तकनीक के विकास से जितनी सुविधाएं मिलीं उतनी स्वास्थ्य को समस्याएं। स्ट्रीट लाइट से लेकर घर की लाइट तक हमने अपना तारों से जगमगाता आसमान बना लिया। अब रात रात जैसी नहीं होती। रात भी दिन है और दिन तो दिन है ही। आर्टिफिशियल लाइट से जगमागाती रातें देखने में मोहक लग सकती हैं, पर स्वास्थ्य के लिहाज से नुकसानदायक हैं। क्या आप जानते हैं नींद के समय आर्टिफिशियल लाइट का ज्यादा एक्पोसजर आपको कैंसर, हृदय रोगी, मोटापा और अवसादग्रस्त बना सकता है। गुरुग्राम के अवैकनिंग रिहैब में मनोचिकित्सक डॉ. प्रज्ञा मलिक बता रही हैं कि आर्टिफिशियल लाइट आपकी नींद पर कैसे प्रभाव डालती है। यह लाइट आपके शरीर को बाहर और भीतर दोनों तरफ से नुकसान पहुंचा रही होती है। तो वही, नेशनल स्लीप फाउंडेशन (National sleep foundation) का भी मानना है कि आर्टिफिशियल लाइट से शरीर का मेटाबॉलिज्म, सरकाडियम रिदम, मेलाटोनिन हार्मोन और स्लीप साइकिल प्रभावित होता है।
लाइट और नींद का संबंध
नेशनल स्लीप फाउंडेशन का मानना है कि लाइट का हमारी नींद पर नाटकीय रूप से प्रभाव पड़ता है। लाइट से सरकाडियन रिदम (circadian rhythm), मेलाटोनिन हार्मोन के प्रोडक्शन और नींद के चक्र (sleep cycle) पर प्रभाव पड़ता है। इन्हें क्रमवार समझते हैं।
लाइट और सरकाडियन रिदम
मनोचिकित्सक प्रज्ञा मलिका का कहना है कि सरकाडियन रिदम हमारे शरीर में 24 घंटे का फिक्स स्लोप होता है। जिसे दिमाग में छोटे-छोटे पार्ट्स इसको कंट्रोल करते हैं। जब आंखों के माध्यम से नेचुरल लाइट सरकाडियन रिदम तक पहुंचती है तब उसे दिन में रोशनी और रात में अंधेरा मिलता है, लेकिन आर्टिफिशियल लाइट रात में भी दिमाग को रोशनी का संदेश देती है जिस वजह से सरकाडियन रिदम प्रभावित होता है। लाइट और दिमाग के रिश्ते के बारे में बताते हुए प्रज्ञा मलिक कहती हैं कि लाइट रेटिनी के माध्यम से दिमाग में जाती है। जो सबसे पहले दिमाग को और फिर शरीर को अलर्ट करती है कि अब हमें उठना चाहिए। इस तरह से लाइट नींद को प्रभावित करती है। सरकाडियन रिदम के प्रभावित होने से मेटाबॉलिज्म का खराब होना, वजन बढ़ना, दिल की बीमारियां होना और कैंसर का खतरा तक बढ़ जाता है। तो वहीं, सरकाडियन रिदम के प्रभावित होने से हमारा मूड और मेंटल हेल्थ भी प्रभावित होती है।
प्रज्ञा मलिक का कहना है कि जब हमें अंधेरा दिखाई देता है तब हमारे दिमाग तक संदेश पहुंचता है कि हमें सोना है। लाइट हमारे दिमाग में मिड पॉइंट का काम करती है। हमारा सरकाडियन रिदम काम करना शुरू करता है। हमारा इंटरनल बायलॉजिकल क्लॉक सरकाडियन रिदम की वजह से काम करता है। जिसकी वजह से हमारी बॉडी का नेचुरल स्लीप साइकिल बन पाता है। जब हमारा यह सिरकाडियम रिदम प्रभावित होना शुरू हो जाता है तो हमारे अंदर से मेटाबॉलिज्म निकलता है जिसकी वजह से हमारी नींद या तो बढ़ती है या घटती है। जिस दिन हमारे लाइट का एक्सपोजर ज्यादा होगा उस दिन हमारी नींद प्रभावित होगी। उस दिन या तो नींद कम आएगी या देर से आएगी।
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लाइट और मेलाटोनिन हार्मोन
मेलाटोनिन शरीर में बनने वाला एक हार्मोन है। लाइट इसके प्रोडक्शन पर असर डालती है। जब अंधेरा होता है तब इसका प्रोडक्शन बेहतर होता है और आर्टिफिशिय लाइट इसके निर्माण में बाधा डालती है। यह हार्मोन नींद के लिए जरूरी है। जो लाइट की वजह से प्रभावित होता है। तो ब्लू लाइट त्वचा के लिए भी खतरनाक होती है।
