
भारत में ब्रेस्ट कैंसर सिर्फ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि एक बढ़ती सामाजिक चिंता बन चुका है। हर साल लाखों महिलाएं इस बीमारी का सामना करती हैं, लेकिन चिंता की बात यह है कि ज्यादातर मामलों में इसकी पहचान बहुत देर से होती है। इसके कारण बीमारी गंभीर हो जाती है, साथ ही इलाज और रिकवरी में ज्यादा परेशानी आती है। हालांकि आज के समय में इलाज और तकनीक दोनों ही पहले से कहीं ज्यादा बेहतर हैं, लेकिन मुख्य समस्या है बीमारी की पहचान में देरी। ज्यादातर महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर के शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करती रहती हैं क्योंकि उनमें इसके लिए जागरूकता की कमी है। यही वजह है कि भारत में ब्रेस्ट कैंसर का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है।
भारत में ब्रेस्ट कैंसर के ताजा आंकड़े
International Agency for Research on Cancer (IARC) की रिपोर्ट GLOBOCAN 2022 के अनुसार, भारत में महिलाओं में कैंसर के कुल नए मामलों में लगभग 26% मामले ब्रेस्ट कैंसर के हैं। यानी हर 4 महिला कैंसर मामलों में से एक ब्रेस्ट कैंसर से जुड़ा है। साल 2022 में देश में 1,92,020 नई महिलाएं इस बीमारी से प्रभावित हुईं, और लगभग 98,000 से अधिक महिलाओं की मौत इसका कारण बनी।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि कई मामले युवा महिलाओं में भी देखे जा रहे हैं। ICMR के राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के अनुसार, 25 से 40 साल की महिलाओं में भी ब्रेस्ट कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। यह वो उम्र है जहां कई महिलाएं करियर, परिवार या बच्चों की जिम्मेदारियों में इतनी व्यस्त रहती हैं कि खुद की सेहत के बारे में सोचने के लिए उनके पास टाइम ही नहीं होता।
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क्यों देर से होती है ब्रेस्ट कैंसर की पहचान?
भारत में आधे से ज्यादा ब्रेस्ट कैंसर के मामले ऐसे हैं जिनकी पहचान देर से होती है, यानी तब जब ब्रेस्ट कैंसर तीसरे स्टेज या चौथे स्टेज में पहुंच चुकी होती है। इस देरी के पीछे कई वजहें हैं:

1. जागरूकता की कमी
अब भी कई महिलाएं नहीं जानतीं कि ब्रेस्ट कैंसर के शुरुआती लक्षण क्या होते हैं या कब डॉक्टर से मिलना चाहिए।
2. सामाजिक झिझक और डर
स्तन या महिलाओं के निजी स्वास्थ्य पर बात करने में झिझक महसूस करना या ‘ब्रेस्ट के बारे में कैसे बात करें’ वाले डर की वजह से महिलाएं किसी से बात नहीं करतीं और डॉक्टर के पास नहीं जातीं।
3. स्क्रीनिंग सुविधाओं की सीमित पहुंच
ग्रामीण और छोटे शहरों में मैमोग्राफी की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा इन शहरों में अच्छे डॉक्टर के अभाव और आर्थिक तंगी के कारण ज्यादातर लोग बड़े हॉस्पिटल्स में जाने से डरते हैं और झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाकर दिख रहे लक्षण को दबाने की दवा ले आते हैं।
4. लक्षणों की अनदेखी
कई महिलाएं ब्रेस्ट में गांठ या बदलाव को मामूली समझकर घरेलू इलाज करने लगती हैं, जिससे धीरे-धीरे बीमारी बढ़ती जाती है और बाद में पता चलने पर इलाज मुश्किल हो जाता है।
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बीमारी की जल्दी पहचान से हो सकता है इलाज: डॉ आरती सिंह
