आजकल फर्टिलिटी से जुड़ी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। प्रेग्नेंसी अब उतनी आसान नहीं रह गई। इसका सबसे बड़ा कारण है लोगों को लाइफस्टाइल, डाइट और स्ट्रेस। इसके अलावा ज्यादा उम्र में जाकर शादी करना या फिर बच्चे प्लान करना। होता यह है कि जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है आपकी प्रजनन क्षमता के साथ अंडे और स्पर्म की क्वालिटी घटती जाती है। इसके अलावा कई बार पीसीओडी, थायराइड और एंडोमेट्रिओसिस जैसी समस्याएं भी फर्टिलिटी और प्रेग्नेंसी को प्रभावित करती है। ऐसे में लोग अपनी फर्टिलिटी का सही अनुमान लगाने के लिए AMH और AFC जांच करवाते हैं। अब पहले जान लेते हैं ये दोनों है क्या और फिर जानेंगे डॉ. मानिनी पटेल, सीनियर कंसल्टेंट - ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी, अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल, जयपुर से कि आपकी उम्र से कैसे प्रभावित करती है।
एएमएच (AMH) क्या है?
एएमएच, एंटी-मुलरियन हार्मोन है, जो महिला के अंडाशय में बनता है। एएमएच टेस्ट, एक ब्लड टेस्ट के जरिए किया जाता है और इसे पता चलता है कि आपके अंडाशय में शेष अंडों की संख्या कितनी है। अगर संख्या अच्छी है तो आपकी फर्टिलिटी अच्छी है और अगर इस संख्या में कमी है तो आपके लिए भविष्य में कंसीव करना मुश्किल हो सकता है। जैसे-जैसे महिला की उम्र बढ़ती है, अंडों की संख्या कम हो सकती है और एएमएच का स्तर भी घट सकता है।
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एएफसी (AFC) क्या है?
एएफसी एंट्रल फॉलिकल काउंट है, जो ट्रांसवजाइनल अल्ट्रासाउंड के माध्यम से चेक किया जाता है। इसमें अंडाशय पर मौजूद छोटे फॉलिकल्स की संख्या गिनी जाती है, जो अभी विकसित हो रहे बाद में जाकर अंडे का रूप लेंगे। इससे अंडों की संख्या और भंडार का अनुमान लगाने में मदद मिल सकती है। इसके जरिए महिला की प्रजनना क्षमता और किस उम्र तक प्रेग्नेंसी कंसीव की जा सकती है इस बारे में पता लगाया जा सकता है।
आयु AMH और AFC स्तरों को कैसे प्रभावित करती है?
डॉ. मानिनी पटेल, बताती हैं कि महिलाओं की प्रजनन क्षमता समझने के लिए दो महत्वपूर्ण पैमानों का इस्तेमाल किया जाता है – एंटी-मुलरियन हार्मोन (AMH) और एंट्रल फॉलिकल काउंट (AFC)। उम्र बढ़ने के साथ अंडाशय में मौजूद अंडों की संख्या और उनकी गुणवत्ता दोनों घटती जाती हैं। इसी वजह से AMH और AFC लेवल पर भी असर पड़ता है।
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किस उम्र के बाद AMH और AFC का स्तर गिरने लगता है?
आमतौर पर 30 साल की उम्र के बाद से AMH का स्तर धीरे-धीरे गिरने लगता है और 35 के बाद यह और तेजी से कम होता है। कम AMH का मतलब है कि अंडाशय में रिजर्व यानी अंडों की संख्या कम हो रही है। इसी तरह, AFC जो अल्ट्रासाउंड से पता चलता है, उसमें भी उम्र बढ़ने पर फॉलिकल्स की संख्या कम दिखती है। युवा महिलाओं में AMH और AFC सामान्य या अधिक होते हैं, जबकि उम्र बढ़ने पर ये घटकर बांझपन या गर्भधारण में कठिनाई का संकेत दे सकते हैं।
हालांकि यह ध्यान रखना जरूरी है कि हर महिला का रिजर्व अलग-अलग होता है, इसलिए सिर्फ उम्र ही नहीं बल्कि जेनेटिक्स, जीवनशैली, हार्मोनल और मेडिकल कारण भी इन पर असर डाल सकते हैं। अगर किसी महिला को गर्भधारण में दिक्कत आ रही है, तो समय पर जांच कराना और डॉक्टर की सलाह लेना सबसे सुरक्षित तरीका है।
FAQ
प्रेगनेंसी के लिए कितना एएमएच चाहिए?
प्रेग्नेंसी के लिए इसे 1.0 ng/mL से अधिक माना जाता है, हालांकि 1.0-3.0 ng/mL की सीमा भी काफी मानी गई हैं। लेकिन इसका 4.0 ng/mL से हाई होना पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) का संकेत भी हो सकता है। इसलिए जांच जरूरी है।आयु के अनुसार एएमएच स्तर क्या होना चाहिए?
आयु के अनुसार एंटी-मुलरियन हार्मोन (AMH) के स्तर जहां 25 वर्ष की आयु में 3.0 ng/mL तक होना चाहिए वहीं, 30 में 2.5 ng/mL, 35 में 1.5 ng/mL, 40 में 1 ng/mL, और 45 में 0.5 ng/mL तक गिर जाता है। इस तरह उम्र बढ़ने तक ये गिरता जाता है।एएमएच टेस्ट कब करना चाहिए?
एंटी-मुलरियन हार्मोन टेस्ट पीरियड्स के दौरान किसी भी समय किया जा सकता है, क्योंकि इस हार्मोन का स्तर इस समय स्थिर रहता है और इसका सही अनुमान मिल पाता है। यह टेस्ट खास तौर पर उन महिलाओं के लिए उपयोगी है जो देर से कंसीव करना चाहती हैं या जिन्हें प्रेग्नेंसी से जुड़ी कई समस्याएं हैं।