लाइट और स्लीप साइकिल
ज्यादा लाइट के एक्सपोजर से नींद की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। डॉ. प्रज्ञा मलिक का कहना है कि हर व्यक्ति चार से छह स्लीप साइकिल से गुजरता है। हर स्लीप साइकिल 70 से 120 मिनट का होता है। ज्यादा आर्टिफिशिलय लाइट के एक्सपोजर में आने से सोते समय आपकी नींद टूट सकती है, गहरी नींद का समय कम होना, बार-बार जागना जैसी परेशानियां होती हैं। बेहतर स्लीप के लिए स्लीप डायरी मेंटेन की जा सकती है।
शिफ्ट वर्क डिसऑर्डर
अधिक समय लाइट के प्रभाव में रहने से आप शिफ्ट वर्क डिसऑर्डर का भी शिकार हो सकते हैं। डॉ. प्रज्ञा मलिक का कहना है कि इस डिसऑर्डर में शिफ्ट बदलती रहती हैं। वो फिक्स नहीं होती। बहुत से लोग सुबह तो कभी रात में काम कर रहे होते हैं। इन लोगों की नींद पूरी नहीं होती है। इनके मन में हमेशा ज्यादा नींद की इच्छा रहती है। इन लोगों को या तो ज्यादा नींद आती है या झुंझलाहट। उनके मूड स्विंग्स होने लगते हैं। यह सब किसी भी वक्त लाइट के प्रभाव में रहने से होता है। इससे बॉडी क्लॉक पर प्रभाव पड़ता है।
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बचने के उपाय
डॉ. प्रज्ञा मलिक ने बचने के निम्न उपाय बताएं हैं-
लाइट थेरेपी
डॉ. प्रज्ञा मलिक का कहना है कि जिन लोगों को लाइट की वजह से नींद में दिक्कत आती है उनके लिए लाइट थेरेपो को अपनाया जाता है। जब उन्हें नींद से संबंधित विकार होते हैं तब हम इस थेरेपो को अपनाते हैं। इसमें लाइट की फ्रिक्वेंस और टाइमिंग को बैलेंस करके नींद के स्लीप साइकिल को बेहतर करने की कोशिश की जाती है। इस थेरेपी में ब्लू लाइट को ब्लॉक कर देते हैं। उनका कहना है कि बाथरूम, बैडरूम, टीवी आदि की आर्टिफिशियल लाइट को हम नियंत्रित कर सकते हैं, जो हमें अच्छी नींद के लिए करना चाहिए। इससे आपकी स्लीप क्वालिटी सुधरेगी।
स्लीप हाइजीन
स्लीप हाइजीन के अंतर्गत रोज एक ही समय पर सोना, बिस्तर साफ होना, फोन या अन्य गैजेट्स का इस्तेमाल सोते समय न करना, शामिल है।
सोते समय अंधेरा
नेशनल स्लीप फाउंडेशन का सुझाव है कि सोते समय आप अपने बेडरूम में पूरी तरह से अंधेरा कर लें। हो सके तो बहुत ही डिम लाइट जलने दें। जिससे आपको रिलैक्स महसूस हो। तो वहीं, सभी तरह के तकनीकी उपकरणों का प्रयोग कम करें। इन उपकरणों की वजह से आपकी सरकाडियन रिदम, मेलाटोनिन प्रोडक्शन प्रभावित होता है।
खानपान और व्यायाम
खाने में कैफीन का सेवन कम करने नींद बेहतर होती है। तो वहीं जो लोग नियमित एक्सरसाइज करते हैं उनका शरीर स्वस्थ और खुश रहता है। उन्हें नींद भी बेहतर आती है।
डॉक्टर से सलाह
अगर बहुत दिनों से आपको नींद नहीं आ रही है। जिसकी वजह से आपका मूड चिडचिड़ा और आप तनावग्रस्त रहने लगे हैं। तो वहीं आपके सोचने पर भी प्रभाव पड़ने लगा है, तो ऐसे में आप डॉक्टर से मिलें। वे आपको बेहतर सलाह दे पाएंगे।
नींद स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी है। तो वहीं, आर्टिफिशियल लाइट इस नींद पर बुरा प्रभाव डालती हैं। अच्छी नींद के लिए जरूरी है कि आप अपने सरकाडियन रिदम को रि-शिड्यूल करें। ताकि वह दिन को दिन और रात को रात समझ पाए। इससे आपकी नींद की क्वालिटी बेहतर होगी।
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