कानपुर के रीजेंसी हेल्थ की ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गाइनेकॉलॉजी विभाग की डायरेक्टर डॉ आरती सिंह कहती हैं, "ब्रेस्ट कैंसर अब भारतीय महिलाओं में सबसे आम कैंसर बन गया है। लेकिन आधे से ज्यादा केस ऐसे हैं, जिनकी पहचान देर से होती है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि महिलाएं जांच को टाल देती हैं। 40 साल से ऊपर की महिलाओं को हर साल मैमोग्राफी करानी चाहिए। जिनके परिवार में ब्रेस्ट या ओवरी कैंसर का इतिहास है, उन्हें ये जांच और भी पहले शुरू कर देनी चाहिए।"
डॉ. सिंह बताती हैं कि ब्रेस्ट कैंसर का इलाज आज पहले से कहीं अधिक असरदार है, लेकिन उसकी सबसे अहम शर्त है बीमारी की जल्दी पहचान।
एक्टिव लाइफस्टाइल से कम हो सकता है खतरा: न्यूट्रिश्निस्ट सोनिया मेहता
EverBloom की फाउंडर और Registered Nutritionist सोनिया मेहता कहती हैं, "ब्रेस्ट कैंसर के मामले युवाओं में बढ़ना शुरू हुए हैं लेकिन अभी भी इसका खतरा उम्रदराज महिलाओं में ज्यादा होता है। दरअसल उम्र बढ़ने के साथ, खासकर 60 साल की उम्र के बाद महिलाएं कई तरह के हार्मोनल बदलावों, वजन में उतार-चढ़ाव और फिजिकल एक्टिविटीज में कमी के कारण ज्यादा संवेदनशील हो जाती हैं।"
वह आगे कहती हैं, "रेगुलर सेल्फ-एग्जामिनेशन, साल में एक बार क्लिनिकल चेकअप और एक्टिव लाइफस्टाइल अपनाने से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा कम किया जा सकता है। यह बीमारी डर से नहीं, जागरूकता से हारती है।"
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ब्रेस्ट कैंसर से बचाव के उपाय
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार 90% ब्रेस्ट कैंसर के मामले रोके जा सकते हैं अगर लोग नियमित स्क्रीनिंग और स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। कुछ जरूरी बातें जो हर महिला को जाननी चाहिए:
- महीने में एक बार सेल्फ-ब्रेस्ट एग्जाम करें। बगल या स्तन में कोई गांठया बदलाव दिखे तो डॉक्टर से मिलें।
- 40 साल के बाद हर साल मैमोग्राफी कराएं। यह शुरुआती पहचान का सबसे भरोसेमंद तरीका है।
- संतुलित आहार लें। हरी सब्जियां, फल, और साबुत अनाज का सेवन बढ़ाएं। जंक फूड, प्रोसेस्ड शुगर और रेड मीट का सेवन कम करें।
- व्यायाम करना और एक्टिव रहना जरूरी है। रोज कम से कम 30 मिनट तेज वॉक करें या हल्के-फुल्के योगासन करें।
- तनाव से दूरी बनाना जरूरी है। लगातार स्ट्रेस हार्मोनल असंतुलन बढ़ाता है, जिससे कई तरह के कैंसर का खतरा बढ़ता है।
- धूम्रपान और अल्कोहल से बचें। दोनों ही ब्रेस्ट कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं।
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मरीज के लिए भावनात्मक साथ भी है जरूरी
डॉ. आरती सिंह इस बात पर जोर देती हैं कि इलाज के दौरान भावनात्मक सहयोग उतना ही जरूरी है, जितना मेडिकल ट्रीटमेंट। परिवार, दोस्तों और प्रोफेशनल काउंसलिंग की मदद से मरीज की रिकवरी को तेज किया जा सकता है। कई बार महिलाएं बीमारी के बाद आत्मविश्वास खो देती हैं। ऐसे में सिर्फ इलाज नहीं, मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
कुल मिलाकर भारत में ब्रेस्ट कैंसर के बढ़ते मामलों से डरने की नहीं, समझदारी से कदम उठाने की जरूरत है। हर महिला को अपनी सेहत के प्रति सजग रहना चाहिए। जांच को टालना या लक्षणों को नजरअंदाज करना भविष्य में बड़ी समस्या बन सकता है। समय पर जांच, स्वस्थ जीवनशैली और सही जानकारी के द्वारा ब्रेस्ट कैंसर को मात दी जा सकती है।
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- Oct 31, 2025 20:28 IST Published By : Anurag Gupta