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प्रेग्नेंसी में डायबिटीज: WHO ने जारी की मां और बच्चे के केयर की गाइडलाइन

प्रेग्नेंसी में डायबिटीज होने पर मां और बच्चे को खतरे तो कई हैं लेकिन अगर सही तरीके से मैनेज किया जाए, तो खतरे को बहुत कम किया जा सकता है।
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प्रेग्नेंसी में डायबिटीज: WHO ने जारी की मां और बच्चे के केयर की गाइडलाइन

दुनिया में हर साल करीब 2.1 करोड़ महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज से प्रभावित होती हैं। यानी हर छह में से एक प्रेग्नेंट महिला को हाई ब्लड शुगर से जुड़ी समस्याएं होती हैं। इसे जेस्टेशनल डायबिटीज भी कहते हैं। यह कोई सामान्य मेडिकल कंडीशन नहीं है, बल्कि ध्यान न दिया जाए तो ये मां और बच्चे, दोनों के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। भारत जैसे देश में, जहां डायबिटीज की समस्या पहले से ही तेजी से बढ़ रही है और बड़ी संख्या में महिलाएं बिना डायग्नोसिस के रहती हैं, ये और भी गंभीर और खतरनाक हो जाती है। कई बार महिलाएं प्रेग्नेंसी तक नहीं जान पातीं कि उन्हें डायबिटीज है, और यही देरी आगे चलकर समस्याएं बढ़ा देती है। इसी बढ़ते खतरे को देखते हुए WHO ने 2025 में प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली डायबिटीज को मैनेज करने के लिए गाइडलाइन जारी की हैं, जिसका मकसद है कि हर महिला को गर्भावस्था के दौरान सुरक्षित देखभाल मिल सके।


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प्रेग्नेंसी में डायबिटीज क्यों चिंता की बात है?

प्रेग्नेंसी में हाई ब्लड शुगर इसलिए खतरनाक माना जाता है कि इसका असर सिर्फ मां नहीं, बल्कि उसके गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी पड़ता है। अगर शुगर कंट्रोल में न रहे तो मां को हाई ब्लड प्रेशर, प्री-एक्लैम्प्सिया और समय से पहले डिलीवरी का जोखिम बढ़ जाता है। इसके अलावा बढ़े हुए ब्लड शुगर के कारण बच्चा जरूरत से ज्यादा बड़ा हो सकता है, जिससे डिलीवरी मुश्किल हो जाती है। जन्म के बाद उसे लो शुगर की दिक्कत भी हो सकती है। लंबे समय में ऐसे बच्चों में मोटापा और टाइप 2 डायबिटीज का खतरा ज्यादा पाया गया है। इसलिए शुरुआती देखभाल जरूरी है।

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क्या कहती हैं डॉक्टर?

फोर्टिस हॉस्पिटल, BG रोड बेंगलुरु की प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की सीनियर कंसल्टेंट डॉ अनु श्रीधर कहती हैं, "जेस्टेशनल डायबिटीज किसी भी गर्भवती महिला को हो सकती है, चाहे उसे पहले कभी डायबिटीज न रही हो। लेकिन इसे मैनेज करने में लाइफस्टाइल की भूमिका इतनी बड़ी है कि लोग इसे समझते नहीं। उम्र या परिवार में डायबिटीज का इतिहास जैसी चीजें हमारे हाथ में नहीं होतीं, लेकिन इस दौरान रोजमर्रा की आदतें, जैसे- खाना, एक्टिविटी, नींद और तनाव आदि का सीधा असर मां और बच्चे दोनें पर पड़ता है।"

प्रेग्नेंसी में डायबिटीज मैनेज करने की WHO की गाइडलाइन

हाल में WHO ने प्रेग्नेंसी में डायबिटीज को मैनेज करने की गाइडलाइन जारी की है। यह गाइडलाइन डॉक्टर्स और स्वास्थ्य सेवा में लगे लोगों के साथ-साथ आम लोगों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें WHO ने वो सभी बातें बताई हैं, जिनपर प्रेग्नेंसी में डायबिटीज होने के दौरान ध्यान देना जरूरी है। आइए जानते हैं इस गाइडलाइन की जरूरी बातें।

डाइट और फिजिकल एक्टिविटी

WHO ने अपनी गाइडलाइन में सबसे ज्यादा जोर इसी बात पर दिया है कि प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज की समस्या होने पर महिला को अपनी डायबिटीज और फिजिकल एक्टिविटी पर ध्यान देना चाहिए। इसी के जरिए ब्लड शुगर कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है। WHO के अनुसार जेस्टेशनल डायबिटीज होने पर महिला इन बातों का ध्यान रखें।
खान-पान संतुलित हो यानी बैलेंस्ड डाइट फॉलो करें।

  • खाने में सब्जियां, दालें, फल, साबुत अनाज आदि जरूर शामिल हों।
  • खाने में मीठे की मात्रा बहुत कम हो, खासकर रिफाइंड शुगर या इससे बनने वाली चीजें कम से कम खाएं।
  • डाइट कंट्रोल के साथ रोज हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करना बहुत फायदेमंद सकता है।
  • लाइफस्टाइल में ये छोटे-छोटे बदलाव शुगर कंट्रोल को बेहतर करती हैं और दवाओं की जरूरत कम कर सकती हैं।

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प्रेग्नेंसी की शुरुआत में सही जानकारी क्यों जरूरी है?

