Andhvishwas or Science: भारत के कुछ गांव में बच्चे जब पैदा होते हैं तो उन्हें लोहे से दागा जाता है। इसके पीछे इन लोगों का तर्क है कि ऐसा करना बच्चों को भविष्य में बीमार पड़ने से बचा सकता है। मीडिया रिपोर्ट में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जब निमोनिया और अलग-अलग बीमारियों से बचाने के लिए लोगों ने अपने नवजात बच्चों को दागा है। ऐसे बच्चों को विशेषतौर पर गर्दन, पेट और शरीर के अलग-अलग अंगों पर गर्म लोहे से दागा जाता है। लेकिन, यह अंधविश्वास कहां तक सही है और इसके बारे में डॉक्टर की राय क्या है? जानते हैं इस बारे में डॉ. विक्रम सिंह, डायरेक्टर एंड कंसल्टेंट, विक्रम क्लिनिक एंड डे केयर सेंटर, जयपुर से।
पैदा होते ही बच्चे को लोहे से दागना बीमारी से बचा सकता है?
डॉ. विक्रम सिंह, बताते हैं कि ''भारत के कुछ गांवों में बच्चे को जन्म के समय लोहे से दागना एक पुराना अंधविश्वास है जिसका वैज्ञानिक कोई समर्थन नहीं है।'' यह मानना कि लोहे से दागने से बच्चे बीमार नहीं पड़ेंगे, गलत है और इससे बच्चे को असाधारण दर्द और संक्रमण का खतरा हो सकता है। शारीरिक स्वास्थ्य को सही रखने के लिए स्वच्छता, सही पोषण और सही टीकाकरण बहुत जरूरी हैं, न कि ऐसे रिवाज जो केवल परंपरा में चले आ रहे हैं।
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लोहे से दागने पर संक्रमण का खतरा
आगे डॉ. विक्रम सिंह, बताते हैं कि लोहे से दागने की प्रक्रिया में संक्रमण का खतरा रहता है, खासकर अगर साफ-सफाई का ध्यान न रखा जाए। इससे बच्चे की सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। बच्चों को सुरक्षित और स्वस्थ रखने के लिए नियमित चिकित्सा जांच, पोषण, साफ-सफाई और आधुनिक चिकित्सकीय उपायों का पालन करें। न कि इस तरह का अंधविश्वास फॉलो करें।
बच्चे की सेहत बिगाड़ सकता है लोहे से दागना
NIH की इस रिपोर्ट में बताया है कि दागना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें किसी जीवित व्यक्ति की त्वचा पर एक निशान या प्रतीक जला दिया जाता है। यह गर्म लोहे की छड़ का उपयोग करके किया जाता है। प्राचीन काल में, इसका उपयोग दंड के रूप में या किसी गुलाम या उत्पीड़ित व्यक्ति की पहचान के लिए किया जाता था। लेकिन, समय के साथ नवजात बच्चों को इस तरह से दागना रोगों के लिए एक पारंपरिक प्रथा बन गई। इस रिपोर्ट में 10 साल के बच्चे की चर्चा भी है जिसे लोहे से दागा गया था, जिसके बाद इन घावों से मवाद आ गया और बच्चे की हालत बेहद खराब हो गई। इसके अलावा मेडिकल चेकअप में बच्चे के पेट में सूजन, हेपेटोमेगाली और पेट में मुक्त तरल पदार्थ के प्रमाण मिले। असल में बच्चे को ग्रेड II हेपेटिक एन्सेफैलोपैथी हुआ था जो लिवर की बीमारी के कारण होने वाली मस्तिष्क से जुड़ी बीमारी है। ऐसे में बच्चे का इलाज किया गया और माता-पिता को बताया गया कि लोहे से दागने से कोई भी बीमारी सही नहीं होती बल्कि, बच्चे की सेहत और बिगड़ सकती है।
दंडनीय अपराध है ये
NIH की इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि इस क्रूर प्रथा के जारी रहने का मूल कारण अशिक्षा, अंधविश्वास और मानक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच का अभाव है, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। इस प्रकार से किसी भी बच्चे को लोहे से दागना भारतीय दंड संहिता की धारा 324 के अंतर्गत एक दंडनीय अपराध है और यह गंभीर बाल शोषण का एक रूप हो सकता है। इतना ही नहीं इस प्रथा को बढ़ावा देने वाले अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिल सकती है।
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इसके अलावा जिस समुदाय में यह भयानक प्रथा सबसे ज्यादा प्रचलित है, वहां लोगों को इसके प्रति जागरूक करने और शिक्षित करने की जरुरत है। अंत में डॉ. विक्रम सिंह कहते हैं कि अंधविश्वासों की जगह वैज्ञानिक और सही उपचार अपनाना कहीं अधिक फायदेमंद और सुरक्षित होता है। बच्चों का स्वास्थ्य हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, इसलिए ऐसी परंपराओं से बचना चाहिए जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं।