
किडनी ट्रांसप्लांट को सफल बनाने के लिए डॉक्टरों ने नई तकनीक विकसित की है। इस तकनीक का नाम है फ्लूइड मैनेजमेंट तकनीक जिससे किडनी ट्रांसप्लांट में दौरान शरीर में फ्लूइड इकट्ठा होने जैसी समस्या नहीं आएगी। नई तकनीक से मॉनिट्रिंग भी आसान होगी। कुल मलिाकर आप कह सकते हैं कि मरीजों को सहूलियत होगी। अब तक जिस तकनीक से किडनी ट्रांसप्लांट की जाती है उससे मरीजों को ट्रांसप्लांट के बाद कई स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं क्योंकि शरीर में क्लोराइड की मात्रा बढ़ जाती है इसके अलावा ट्रांसप्लांट के दौरान सोडियम और पोटैशियम का संतुलन भी बिगड़ जाता है। फ्लूइड मैनेजमेंट तकनीक से ये अड़चनें नहीं आएंगी। इस तकनीक को संजय गांधी पीजीआई, लखनऊ के डॉक्टरों ने मिलकर विकसित किया है जिसे विश्व स्तर पर स्वीकार भी किया गया है। इस विषय पर ज्यादा जानकारी के लिए हमने लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई में एनेस्थेसिया विभाग के प्रोफेसर डॉ संदीप साहू से बात की।
इस पेज पर:-
क्या है फ्लूइड मैनेजमेंट तकनीक? (Fluid management technique for kidney transplant)
कैसे काम करती है फ्लूइड मैनेजमेंट तकनीक? (New technology for kidney transplant)
नई तकनीक से किडनी ट्रांसप्लांट में अड़चने नहीं आएंगी (Fluid management technique benefits)
क्यों पकड़ में नहीं आती किडनी की खराबी? (Kidney with disease)
किन लोगों को पड़ती है किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत? (People who suffers from kidney failure)

क्या है फ्लूइड मैनेजमेंट तकनीक? (Fluid management technique for kidney transplant)
फ्लूइड मैनेजमेंट तकनीक एक नई तकनीक है जिसे सफल किडनी ट्रांसप्लांट के लिए बनाया गया है। इस तकनीक को लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई के डॉक्टरों ने विकसित किया है। इसके सफल परीक्षण के बाद विश्व स्तर पर फ्लूइड मैनेजमेंट तकनीक को स्वीकार किया गया है। इस शोध को इंडियन जर्नल ऑफ एनेस्थेसिया और जर्नल ऑफ एनेस्थेसिया ने स्वीकारा है।
कैसे काम करती है फ्लूइड मैनेजमेंट तकनीक? (New technology for kidney transplant)
इस तकनीक के सफल परीक्षण के लिए डॉक्टरों की टीम ने किडनी ट्रांसप्लांट के 120 मरीजों पर शोध किया। इस तकनीक में जिस मरीज की किडनी ट्रांसप्लांट होनी है उसे चढ़ाए जाने वाला फ्लूइड एक ट्यूब से दिया जाएगा जो सीधे पेट में डाली जाएगी। अभी तक मरीज को फ्लूइड सेंट्रल लाइन से दिया जाता है, इससे फ्लूइड शरीर में इकट्ठे होने की समस्या आ जाती है। नई तकनीक से फ्लूइड शरीर में इकट्ठा नहीं होगा और फ्लूइड की मात्रा भी कम इस्तेमाल होगी। इसके अलावा नई तकनीक से मॉनिट्रिंग भी आसान होगी।
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नई तकनीक से किडनी ट्रांसप्लांट में अड़चने नहीं आएंगी (Fluid management technique benefits)

