
प्रदूषण से निजात दिलाने के लिए दिल्ली सरकार ने कृत्रिम बारिश का सफल परीक्षण किया जिसके परिणाम नहीं मिले। हालांकि बताया जा रहा है कि दिल्ली में क्लाउड सीडिंग परीक्षणों से उन स्थानों पर पार्टिकुलेट मैटर को कम करने में मदद मिली, जहां यह प्रक्रिया की गई थी। यह प्रक्रिया लगभग आधे घंटे तक चली। फ्लेयर का प्रभाव करीब 17 से 18 मिनट तक रहा।
बारिश कराने के लिए क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) का इस्तेमाल होता है। यह एक वैज्ञानिक तरीका है, जिसमें आसमान में बहुत छोटे कण जैसे ड्राई आइस, सोडियम क्लोराइड या सिल्वर आयोडाइड छोड़े जाते हैं। इन कणों की वजह से बादलों में नमी बढ़ती है और बारिश होती है। इसे उन जगहों पर किया जाता है जहां प्रदूषण बहुत ज्यादा हो या सूखा पड़ा हो, ताकि थोड़ी देर के लिए हवा की गुणवत्ता सुधर सके। दिल्ली में भी इसे इसलिए किया गया ताकि लोगों को सांस लेने में राहत मिल सके। कुछ लोगों के मन में सवाल उठता है कि क्या केमिकल्स की मदद से कराई गई बारिश सेहत के लिए हानिकारक हो सकती है? इस सवाल का जवाब हम आगे जानेंगे। इस विषय पर बेहतर जानकारी के लिए हमने Dr. B Viswesvaran, Consultant Interventional Pulmonology And Sleep Medicine,Yashoda Hospitals, Hyderabad से बात की।
क्या क्लाउड सीडिंग सेहत के लिए हानिकारक है?- Is Cloud Seeding Safe For Health
Dr. B Viswesvaran ने बताया कि स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाए, तो क्लाउड सीडिंग से सीधा कोई बड़ा खतरा नहीं होता। इसमें इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल बहुत कम मात्रा में छोड़े जाते हैं और ऊंचाई पर फैल जाते हैं, जिससे जमीन पर रहने वाले लोगों पर इनका असर बहुत मामूली होता है। जैसे कि सिल्वर आयोडाइड, जो सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला तत्व है, उसके बारे में शोध बताते हैं कि इसका स्तर सेहत के लिए तय मानकों से काफी कम होता है। इसलिए लोगों को इससे सांस या त्वचा संबंधी कोई नुकसान होने की संभावना बहुत कम होती है।
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प्रदूषण के बीच सेहतमंद रहने के लिए क्या करें?- What To Stay Healthy Amid Pollution
बारिश के बाद प्रदूषण में थोड़ी राहत मिलने से अस्थमा, सीओपीडी या दिल के मरीजों को थोड़ी राहत मिल सकती है, लेकिन उन्हें फिर भी सावधानी रखनी चाहिए। अचानक मौसम में बदलाव और नमी बढ़ने से कभी-कभी सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। इसके अलावा, बारिश के बाद घरों में नमी और फफूंदी (Mold) भी बढ़ सकती है, जिससे एलर्जी या अस्थमा की समस्या बढ़ जाती है।
Dr. B Viswesvaran ने बताया कि क्लाउड सीडिंग को एक पर्यावरणीय प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि स्वास्थ्य खतरे के रूप में। यह सिर्फ अस्थायी राहत देता है। दिल्ली के लोगों को चाहिए कि वे अपनी सांस की दवाएं साथ रखें, घर में हवा का अच्छा वेंटिलेशन बनाए रखें और बाहर जाते समय एन95 मास्क पहनें।
क्लाउड सीडिंग अस्थायी समाधान है
Dr. B Viswesvaran ने बताया कि यह समझना जरूरी है कि क्लाउड सीडिंग केवल अस्थायी समाधान है। बारिश से कुछ समय के लिए हवा में मौजूद धूल या प्रदूषण के कण नीचे बैठ जाते हैं, जिससे एक्यूआई बेहतर हो सकता है, लेकिन लंबे समय तक असर के लिए असली कारणों, जैसे वाहनों का धुआं, फैक्ट्रियों का उत्सर्जन, पराली जलाना और निर्माण कार्य की धूल पर काबू करना जरूरी है।
निष्कर्ष:
क्लाउड सीडिंग प्रदूषण घटाने का एक उपाय है, लेकिन हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए दीर्घकालिक उपायों पर ही सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा। जैसे- ताजी हवा में सांस लेना, एलर्जी और प्रदूषण से बचना वगैरह।
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image credit: zeenews.com, sgttimes.com
FAQ
क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें बादलों में नमक, सिल्वर आयोडाइड या ड्राई आइस जैसे कण छोड़े जाते हैं ताकि बारिश की बूंदें बनने में मदद मिले और कृत्रिम बारिश कराई जा सके।कृत्रिम बरसात कैसे कराई जाती है?
इस प्रक्रिया में हवाई जहाज या ड्रोन के जरिए बादलों में केमिकल्स छोड़े जाते हैं। ये कण जलवाष्प को आकर्षित कर बूंदें बनाते हैं, जिससे कुछ ही समय में कृत्रिम बारिश शुरू हो जाती है।क्लाउड सीडिंग सेहत के लिए खतरा है?
वैज्ञानिकों के अनुसार, क्लाउड सीडिंग में इस्तेमाल केमिकल्स की मात्रा बहुत कम होती है, जो जमीन तक पहुंचते-पहुंचते हानिकारक नहीं रह जाती है। इसलिए यह प्रक्रिया सेहत के लिए सुरक्षित मानी जाती है।
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Oct 29, 2025 18:24 IST
Published By : Yashaswi Mathur