट लिवर फेल्योर या कोई अनुवांशिक बीमारी होती है। बीमारी को रोकने और लिवर को सही तरीके से काम करने के लिए लिवर ट्रांसप्लांट बहुत जरुरी है। लिवर ट्रांसप्लांट से पहले ये भी देखा जाता है कि क्या दवाइयों या किसी अन्य मेडिकल इलाज से लिवर खुद को रिपेयर नहीं कर पा रहा है।” 

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पहले क्या सावधानियां बरतें?

लिवर ट्रांसप्लांट काफी जटिल प्रक्रिया है, इसलिए इसे कराने से पहले रोगी और डोनर दोनों को हर तरीके से चेक करना बहुत महत्वपूर्ण है। इस बारे में डॉ. मंगेश केशवराव बोरकर कहते हैं, “लिवर ट्रांसप्लांट से पहले सुरक्षा से जुड़े कई पहलुओं को देखा जाता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि रोगी सर्जरी की प्रक्रिया के लिए फिट है। रोगी की सेहत चेक करने के लिए कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं। इसमें लिवर फंक्शन टेस्ट, सीटी स्कैन या अल्ट्रासाउंड के साथ-साथ दिल और फेफड़ों के फंक्शन की भी जांच की जाती है। इसके अलावा ये भी चेक किया जाता है कि रोगी को कोई संक्रमण न हो। इसके बाद जब सही डोनर मिल जाता है,तब सर्जरी की प्रक्रिया की जाती है। सर्जरी से पहले सभी परिस्थितियों की जांच कर लेने से सफलता का दर बढ़ जाता है।” 

ट्रांसप्लांट के दौरान जटिलताएं 

सर्जरी के दौरान जटिलताओं की बात करते हुए डॉ. मनोज गुप्ता कहते हैं, “लिवर ट्रांसप्लांट के दौरान दो सर्जरी होती है। पहली तो डोनर की होती है, इसमें ब्लीडिंग या संक्रमण की समस्या हो सकती है। लेकिन अगर डोनर सही चुना गया है, तो सर्जरी काफी अच्छे से हो जाती है। जिस रोगी को लिवर ट्रांसप्लांट किया जाता है, उसके लिए ये सर्जरी थोड़ी जटिल हो सकती है क्योंकि ये प्रक्रिया काफी लंबे समय तक चलती है। आमतौर पर सर्जरी के दौरान संक्रमण, ब्लीडिंग या रिजेक्शन की वजह से जटिलताएं आ सकती है। कई बार किडनी या हार्ट फेल्योर भी देखने को मिल सकता है। अगर डोनर और रोगी दोनों की सर्जरी से पहले सही तरीके से पूरी जांच कर ली जाए, तो इन सभी जटिलताओं से बचा जा सकता है।”

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इसके बाद सावधानियां 

ट्रांसप्लांट के बाद रोगी को कई बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि उसकी रिकवरी सही तरीके से हो सके। इस बारे में डॉ. मनोज गुप्ता ने बताया, “सर्जरी बहुत लंबी होती है और रोगी की स्थिति थोड़ी खराब होती है। हालांकि  ट्रांसप्लांट के बाद रिकवरी में समय लगता है, लेकिन अगर रोगी सावधानियां बरतें और खुद को अच्छे तरीके से मैनेज करें, तो रिकवरी काफी बेहतर तरीके से हो सकती है।” डॉ. मनोज के अनुसार रोगियों को इन बातों का खास ध्यान रखना बहुत जरूरी है।

  • दवाइयां समय पर लें।
  • टेस्ट समय पर करवाएं।
  • डॉक्टर जब भी फॉलो-अप के लिए कहें, तो जरूर जाएं।
  • संक्रमण से बचाव रखें।
  • मास्क जरूर पहनें।
  • खान-पान में संक्रमण से बचें।
  • लोगों से मिलना कम से कम रखें। भीड़ में जाने से बचें।
  • धूल-मिट्टी से बचाव रखें।
  • हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं।
  • संतुलित भोजन, नियमित कसरत करें।
  • वजन संतुलित रखें।
  • बिना डॉक्टर की सलाह लिए किसी भी दवाई का सेवन न करें। 

ट्रांसप्लांट के बाद 6 महीने तक सावधानी जरुर रखें। इस दौरान लिवर रिजेक्शन का भी खतरा रहता है, इसलिए डॉक्टर की बताई दवाइयों को समय पर जरूर लें। 

Image Courtesy: Freepik

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