राज्यसभा में मंगलवार को द मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) विधेयक 2020 (The Medical Termination of Pregnancy (Amendment) Bill 2020) को पारित कर दिया गया। इस विधेयक के तहत गर्भपात की मौजूदा सीमा 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दी गई है। इस नए संशोधित एमटीपी बिल में महिलाओं की विशेष स्थिति (for Special categories of women) को ध्यान में रखते हुए गर्भपात की अनुमति दी गई है। यह कानून रेप पीड़िता या गंभीर बीमारी से ग्रसित गर्भवती महिलाओं की दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए लाया गया है। स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने बिल पर चर्चा करते हुए कहा कि यह बिल विशेषज्ञों से बातचीत के बाद लाया गया है। यह बिल महिलाओं की गरिमा और अधिकारों की रक्षा करेगा। बिल के कानून बन जाने के बाद स्त्री रोग विशेषज्ञों ने अपनी राय दी है।
बरेली जिला अस्पताल में वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. शशि का कहना है कि 24 सप्ताह तक गर्भ में केवल भ्रूण ही नहीं रहता बल्कि पूरा बच्चा बन जाता है। पूरा बिलबिलाता हुआ सा बच्चा निकलता है, ऐसे में अबॉर्शन करना सही नहीं है। इस तरह का अबॉर्शन मां के लिए भी खतरनाक होता है। उनका कहना है कि अबॉर्शन 6 से 8 हफ्ते तक हो जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि एमटीपी एक्ट के तहत चार स्थितियों में अबॉर्शन होता था जिसमें पहला था कि बच्चा खराब हो गया हो, दूसरा रेप की वजह से महिला गर्भवती हो गई हो, तीसरा गर्भपात का फेल होना और चौथा मां की जान को खतरा हो। रेप पीड़िता के मामलों में तो पूरी कमेटी बैठकर तय करती है कि अबॉर्शन करना है या नहीं। डॉ. शशि की राय के इतर गोंडा के जीवनदीप चिकित्सालय और आईवीएफ सेंटर में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. गुंजन भटनागर ने इस कानून का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि पहले बच्चे में पैदाइशी कोई विसंगति होती थी तो गर्भधारण के शुरुआती दिनों में नहीं दिखती थी, लेकिन अब 24 हफ्ते की समयसीमा में यह संभव हो पाएगा। तो वहीं, शिशु में दिल से जुड़ी विसंगतियों का पता 22 से 24 हफ्ते के बाद ही लग पाता है ऐसी स्थिति में अब कानूनी रूप से अबॉर्शन कराना सुरक्षित रहेगा।
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स्वास्थ्य मंत्री ने ट्वीट कर जानकारी दी कि गर्भ का चिकित्सकीय समापन संशोधन विधेयक 2020 पिछले साल ही लोकसभा में पास हो चुका था। अब ध्वनिमत से राज्यसभा से भी मंजूरी मिल गई है। इस बिल में विशेष वर्ग की महिलाओं (for Special categories of women) को गर्भपात की अनुमति दी गई है। यह कानून रेप पीड़िता या गंभीरी बीमारी से ग्रसित गर्भवती महिलाओं की दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए लाया गया है। पहले ऐसी महिलाओं को गर्भपात कराने के लिए कानूनी पेचिदगियों से जूझना पड़ता था।
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बिल की प्रमुखा बातें
- कानून उन शर्तों को नियंत्रित करता है जिनके तहत गर्भपात कराया जा सकता है।
- वर्तमान में 12 सप्ताह के अंदर अबॉर्शन कराना है तो एक डॉक्टर की राय जरूरी थी और अगर 12 से 20 हफ्ते के अंदर गर्भपात कराया जाता था तो दो डॉक्टरों के ओपिनियन की जरूरत थी, लेकिन नए कानून के मुताबिक, 20 हफ्ते तक के गर्भपात में एक डॉक्टर की राय की जरूरत होगी और विशेष परिस्थितियों वाली महिलाओं के 20 से 24 हफ्ते के गर्भपात के लिए दो डॉक्टरों के सलाह की जरूरत होगी।
- भ्रूण की असामान्यता के मामलों में 24 सप्ताह के बाद गर्भावस्था को खत्म किया जा सकता है या नहीं, यह तय करने के लिए बिल में प्रस्ताव रखा गया है कि राज्य स्तर के मेडिकल बोर्ड गठित हों जो सारी कठिनाइयों को को ध्यान में रखते हुए फैसला लेंगे।
- बलात्कार पीड़िता, अत्याचार सहने वाली औरत, नाबालिग, दिव्यांग और अन्य कमजोर महिलाओं को ध्यान में रखते हुए गर्भपात की सीमा बढ़ाई गई है।
- पर्याप्त भ्रूण असमान्यता के मामलों में कोई गर्भावधि की सीमा नहीं है।
अब तक शादीशुदा महिलाओं को ही गर्भपात कराने की अनुमति थी, लेकिन इस नए संशोधन के बाद जो महिलाएं सिंगल हैं उन्हें कानूनी पेचिदगियों को ध्यान में रखते हुए गर्भपात कराना आसान होगा।
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