स्लिप्ड डिस्क जिसे हर्नियेटेड डिस्क भी कहा जाता है, यह स्पाइन की एक स्थिति है जो तब होती है जब स्पाइनल डिस्क की बाहरी परत फट जाती है और अंदर का जेल बाहर निकल जाता है। रीढ़ की हड्डी चार भागों से मिलकर बनती है- हड्डियाँ, डिस्क, नसें और सॉफ्ट मसल्स। सॉफ्ट मसल्स स्पाइन का लगभग 70 प्रतिशत भार वहन करते हैं, जबकि हड्डियों पर केवल 30 प्रतिशत भार ही होता है। इसलिए जब आपके मसल्स टिश्यू बैक को सपोर्ट नहीं कर पाते, तब अतिरिक्त लोड हड्डियों व डिस्क पर आता है। इस स्थिति में स्लिप डिस्क होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है।
यूं तो इस स्थिति में सर्जरी करने की सलाह दी जाती है, लेकिन इसके लिए कई पेन रिलीफ ट्रीटमेंट ऑप्शन भी मौजूद हैं। इतना ही नहीं, अगर उपचार में लापरवाही न बरती जाए तो अधिकतर मामलों में बिना सर्जरी के ही व्यक्ति ठीक हो जाता है।
लक्षण व कारण
स्लिप डिस्क होने पर व्यक्ति को कई लक्षण नजर आते हैं- जैसे कमर व गर्दन में दर्द व अकड़न की समस्या। यह दर्द कमर से होकर हाथ-पैरों में भी फैल सकता है। इतना ही नहीं, यह दर्द रात में बढ़ सकता है और व्यक्ति को उठने-बैठने में भी परेशानी हो सकती है। इसके अलावा मल त्याग, मूत्र विसर्जन में परेशानी तथा गुदा और जननांग के आसपास के हिस्से में भी व्यक्ति को झुनझुनी व सुन्न महसूस हो सकती है।
स्लिप डिस्क के कारणों की जड़ में व्यक्ति का गलत लाइफस्टाइल है। आजकल लोग लंबे समय तक बैठे रहते हैं और वह भी गलत पॉश्चर में, इसके अतिरिक्त गलत तरीके में वजन उठाना या रीढ़ की हड्डी में चोट लगने पर भी स्लिप डिस्क की समस्या हो सकती है। इस समस्या के परीक्षण के लिए शारीरिक जांच के अतिरिक्त एक्स-रे, सीटी स्कैन्स, एमआरआई व डिस्कोग्राम्स आदि की मदद ली जाती है।
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नॉन सर्जिकल ट्रीटमेंट
बीएलके सुपरस्पेशिलिटी हॉस्पिटल के स्पाइन सर्जरी डिपार्टमेंट के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. राजेश वर्मा कहते हैं कि ऐसे कई नॉन सर्जिकल ट्रीटमेंट हैं, जो स्लिप डिस्क की समस्या से निजात दिलाने में मददगार है। इनमें मुख्य हैं बेडरेस्ट, एंटी-इन्फ्लामेट्री ट्रीटमेंट, आईसपैक, फिजियोथेरेपी, मसल्स रिलैक्सेशन और कई मामलों में इंजेक्शन की मदद भी ली जाती है।
वहीं कुछ स्थितियों में सर्जरी की जरूरत पड़ती है, लेकिन आजकल ऐसी सर्जरी आ गई हैं, जिसमें बहुत छोटे लगभग एक सेंटीमीटर का छेदकर सर्जरी की जाती है। इसे एंडोस्कोपी सर्जरी कहा जाता है। इस तरह के आपरेशन में दूरबीन विधि से ज्यादातर मांसपेशियों और ऊतकों को नहीं निकाला जाता है, जिससे मरीज को आपरेशन के बाद रिकवरी में बेहद कम समय लगता है। वहीं कुछ समय पहले तक स्लिप डिस्क के लिए की जाने वाली सर्जरी में डेढ़ इंच की हड्डी काटने के बाद डिस्क निकाली जाती थी। इतना ही नहीं, जो हड्डी काटी थी, वहां पर भी फायब्रोसिस होने की अंशका रहती है।
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रखें इसका ध्यान
कहते हैं कि प्रिवेंशन इज़ बेटर देन क्योर। अर्थात इलाज से बेहतर बचाव है। इसलिए आपको स्लिप डिस्क की समस्या का सामना न करना पड़े, इसके लिए आप अपने लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव करें। इनमें लंबे समय तक एक ही स्थिति में न बैठें। अगर आपको लंबे समय तक बैठना होता है तो एक बार अपनी सीट से अवश्य उठें। साथ ही बैठते समय अपने पॉश्चर पर भी ध्यान दें। अपनी सीट और लैपटॉप की हाइट को भी एडजस्ट करें। वह बहुत अधिक ऊंचा या नीचा नहीं होना चाहिए। व्यायाम को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं और एक एक्टिव लाइफस्टाइल अपनाएं।
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