
दिल्ली NCR में प्रदूषण इस समय चर्चा में है। राजधानी क्षेत्र के कई हिस्सो में इन दिनों AQI 300 से ज्यादा बना हुआ है, जो कि बहुत गंभीर स्तर माना जाता है। इसी बीच प्रदूषण के खतरों से जुड़ी एक नई रिपोर्ट ने लोगों की चिंता और बढ़ा दी है। भारत में प्रदूषित हवा हर साल करोड़ों लोगों के फेफड़ों पर बोझ डाल रही है। इससे जुड़े आंकड़े डराने वाले हैं। The Lancet Countdown on Health And Climate Change (The Lancet Countdown Report 2024) के अनुसार, साल 2022 में भारत में वायु प्रदूषण के कारण करीब 17 लाख लोगों की मौत हुई थी।
रिपोर्ट बताती है कि ये मौतें मुख्य रूप से PM2.5 कणों (हवा में मौजूद बेहद सूक्ष्म धूल और प्रदूषक) के लंबे समय तक संपर्क में रहने से हुईं। ये कण फेफड़ों के अंदर तक पहुंच जाते हैं और धीरे-धीरे हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क और गर्भस्थ शिशु तक को प्रभावित कर सकते हैं।
पहले से बीमार लोगों के लिए ज्यादा खतरनाक है प्रदूषण
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में प्रदूषित हवा से जुड़ी बीमारियां सिर्फ सांस तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि अब ये पूरे शरीर को प्रभावित कर रही हैं। 2022 में वायु प्रदूषण से होने वाली कुल मौतों में सबसे ज्यादा संख्या ऐसे लोगों की थी, जो पहले से दिल की बीमारी, स्ट्रोक, फेफड़ों के संक्रमण और कैंसर से जूझ रहे थे।
यह संख्या साल 2010 की तुलना में करीब 38% अधिक है। यानी हवा के जरिए फैलने वाली बीमारियों और मौतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि देश की कुल मौतों में से हर 8 में से 1 मौत किसी न किसी रूप में वायु प्रदूषण से जुड़ी है और इसमें ग्रामीण इलाकों के लोग भी तेजी से प्रभावित हो रहे हैं।
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सिर्फ सेहत नहीं, आर्थिक नुकसान भी उतना ही बड़ा
लांसेट की रिपोर्ट में बताया गया कि वायु प्रदूषण का असर सिर्फ स्वास्थ्य पर नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। साल 2022 में भारत को इस वजह से हुए आर्थिक नुकसान का अनुमान GDP के लगभग 9.5% तक लगाया गया है। इसमें इलाज का खर्च, कामकाजी लोगों की उत्पादकता में कमी, और असमय मौतों से होने वाला नुकसान शामिल है।

डॉक्टर क्या कहते हैं
डॉक्टर्स का मानना है कि प्रदूषण से जुड़ी बीमारियां अब "धीमी महामारी" बन चुकी हैं। दिल्ली और उत्तर भारत में हर साल अक्टूबर से फरवरी के बीच प्रदूषण का स्तर “गंभीर” श्रेणी में पहुंच जाता है, जिससे अस्पतालों में सांस, खांसी और गले के संक्रमण के मामले बढ़ जाते हैं।
चेन्नई के SRM Global Hospitals के सीनियर कंसल्टैंट डॉ आर, नंदा कुमार कहते हैं, "हवा में मौजूद प्रदूषण का असर सिर्फ हमारे फेफड़ों पर नहीं पड़ता, बल्कि पूरे शरीर पर होता है। जब हम दूषित हवा में सांस लेते हैं, तो उसमें मौजूद छोटे-छोटे कण (PM2.5 और PM10) और जहरीली गैसें जैसे नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और ओजोन हमारे सांस की नली को परेशान करती हैं और सूजन पैदा करती हैं। अगर हम लंबे समय तक ऐसी हवा में रहते हैं, तो हमारा इम्यून सिस्टम (रोग-प्रतिरोधक क्षमता) कमजोर होने लगता है। शरीर में हल्की लेकिन लगातार सूजन बनी रहती है, जिससे बीमारियों से लड़ने की ताकत कम हो जाती है। इसका असर यह होता है कि हमें एलर्जी, अस्थमा और ऑटोइम्यून बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। रिसर्च में यह भी पाया गया है कि लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से हमारे सफेद रक्त कोशिकाओं (white blood cells) का काम करने का तरीका भी बदल सकता है। वे या तो जरूरत से ज्यादा सक्रिय हो जाती हैं या फिर बहुत कमजोर पड़ जाती हैं।"
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कौन ज्यादा प्रभावित है?
WHO के अनुसार, बच्चों और बुजुर्गों में प्रदूषण से अस्थमा, एलर्जी और श्वसन संक्रमण तेजी से बढ़े हैं। इसके अलावा इसके प्रभाव से गर्भवती महिलाएं भी प्रभावित होती हैं। लंबे समय तक PM2.5 एक्सपोजर से प्रीमैच्योर डिलीवरी और कम वजन वाले बच्चों का खतरा बढ़ता है।
कुल मिलाकर भारत में वायु प्रदूषण अब सिर्फ पर्यावरण की समस्या नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन चुका है। हर साल लाखों लोग इससे बीमार हो रहे हैं और मर रहे हैं। ऐसे में खुद को सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है।
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Oct 30, 2025 17:01 IST
Published By : Anurag Gupta