WHO कहता है कि महिलाओं को साफ और समझ में आने वाली जानकारी मिलनी चाहिए। यह जानकारी उन्हें अपने शरीर को समझने में मदद करती है और उन्हें भरोसा देती है कि वे अपनी सेहत खुद संभाल सकती हैं। इसलिए डॉक्टर्स की जिम्मेदारी है कि महिला को ये बातें समझाएं।
प्रेग्नेंसी में डायबिटीज कंट्रोल न करने के क्या खतरे हो सकते हैं।

महिलाओं की जिम्मेदारी है कि अगर डॉक्टर उनसे इस बारे में बात न करे, तो उन्हें खुद से सवाल अपने डॉक्टर से पूछने चाहिए।

घर पर शुगर मॉनिटरिंग क्यों जरूरी है?

WHO कहता है कि किसी भी तरह की डायबिटीज हो, घर पर शुगर चेक करना जरूरी है। इससे पता चलता रहता है कि खाना, एक्टिविटी और रूटीन पर क्या असर पड़ रहा है। अगर महिला को पहले से डायबिटीज है, तो लगातार शुगर मॉनिटर करने से फायदा मिल सकता है। इससे शुगर का पैटर्न समझ आता है और अचानक उतार-चढ़ाव को रोका जा सकता है। जिन महिलाओं को पहले से डायबिटीज है, उन्हें प्रेग्नेंसी की शुरुआती जांच में HbA1c टेस्ट जरूरी कराना चाहिए।

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मां और बच्चे की अतिरिक्त जांच क्यों जरूरी है?

डायबिटीज वाली प्रेग्नेंसी में कुछ जांचें समय पर करना बेहद जरूरी होता है। इससे डॉक्टर को मां की सेहत और बच्चे की ग्रोथ दोनों की साफ तस्वीर मिलती है। गर्भावस्था की शुरुआत में एक स्कैन किया जाता है, और जरूरत के अनुसार आगे ग्रोथ स्कैन भी होते हैं। अगर महिला को पहले से डायबिटीज है, तो आंखों और किडनी की शुरुआती जांच भी की जाती है ताकि किसी भी समस्या को शुरू में ही पकड़ लिया जाए। ये जांचें इसलिए जरूरी हैं क्योंकि सही समय पर की गई निगरानी कई जटिलताओं को आगे बढ़ने से रोक सकती है।

प्रेग्नेंसी में वजन का सही बढ़ना क्यों जरूरी है?

गर्भावस्था में वजन बढ़ना बिल्कुल सामान्य बात है, लेकिन कितना बढ़ना सही है, यह हर महिला के लिए अलग होता है। ज्यादा वजन या बहुत कम वजन, दोनों ही समस्याएं बढ़ा सकते हैं। भारत में अक्सर महिलाओं को कहा जाता है कि “दो लोगों का खाना खाओ”, और इसी कारण शुगर और वजन तेजी से बढ़ जाता है। इसलिए यह समझना जरूरी है कि संतुलित खाना और डॉक्टर की सलाह के अनुसार वजन बढ़ना ही सुरक्षित है।

तनाव से बचाने में परिवार का सपोर्ट क्यों जरूरी?

बहुत-सी महिलाएं प्रेग्नेंसी में डायबिटीज का पता चलते ही खुद को दोष देने लगती हैं। इस तरह Guilt और Stress में रहने से शुगर और बढ़ता है। इस समय उन्हें सही जानकारी की जरूरत होती है। ऐसे में परिवार और डॉक्टर, दोनों का रोल महत्वपूर्ण हो जाता है। डॉक्टर अगर सही और स्पष्ट जानकारी दें और परिवार के लोग महिला का साथ दें, तो महिला खुद को बेहतर तरीके से संभाल सकती है।

प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज को मैनेज करने में परिवार, खासकर पार्टनर का सपोर्ट बहुत मायने रखता है। खाने-पीने से लेकर रूटीन और आराम तक, कई चीजें घर पर ही तय होती हैं। अगर परिवार थोड़ा सहयोग करे, महिला को सही खाना खिलाया जाए, उसको टहलने या थोड़ी फिजिकल एक्टिविटी का समय दिया जाए, और उसकी जांचों पर ध्यान दिया जाए, तो शुगर कंट्रोल काफी बेहतर हो सकता है। भारत में जहां महिलाएं खुद से ज्यादा दूसरों की जरूरतें देखती हैं, वहां परिवार का साथ और भी जरूरी हो जाता है।

पुरानी परंपराओं और गलत सलाह में अंतर समझना जरूरी

हमारे यहां प्रेग्नेंसी को लेकर कई परंपराएं और धारणाएं चली आ रही हैं, जैसे प्रेग्नेंसी में चलना-फिरना नहीं चाहिए, मीठा खाने से बच्चा खुश रहता है, ज्यादा टेस्ट करवाना ठीक नहीं। डायबिटीज वाली महिलाओं के लिए ऐसी सलाह नुकसान कर सकती हैं। इसलिए जरूरी है कि महिलाएं ऐसी बातों में आने के बजाय, डॉक्टर की बताई बातों पर ध्यान दें और कोई कंफ्यूजन होने पर डॉक्टर से ही उसके बारे में पूछें।

डिलीवरी के समय अतिरिक्त ध्यान की जरूरत क्यों?

