How Long Does It Take To Reverse Pcos: पीसीओएस की समस्या में महिलाओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति में महिला के अंडाशय से एग समय से पहले रिलीज होने लगता है, बाद में यह सिस्ट में बदल जाते हैं। इस स्थिति में महिला में हार्मोन्स असंतुलित होने लगते हैं। इसके कारण पीरियड्स अनियमित होना, एक्ने, वेट गेन और आगे चलकर गर्भधारण में भी परेशानी हो सकती है। ध्यान न देने पर यह समस्या काफी गंभीर रूप भी ले सकती है। पीसीओएस को लेकर भी कई ऐसी ही कही-सुनी बातें सामने आती रहती हैं, जिनमें कोई फैक्ट न होने के बावजूद लोग इन पर भरोसा कर लेते हैं। ऐसे ही पीसीओएस से जुड़े कुछ मिथक की सच्चाई बताते हुए फर्टिलिटी एक्सपर्ट और गायनेकोलॉजिस्ट डॉ ईशा कपूर ने इंस्टाग्राम पर वीडियो शेयर किया है। आइये इस लेख के माध्यम से जानें इन मिथक के बारे में।
पीसीओएस से जुड़े मिथक और उनकी सच्चाई- Pcos Myths and Facts
मिथक- पीसीओएस की समस्या कभी भी ठीक नहीं होती है
एक्सपर्ट के मुताबिक पीसीओएस को जड़ से खत्म करने का कोई इलाज तो नहीं हैं। लेकिन लाइफस्टाइल में बदलाव करके इसे कंट्रोल रखा जा सकता है। हेल्दी डाइट, डेली वर्कआउट, स्ट्रेस मैनेजमेंट और लाइफस्टाइल में बदलाव करके पीरियड्स साइकिल को रेगुलेट, इंसुलिन रेजिडेंस को कम करने और फर्टिलिटी बढ़ाने में मदद मिल सकती है। फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के जरिये पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं को गर्भधारण करने में मदद मिल सकती है। साथ ही, दवाओं के जरिए इस समस्या को कंट्रोल रखा जा सकता है।
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मिथक- पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) में कंसीव करना मुश्किल होता है
एक्सपर्ट के मुताबिक यह एक मिथक है कि पीसीओएस के साथ कंसीव नहीं किया जा सकता है। जबकि पीसीओएस में ओव्यूलेशन असंतुलित होने के कारण महिलाओं के लिए गर्भधारण करना केवल थोड़ा मुश्किल हो सकता है। इसके अलावा, लाइफस्टाइल में बदलाव दवा और फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के जरिये पीसीओएस वाली महिलाएं गर्भधारण कर सकती हैं।
मिथक- पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) का पता लेवल अल्ट्रासाउंड के जरिये लगाया जा सकता है
एक्सपर्ट के मुताबिक यह बात भी केवल एक मिथक ही है। क्योंकि इस दौरान केवल ओवेरियन सिस्ट का पता अल्ट्रासाउंड के जरिये किया जाता है। लेकिन पीसीओएस का पता लगाने के लिए केवल यह तरीका नहीं है। यह हार्मोन्स से जुड़ी एक समस्या है, जिसमें अनियमित मासिक धर्म, अतिरिक्त एण्ड्रोजन स्तर और पॉलीसिस्टिक अंडाशय जैसे लक्षणों से नजर आने लगते हैं। इलाज के लिए मेडिकल हिस्ट्री, शारीरिक परीक्षण, हार्मोन के स्तर को मापने के लिए ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड इमेजिंग तकनीक इस्तेमाल की जाती है। वहीं इसका इलाज केवल अल्ट्रासाउंड पर निर्भर होने के बजाय सही ट्रीटमेंट और लाइफस्टाइल मैनेजमेंट पर भी निर्भर करता है।
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अगर आपको भी अक्सर इस तरह की कही सुनी बातें पता चलती हैं, तो एक बार डॉक्टर से संपर्क जरूर करें। लेख में दी गई जानकारी पसंद आई हो, तो इसे शेयर करना न भूलें।
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