प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं के शरीर में भ्रूण की ग्रोथ के चलते कई तरह के बदलाव होते हैं। इन बदलावों में हार्मोनल बदलावों को भी शामिल किया जाता है। यह बदलाव महिलाओं को उल्टी, चक्कर आना, जी मिचलाना, पैरों में सूजन की वजह बन सकते हैं। लेकिन, कुछ महिलाओं के शरीर में होने वाले बदलावों की वजह से प्रेग्नेंसी में डायबिटीज (Gestational Diabetes Mellitus - GDM) की समस्या हो सकती है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें पहली बार गर्भावस्था के दौरान महिला का ब्लड शुगर लेवल सामान्य से अधिक हो जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हर महिला को इंसुलिन की जरूरत होती है? या क्या इसे केवल डाइट और एक्सरसाइज से नियंत्रित किया जा सकता है? इस लेख में साईं पॉलिक्लीनिक की सीनियर गाइनाक्लॉजिस्ट डॉ. विभा बंसल से जानेंगे कि गर्भावधि मधुमेह यानी प्रेग्नेंसी में डायिबिटीज (Gestational Diabetes Mellitus - GDM) क्यों होता है, इसकी जटिलताएं क्या हैं, इसका इलाज कैसे होता है और कब इंसुलिन थेरेपी जरूरी मानी जाती है।
प्रेग्नेंसी में डायबिटीज के क्या लक्षण होते हैं? - Common Symptoms Of Gestational Diabetes
जब महिला का शरीर गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता या इंसुलिन के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया कम हो जाती है, तो रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ने लगता है। इसे ही गर्भावधि मधुमेह कहा जाता है। यह आमतौर पर गर्भावस्था के दूसरे या तीसरे ट्राइमेस्टर में पाया जाता है और डिलीवरी के बाद अक्सर अपने आप ठीक हो जाता है। लेकिन इसे अनदेखा करना माँ और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है। इस दौरान महिला के शरीर में दिखाई देने वाले लक्षणों को आगे बताया गया है।
- बार-बार प्यास लगना
- बार-बार पेशाब आना
- थकान
- धुंधला दिखना
- अत्यधिक भूख लगना
- इन लक्षणों की पुष्टि ब्लड शुगर टेस्ट (OGTT) से होती है।
क्या हर केस में इंसुलिन जरूरी होता है?
डॉक्टर्स बताते हैं कि प्रेग्नेंसी में डायबिटीज के हर केस में महिलाओं को इंसुलिन लेने की जरूरत नहीं होती। प्रेग्नेंसी में डायबिटीज के इलाज की शुरुआत आमतौर पर आहार में बदलाव (Medical Nutrition Therapy), शारीरिक गतिविधि और ब्लड शुगर मॉनिटरिंग से की जाती है। लेकिन कुछ मामलों में जब ये उपाय कारगर नहीं होते, तब डॉक्टर इंसुलिन थेरेपी की सलाह देते हैं।
प्रेग्नेंसी में डायबिटीज होने पर किन महिलाओं को इंसुलिन की जरूरत होती है? - Which Women Need Insulin With Gestational Diabetes?
जब डाइट और एक्सरसाइज से ब्लड शुगर कंट्रोल न हो
यदि महिला का फास्टिंग ब्लड शुगर 95 mg/dL से ऊपर या खाना खाने के 1 घंटे बाद 140 mg/dL से ऊपर रहता है, तो इंसुलिन शुरू करने की आवश्यकता हो सकती है।
शिशु की ग्रोथ सामान्य से अधिक होना (Macrosomia)
अधिक ब्लड शुगर की वजह से बच्चा गर्भ में असामान्य रूप से बड़ा हो सकता है, जिससे नार्मल डिलीवरी में समस्या आती है।
यदि मां को पहले से कोई अन्य बीमारी हो
जैसे हाई ब्लड प्रेशर, थायरॉयड समस्या या पहले से डायबिटीज का इतिहास हो।
अगर महिला को पहले गर्भ में गर्भावधि मधुमेह हो चुका हो
ऐसी महिलाओं में फिर से प्रेग्नेंसी में डायबिटीज होने की संभावना अधिक होती है।
इंसुलिन थेरेपी कैसे दी जाती है? - How is insulin therapy given?
- इंसुलिन को इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है, क्योंकि इसे गोली के रूप में नहीं दिया जा सकता।
- डॉक्टर ब्लड शुगर लेवल के आधार पर दिन में एक या एक से अधिक बार इंसुलिन लेने की सलाह दे सकते हैं।
- यह पूरी तरह सुरक्षित होता है और शिशु को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता।
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प्रेग्नेंसी में डायबिटीज एक सामान्य लेकिन गंभीर स्थिति है, जिसे नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है। इंसुलिन का उपयोग केवल तब किया जाता है जब डाइट और एक्सरसाइज से शुगर लेवल नियंत्रित नहीं हो पाता। यह एक सुरक्षित, प्रभावी और अस्थायी उपाय है जो मां और शिशु दोनों की सेहत के लिए फायदेमंद होता है। डॉक्टर की सलाह, नियमित निगरानी और सकारात्मक सोच से आप एक स्वस्थ गर्भावस्था पूरी कर सकती हैं।
FAQ
प्रारंभिक प्रेगनेंसी में कौन-कौन सी तकलीफ होती है?
प्रारंभिक गर्भावस्था के लक्षणों में मासिक धर्म का न आना, मतली और उल्टी, स्तन में परिवर्तन, थकान और बार-बार पेशाब आना शामिल हैं। इनमें से कई लक्षण तनाव या बीमारी जैसे अन्य कारकों के कारण भी हो सकते हैं।प्रेग्नेंसी में डायबिटीज को कैसे रोंके?
प्रेग्नेंसी में डायबिटीज को रोकने के लिए आप प्रेग्नेंसी से प्लान करने से पहले से ही शुगर का सेवन सीमित मात्रा में करें। इसके अलावा, रोजाना योग और एक्सरसाइज करें। साथ ही, पोष्टिक आहार का सेवन करें और नियमित रूप से शुगर लेवल की जांच करें।डायबिटीज से पीड़ित गर्भवती महिला को क्या खाना चाहिए?
गर्भावस्था के लिए संतुलित आहार लेना चाहिए। इसमें लगभग आधी कैलोरी स्वस्थ कार्बोहाइड्रेट वाले खाद्य पदार्थों से आनी चाहिए । इनमें फल, सब्जियां, साबुत अनाज, दूध और दही शामिल हैं।