ओवर पेरेंटिंग क्या है? जानें कहीं आप भी तो अंजाने में नहीं कर रहे अपने बच्चों की गलत परवरिश

अगर आप अपने बच्चों के साथ ओवरपेरेंटिंग करते हैं तो इसका बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इससे वे अपने फैसले खुद लेने में सक्षम नहीं बन पाते हैं।
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ओवर पेरेंटिंग क्या है? जानें कहीं आप भी तो अंजाने में नहीं कर रहे अपने बच्चों की गलत परवरिश


हमेशा से माता-पिता अपने बच्चे को लेकर ओवर-प्रोटैक्टिव होते हैं। वह उनकी सुरक्षा और बेहतर भविष्य के लिए हमेशा उन्हें डांटते और टोकते रहते हैं कि तुम्हें ये नहीं करना चाहिए या ये करना चाहिए। उन्हें उनके दोस्तों या दादा-दादी के साथ भी छोड़ना नहीं चाहते हैं । दरअसल उन्हें यह डर सताता है कि कहीं उनके बच्चों को कुछ परेशानी न हो। लेकिन इस चक्कर में माता-पिता अपने बच्चों के मन-मस्तिष्क पर अनावश्यक दबाव बनाने लगते हैं। साथ ही उनके इनोवेशन और आजादी के दायरे को भी सीमित कर देते हैं क्योंकि वे अपने बच्चे को असफल होते नहीं देखना चाहते हैं। अगर आपका बच्चा गिर जाता है तो, आप परेशान हो जाते हैं या घबरा जाते हैं कि कहीं उसे चोट तो नहीं लग गई लेकिन इस समय आपको एक माता-पिता के रूप में बच्चे को मजबूत बनाने की जरूरत है। आपको उन्हें खुद दौड़कर उठाने की जगह उन्हें कहना की जरूरत है कि क्या हुआ अगर गिर गए तो, उठो और अपने कपड़े साफ करो। इससे उन्हें भी परिस्थिति का मुकाबला करने की ताकत मिलेगी और वे मजबूत बनकर उभरेंगे। लेकिन अगर हर समय उन्हें हर बात पर डांटते-बोलते रहेंगे तो, वे कोई भी काम करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे।

क्या है ओवरपेरेंटिंग (What is Overparenting)

ओवर पेरेंटिंग का मतलब है कि आप अपने बच्चे के जीवन को कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं। ओवर पेरेंटिंग में माता-पिता यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि उनका बच्चा सही फैसले ले, उन्हें किसी भी तरह की चोट से बचाना, उन्हें किसी भी तरह के इनोवेशन या नई चीज करने से रोकना और उन्हें अपने अनुसार रखने की कोशिश करना ताकि वह काम आपकी इच्छानुसार करें।

ओवरपेरेंटिंग के लक्षण (Signs of Overparenting)

1. उनके फैसले खुद लेना

एक माता-पिता के रूप में आप चाहते हैं कि आपके बच्चे हमेशा अच्छा करें। इस वजह से कई बार आप उनको समझ नहीं पाते और उनके फैसले खुद लेने लगते हैं। जैसे अगर आप पांच साल के छोटे बच्चे को सब्जी खाने के लिए डांट रहे हैं या 15 साल के लड़के को उसका हेयर स्टाइल बदलने को कह रहे हैं तो, ये ओवर पेरेंटिंग की निशानी है। आप उन्हें अपने उनकी पसंद और आजादी के अनुसार काम करने नहीं दे रहे हैं। इससे बच्चे में भी चिड़चिड़ापन देखने को मिलता है।

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2. बच्चे को कंट्रोल करना 

कभी-कभी माता-पिता ये मान लेते हैं कि किसी काम को करने का उनका तरीका ही बेहतरीन या सर्वश्रेष्ठ है। ऐसे में वे अपने बच्चे को हर काम करने के लिए हमेशा ऑर्डर देते रहते हैं। जैसे उन्हें इस रंग की पैंट के साथ ऐसे रंग का शर्ट पहनना चाहिए या फिर उन्हें अपने खिलौने को ऐसे ही रखना चाहिए। आप इस तरह से उनके सोचने के तरीके को भी प्रभावित करते हैं। यह भी एक ओवरपेरेंटिंग की निशानी है।

3. बच्चे को असफल होते नहीं देखना चाहते 

माता-पिता अपने बच्चे को असफल होते नहीं देख सकते हैं। ये डर उनके मन में हावी हो जाता है। इसलिए वह अपने बच्चे को करियर या फिर पढ़ाई के मामले में खुद फैसले लेना सही समझते हैं। साथ ही वह उन्हें बाहर या दोस्तों के साथ घूमने या पिकनिक पर भी जाने का फैसला खुद लेने की कोशिश करते हैं। इससे बच्चे बहुत बार उनसे बाते छिपाने की कोशिश करते हैं और उनमें फैसले लेने की क्षमता का भी विकास नहीं हो पाता है।

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4. आप बहुत चिंता करते हैं

यदि आप हमेशा अपने बच्चे को लेकर चिंतित रहते हैं तो , ये भी ओवर पेरेंटिंग की निशानी है। अगर आप अपने 13 साल के बच्चे को भी अकेले सड़क पार करने नहीं देते तो, इससे उन्हें आगे परेशानी हो सकती है। आप बच्चे को खरोंच लगने पर भी घबरा जाते हैं। 

5. दूसरे आपके बच्चे के साथ कैसा व्यवहार करें

कभी-कभी माता-पिता अपने बच्चे के लिए ये भी सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि उनके शिक्षक, दोस्त और रिश्तेदार उनके साथ कैसा व्यवहार करें। कई बार तो इसे लेकर आपने माता-पिता और शिक्षक के बीच बहस होते हुए भी देखा होगा। कई बार माता-पिता अपने रोते हुए बच्चे को चुप कराने के लिए शिक्षक को उन्हें होमवर्क न देने को भी कहते हैं।

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Image Credit- family service of northeast wisconsin

6. आप अपने बच्चे पर हावी होने लगे हैं

ओवरपेरेंटिंग में कभी-कभी आप अपने बच्चे पर हावी होने लगते हैं। लेकिन इस वजह से वह जीवन जीने की कला सीख नहीं पाते हैं। साथ ही आप उन्हें कोई काम सौंपने से भी डरते हैं कि वह कोई काम नहीं कर पाएंगे या फिर उसमें भी आप उन्हें ऑर्डर देते रहते हैं। इससे वह जिम्मेदारी नहीं ले पाते हैं। 

एक माता-पिता के रूप में आपको अपने बच्चे को आत्मनिर्भर और फैसले लेने लायक बनना चाहिए। उन्हें खुद गिरने और संभलने देना चाहिए ताकि वह जिंदगी का दौड़ में हारने के बाद टूटे न बल्कि फिर उठ खड़े हो। इसके अलावा आपको अपने बच्चे के भविष्य के बारे में उनसे बात करना चाहिए कि वे क्या करना चाहते हैं लेकिन उनके फैसले खुद नहीं लेने चाहिए। साथ ही उन्हें नई-नई चीजें सीखने के लिए प्रोत्साहित भी करते रहना चाहिए।

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