
पिछले कुछ वर्षों में युवाओं के बीच ई-सिगरेट (E-cigarettes) और वेपिंग (Vaping) का चलन तेजी से बढ़ा है। कई लोग मानते हैं कि ई-सिगरेट पारंपरिक सिगरेट की तुलना में सुरक्षित विकल्प है, लेकिन हालिया शोध और डॉक्टरों की चेतावनियां इस धारणा को गलत साबित कर रही हैं। डॉ. रमन नारंग, सीनियर कंसल्टेंट, मेडिकल और हीमैटोलॉजी ऑन्कोलॉजिस्ट, एंड्रोमेडा कैंसर हॉस्पिटल, सोनीपत के अनुसार, ई-सिगरेट में मौजूद निकोटीन, फ्लेवरिंग केमिकल्स और अन्य विषैले तत्व न केवल फेफड़ों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं, बल्कि यह लंग कैंसर का खतरा भी बढ़ा रहे हैं।
ई-सिगरेट और वेपिंग क्या है?
American Lung Association पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, ई-सिगरेट बैटरी से चलने वाले ऐसे उपकरण होते हैं जो निकोटीन युक्त तरल (e-liquid) को गर्म करके धुआं नहीं बल्कि एरोसोल पैदा करते हैं, जिसे लोग इनहेल करते हैं। इस प्रक्रिया को वेपिंग कहा जाता है। ई-सिगरेट को मुख्य रूप से ई-लिक्विड में निकोटीन, प्रोपलीन ग्लाइकोल, वेजिटेबल ग्लिसरीन और विभिन्न फ्लेवरिंग केमिकल्स से तैयार किया जाता है।
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क्या ई-सिगरेट से लंग कैंसर हो सकता है?
इस सवाल का जवाब देते हुए डॉ. रमन नारंग कहते हैं कि इसका सीधा जवाब है हां। ई-सिगरेट में तंबाकू नहीं होता, लेकिन इनमें मौजूद निकोटीन, फॉर्मल्डीहाइड, एसीटाल्डीहाइड, एक्रोलीन और अन्य टॉक्सिक केमिकल्स फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ये रसायन डीएनए को डैमेज कर सकते हैं, जिससे कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ने लगती हैं और यहीं से किसी भी व्यक्ति में कैंसर की शुरुआत होती है।
ई-सिगरेट और वेपिंग से जुड़ी भ्रांतियां
डॉ. रमन नारंग कहते हैं कि ई-सिगरेट को लेकर लोगों में फैली गलतफहमियां हैं, कि ई-सिगरेट सुरक्षित है लेकिन असल मायनों में ऐसा नहीं है। ई-सिगरेट और वेपिंग में मौजूद निकोटीन और अन्य केमिकल्स पारंपरिक सिगरेट की तरह ही खतरनाक हैं।
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"वेपिंग से धुआं नहीं निकलता, इसलिए नुकसान नहीं होता"- युवाओं के बीच फैली ये धारणा भी बिल्कुल गलत है। वेपिंग में एरोसोल में भी सूक्ष्म विषैले कण होते हैं जो फेफड़ों में गहराई तक पहुंचकर कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे फेफड़ों का संक्रमण और कैंसर जैसी कई घातक बीमारियां हो सकती हैं।
"ई-सिगरेट धूम्रपान छुड़ाने में मदद करती है" – बहुत से लोग ई-सिगरेट का उपयोग स्मोकिंग छोड़ने के लिए शुरू करते हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है। सीनियर ऑन्कोलोजिस्ट का कहना है कि ई-सिगरेट से स्मोकिंग की लत ज्यादा बढ़ जाता है, क्योंकि लोग इसे सुरक्षित मानते हैं।
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ई-सिगरेट और फेफड़ों पर होने वाले नुकसान
डॉक्टर के अनुसार वेपिंग से निकलने वाले एरोसोल में मौजूद केमिकल्स फेफड़ों की परत को नुकसान पहुंचाते हैं। आइए जानते हैं ई-सिगरेट से फेफड़ों को होने वाले नुकसान के बारे में।
सूजन : ई-सिगरेट के केमिकल्स फेफड़ों में सूजन पैदा करते हैं, जो कैंसर की शुरुआत का कारण बन सकती है।
डीएनए को नुकसान: American Lung Association पर प्रकाशित रिसर्च बताती है कि ई-सिगरेट में पाए जाने वाले फॉर्मल्डिहाइड और एक्रोलिन जैसे तत्व कोशिकाओं के डीएनए को डैमेज करते हैं।
ई-सिगरेट बनाम पारंपरिक सिगरेट क्या दोनों ही नुकसानदायक है?
डॉ. रमन नारंग के अनुसार, ई-सिगरेट और पारंपरिक सिगरेट दोनों ही स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। ई-सिगरेट में तंबाकू नहीं होता लेकिन निकोटीन और कई कार्सिनोजेनिक केमिकल्स मौजूद होते हैं। पारंपरिक सिगरेट का धुआं तुरंत नुकसान पहुंचाता है। वहीं, ई-सिगरेट का असर धीमा होता है लेकिन लगातार उपयोग करने पर यह भी कैंसर का खतरा बढ़ा सकता है।

क्या वेपिंग से लंग कैंसर का खतरा दोगुना हो जाता है?
कैंसर विशेषज्ञ बताते हैं कि लंबे समय तक वेपिंग करने वालों में लंग कैंसर के केस बढ़ रहे हैं। निकोटीन कोशिकाओं में ट्यूमर के बढ़ने की संभावना बढ़ाता है। ई-सिगरेट का एरोसोल फेफड़ों के ऊतकों को बार-बार नुकसान पहुंचाता है, जिससे कैंसर कोशिकाएं आसानी से विकसित हो सकती हैं।
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निष्कर्ष
ई-सिगरेट और वेपिंग को लेकर फैली गलतफहमियों को दूर करना बेहद जरूरी है। डॉ. रमन नारंग का कहना है कि यह पारंपरिक सिगरेट का सुरक्षित विकल्प नहीं है। इसके उपयोग से फेफड़ों के कैंसर सहित कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए ई-सिगरेट और वेपिंग को बिल्कुल भी सुरक्षित न मानें और अपने आसपास के लोगों को भी इसके बारे में चेतावनी दें।
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