डायबिटीज वाली प्रेग्नेंसी में डिलीवरी की प्लानिंग थोड़ा पहले शुरू हो जाती है। महिला को यह जानना चाहिए कि लेबर कब शुरू हो सकता है, कब अस्पताल जाना है और डिलीवरी के दौरान किन बातों पर ध्यान दिया जाएगा। यह जरूरी नहीं कि हर बार सर्जरी ही हो। कई मामलों में सामान्य डिलीवरी भी संभव होती है। डिलीवरी के बाद बच्चे की शुगर जांच भी की जाती है, ताकि कोई समस्या शुरू में ही पकड़ में आ जाए।

डिलीवरी के बाद सही देखभाल क्यों जरूरी?

कई महिलाओं को लगता है कि डिलीवरी के बाद डायबिटीज खत्म हो जाती है, लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता। खासकर जेस्टेश्नल डायबिटीज में, भले ही शुगर बाद में सामान्य हो जाए, भविष्य में टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए डिलीवरी के 6 से 12 हफ्ते बाद महिला को फि से शुगर टेस्ट कराना जरूरी है और उसके बाद हर साल एक बार जांच करानी चाहिए। यह छोटी सी सावधानी आगे चलकर कई बड़ी समस्याओं को रोक सकती है।

बच्चा होने के बाद किन बातों का ध्यान रखना जरूरी? 

WHO के अनुसार जिन Pregnancies में शुगर ज्यादा रहती है, उन बच्चों में आगे चलकर मोटापा, BP और टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ सकता है। इसका मतलब यह नहीं कि समस्या तय है, बल्कि यह कि शुरुआत से ही बच्चे की Lifestyle पर थोड़ा ध्यान देना चाहिए, जैसे ऐसे बच्चों की डाइट बचपन से ही बैलेंस्ड होनी चाहिए, उन्हें खेल-कूद में एक्टिव रखना चाहिए और स्क्रीन टाइम कम रखना चाहिए। अगर परिवार शुरुआत से यह समझ ले, तो बच्चे की भविष्य की सेहत काफी बेहतर रह सकती है।

कुल मिलाकर WHO की नई गाइडलाइन एक सीधी बात कहती है कि अगर सही समय पर सही देखभाल मिले, तो डायबिटीज वाली प्रेग्नेंसी भी बिल्कुल सुरक्षित हो सकती है। संतुलित खाना, नियमित एक्टिविटी, नियमित शुगर चेक, सही सलाह और समय पर मॉनिटरिंग के द्वारा इसे बेहतर तरीके से मैनेज किया जा सकता है।

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FAQ

  •  प्रेगनेंसी में डायबिटीज हो तो क्या करें?

    सबसे पहले शुगर को कंट्रोल में रखना जरूरी है। डॉक्टर की सलाह के अनुसार डाइट, एक्टिविटी, शुगर मॉनिटरिंग और जरूरी जांचें समय पर करवाएं। सही देखभाल से प्रेगनेंसी सुरक्षित रहती है।
  • क्या डायबिटिक मां का स्वस्थ बच्चा हो सकता है?

    हां, बिल्कुल हो सकता है। अगर शुगर सही तरीके से कंट्रोल रहे और नियमित जांचें होती रहें, तो मां और बच्चा दोनों बिल्कुल स्वस्थ रह सकते हैं।
  • अगर मां को डायबिटीज है तो बच्चे को क्या होता है?

    अगर शुगर ज्यादा रहती है, तो बच्चे में वजन ज्यादा होने, जन्म के बाद लो शुगर या आगे चलकर मोटापा और डायबिटीज का खतरा बढ़ सकता है। लेकिन अगर शुगर कंट्रोल में रहे, तो इन जोखिमों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
  • क्या डायबिटीज के मरीज की नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है?

    हां, संभव है। यह शुगर कंट्रोल, बच्चे की ग्रोथ और बाकी मेडिकल स्थिति पर निर्भर करता है। कई महिलाओं की नॉर्मल डिलीवरी भी होती है। फैसला डॉक्टर स्थिति देखकर लेते हैं।
  • प्रेगनेंसी में डायबिटीज का पता कब चलता है?

    कई महिलाओं में यह दूसरे तिमाही में पता चलता है, जब ग्लूकोज टेस्ट किया जाता है। कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी से पहले ही डायबिटीज होती है, जिसकी पुष्टि शुरुआती जांच में हो जाती है।

 

 

 

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  • Nov 15, 2025 15:40 IST

    Modified By : Anurag Gupta
  • Nov 15, 2025 15:40 IST

    Published By : Anurag Gupta

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