भारत में पैदा होने वाले बच्चे कुपोषण, वायु प्रदूषण और अन्य बीमारियों की अपेक्षा जलवायु परिवर्तन से ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं। ऐसा हम नहीं, बल्कि गुरुवार को 'द लैंसेट' पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट बता रही है। लैंसट की इस रिपोर्ट में पूरे साल भर क्लाइमेट चेंज पर नजर रखी गई और लगभग 41 बिंदुओं का ध्यान रखते हुए अध्ययन किया गया। रिपोर्ट के अनुसार कुछ देशों में जलवायु परिवर्तन का बच्चों पर ज्यादा असर हो रहा है, जिसमें एक प्रमुख देश भारत भी है। रिपोर्ट की मानें, तो इस समस्या का जल्द से जल्द हल नहीं निकाला गया, तो ये बच्चे तीस से चालीस वर्ष की उम्र के होते होते कई घातक बीमारियों के शिकार हो जाएंगे। आइए हम आपको विस्तार से बताते हैं इस रिपोर्ट के बारे में।
विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक सहित 35 अन्य संस्थानों के 120 विशेषज्ञों के सहयोग से लैंसट के इस अध्ययन को तैयार किया गया है। इस रिपोर्ट की मानें, तो दुनिया के 35 ग्लोबल संगठनों के शोध के मुताबिक क्लाइमेट चेंज का हमारे जीवन पर एक व्यापक असर हो रहा है। लगातार मौसम में आने वाला बदलाव, तापमान में बढ़ोतरी और ग्लेशियर्स का लगातार पिघलने को लोग अब भी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, जबकि इसके कारण ही आज कई वेक्टर डिजीज पैदा हो रही हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे 1980 के दशक के बाद से हर साल 4 डिग्री के करीब तापमान बढ़ रहा है।
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हालांकि सरकारें इस ओर काम कर रही हैं पर ये गति धीमी है और जलवायु परिवर्तन की गति तेज। रिपोर्ट में क्लाइमेट चेंज और पेरिस संमझौते को लेकर भी निराशा व्यक्त की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कि जब तक दुनिया 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे अच्छी तरह से वार्मिंग को सीमित करने के लिए पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा नहीं करती है, तब तक पूरी पीढ़ी पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडराता रहेगा। वहीं रिपोर्ट की सह-लेखिका पूर्णिमा प्रभाकरन का कहना है कि कुछ देशों को जलवायु परिवर्तन से स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों की बढ़ने की संभावना है। जहां भारत अपनी विशाल आबादी और स्वास्थ्य असमानता, गरीबी और कुपोषण की उच्च दर के साथ खड़ा है वहां ये और एक बड़ी परेशानी का कारण हो सकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बच्चे की मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण, डायरिया संक्रमण का नए क्षेत्रों में फैल जाना है और अभी तक सरकारें इसका पूरा इंतजान नहीं कर पाई हैं। जबकि घातक हीटवेव से सिर्फ साल 2015 में देश के हजारों लोगों की मौत हो गई थी। इस तरह मक्खी-मछरों से फैलने वाली बीमारियां भी यहां तेजी से बढ़ रही हैं और हर साल इससे मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। रिपोर्ट की मानें तो साल 2019 से 2050 तक जीवाश्म इंधन के इस्तेमाल से 7.4 प्रतिशत सालाना कटौती ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस के महत्वाकांक्षी लक्ष्य तक सीमित कर सकती है।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान में वृद्धि, खाद्य सुरक्षा को खतरा और खाद्य कीमतों में वृद्धि से बच्चों के स्वास्थ्य को ज्यादा नुकसान हो रहा है। रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि कुपोषण और संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं जैसे कि विकसित विकास, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली और दीर्घकालिक विकास संबंधी समस्याओं से शिशु और छोटे बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। इसके अलावा, बच्चों को डेंगू जैसे संक्रामक रोगों के लिए विशेष रूप से अतिसंवेदनशील माना जाता है, जिसके कारण उनकी जान तक चली जाती है। बढ़ते तापमान और बदलते वर्षा पैटर्न उनके मद्देनजर डेंगू संचरण साल 2000 के बाद लगातार बढ़ रहा है। इस तरह दुनिया की लगभग आधी आबादी अब जोखिम में है। रिपोर्ट के अनुसार, अकेले भारत में 21 मिलियन से अधिक लोगों पर जलवायु परिवर्तन से बीमारियों का खतरा है। जिसके परिणामस्वरूप आने वाले कुछ सालों में शिशु मृत्यु दर और सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ सकती है। अब भारत को 2050 कार्बन उत्सर्जन में किसी तरह भी कमी लानी होगी। साथ-साथ सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, भारत को सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल, क्लीनर ईंधन के उपयोग को बढ़ाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को जल्द से जल्द ठीक करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
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