
यह आज से नहीं बल्कि महाभारत काल से देखा जा रहा है कि गर्भवती महिला गर्भ में पल रहे अपने शिशु से बात करती है। इससे शिशु के विकास पर बहुत गहरा असर पड़ता है। वह मानसिक रूप से बेहतर इंसान बनता है और मजबूत होता है और घर के संस्कार उसे गर्भ में ही मिल जाते हैं। इस तरह देखा जाए तो गर्भ में अपने बच्चे से हर गर्भवती महिला को बातें करनी चाहिए। साइंटिफिकली भी यह साबित हो चुका है कि गर्भ में पल रहे शिशु से बात करने से बच्चा स्वस्थ और खुश रहता है। पेश है, मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, पटपड़गंज की वरिष्ठ सलाहकार और प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. परिणीता कलीता की राय।
बच्चा कब से सुनने लगता है
गर्भ में पल बच्चा जब 26 से 30 सप्ताह का हो जाता है, तभी से वह बाहर की आवाजें सुनने-समझने और पहचानने लगता है। अगर कोई बच्चे से बात करता है, तो वे उस पर प्रतिक्रिया भी देते हैं। आमतौर पर बच्चे सबसे ज्यादा अपनी मां की आवाज को पहचानते हैं। मां की आवाज सुनने से बच्चे का मन खुश रहता है। इससे बच्चे का विकास भी बेहतर तरीके से होता है। साथ ही मां द्वारा किए जा रहे से संवाद के कारण वह मां के साथ एक गहरा रिश्ता महसूस करने लगता है।
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बच्चे से किस तरह बातचीत करें
जैसा कि आपने जाना कि 26 से 30 सप्ताह के बाद से बच्चा बाहरी आवाज को सुनने-समझने लगता है और बातों पर प्रतिक्रिया करना सीख लेता है। ऐसे में मां के लिए यह जिम्मेदारी बनती है कि वह गर्भ में पल रहे अपने शिशु के साथ बातचीत करते वक्त सतर्क रहे। गर्भावस्था की इस समयावधि में शोर-शराबे वाली जगह न जाएं। उस दौरान जोर आवाज में बातचीत न करें और पति के साथ मतभेद के दौरान भी अपनी वाणी को नियंत्रण में रखें। अगर बच्चा गर्भ में ज्यादा मूवमेंट कर रहा है, जिस वजह से मां सो नहीं पा रही है, तो इस स्थिति में मां अपने शिशु से बातचीत कर सकती है और उसे अच्छे और प्यारे गाने सुना सकती है। इससे बच्चा शांत हो जाता है और मां को भी सोने में मदद मिलती है।
गर्भ में पल रहे शिशु से बातचीत के फायदे
मन शांत होता है: मां जब अपने बच्चे से बात करती है, तो इससे बच्चे की हार्ट बीट सामान्य होती है और उससे सूदिंग इफेक्ट पड़ता है। इससे पता चलता है कि मां की आवाज सुनने भर से बच्चे का मन शांत हो जाता है। साथ ही, बच्चे से बातचीत करने से मां भी खुशी का अहसास करती है। अगर बच्चा प्रतिक्रिया करे, तो मां की खुशी भी दुगनी हो जाती है।
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रिश्ता गहरा होता है: मां को अपने गर्भ में पल रहे शिशु से जब-तब बात करनी चाहिए। बात करने से बच्चा अपनी मां के साथ गहरा लगाव महसूस करता है। उसे अच्छा लगता है कि उसकी मां उसके साथ अपनी आपबीती साझा कर रही है या उससे उसका हालचाल पूछ रही है। बातचीत करने के दौरान मां को चाहिए कि वह अपने पेट को सहलाए। ऐसा करने से बच्चा मां का स्पर्श महसूस करता है। कहने की जरूरत नहीं है कि ये सभी बातें मां-बच्चे के बीच के रिश्ते को मजबूत बनाती हैं।
सकारात्मकता बढ़ती है: हर व्यक्ति का अपना एक नेचर होता है। यह गर्भावस्था में ही तय हो जाता है। बच्चे में सकारात्मकता बढ़ाने के लिए जरूरी है कि मां बच्चे के साथ अच्छी बातें करें, उसे किताबें पढ़कर सुनाएं और अच्छे मेलोडी किस्म के गाने सुनें। ऐसा करने बच्चा गर्भ में ही सकारात्मक रहना सीख लेता है। जन्म के बाद उसके स्वभाव में सकारात्मकता अपने-आप ही झलकने लगती है।
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