अब तक किडनी ट्रांसप्लांट में फ्लूइड के रूप में नॉर्मल सलाइन चढ़ाया जाता है लेकिन नई तकनीक में फ्लूइड चढ़ता है जो बिल्कुल खून जैसा है। ओटी में मरीज को लाने के बाद फ्लूइड चढ़ता है वहीं ट्रांसप्लांट से ठीक 8 घंटे पहले मरीज का खाना और पानी बंद कर दिया जाता है। नई तकनीक से मरीज को चढ़ाए जा रहे फ्लूइड में मौजूद इलेक्ट्रोलाइट बिल्कुल खून में पाए जाने वाले इलेक्ट्रोलाइट की तरह होते हैं मतलब एकदम खनू की तरह ही है। जो तकनीक अब तक इस्तेमाल की जाती है उसमें सलाइन चढ़ाने से मरीज के शरीर में सोडियम, पोटैशियम का असंतुलन बना रहता है जो कि किडनी ट्रांसप्लांट में परेशानी बनता है इसके अलावा मौजूदा तकनीक में क्लोराइड की मात्रा भी बढ़ जाती है जिससे ट्रांसप्लांट के बाद मरीज को कई परेशानी होती है। इन सब से बचने के लिए नई तकनीक कारगर है।
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क्यों पकड़ में नहीं आती किडनी की खराबी? (Kidney with disease)

डॉ संदीप से बताया कि नई तकनीक से किडनी ट्रांसप्लांट में सहूलियत होगी पर किडनी को ट्रांसप्लांट करने की नौबत ही न आए हमें इस पर भी काम करना है। अगर किडनी स्वस्थ्य रहेगी तो आपका शरीर भी स्वस्थ्य रहेगा। हालांकि जब किडनी खराब होती है तो वो पूरी तरह से काम करना बंद नहीं कर देती इसलिए मरीज को पता नहीं चलता कि उसकी किडनी खराब हो रही है क्योंकि दूसरी किडनी सामान्य रूप से काम करती रहती है। कुछ लक्षण हैं जिन पर मरीजों को ध्यान देना चाहिए जैसे पीठ में दर्द, यूरीन के रास्ते खून आना, यूरीन के दौरान जलन या दर्द, किडनी वाली जगह पर सूजन, पैरों में सूजन आदि खराब किडनी के संकेत हो सकते हैं इन पर ध्यान दें। जरूरी नहीं है कि ये लक्षण किडनी फेल का ही संकेत हों। कई बार किडनी में संक्रमण भी होता है जो दवा के जरिए ठीक किया जा सकता है पर अगर आप समय रहते डॉक्टर से इलाज नहीं करवाएंगे तो किडनी फेल हो सकती है जिसमें डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट के अलावा दूसरा कोई तरीका नहीं बचता है। अगर आपको किडनी को स्वस्थ्य रखना है तो बैलेंस डाइट लें। एल्कोहॉल का सेवन बिल्कुल न करें। इसके अलावा समय-समय पर सभी को किडनी की जांच करवाते रहना चाहिए।
किन लोगों को पड़ती है किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत? (People who suffers from kidney failure)
डायबिटीज मरीजों को किडनी फेल होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है इसके अलावा उच्च रक्तचाप के मरीज भी जोखिम में रहते हैं। पेनकिलर लेने वाले मरीजों को भी किडनी फेल का खतरा रहता है जिसके बाद उनकी किडनी ट्रांसप्लांट करनी पड़ती है। किडनी का काम होता है खून को दोबारा हॉर्ट तक भेजने से पहले फिल्टर करना और अवशिष्ट पदार्थों को शरीर के बाहर करना ताकि शरीर में सॉल्ट, एसिड कंटेंट कंट्रोल रहे। खून को साफ करने वाली किडनी को स्वस्थ्य रखना जरूरी है। हॉर्ट में पंप किया गया 20 प्रतिशत खून किडनी में जाता है और वहां से खून साफ होकर शरीर में चला जाता है। खराब जीवनशैली से किडनी की हेल्थ प्रभावित होती है इसलिए अपनी जीवनशैली पर गौर करें।
नई तकनीक मरीजों की बेहतरी के लिए है पर आपको किडनी ट्रांसप्लांट से न गुजरना पड़ इसके लिए अपनी किडनी की अच्छी सेहत के लिए अच्छी लाइफस्टाइल फॉलो करें।
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