
Don’t Repeat Medical Tests: जरा सी चोट लगने पर या फिर कुछ भी समस्याएं होने पर लोग फटाफट मेडिकल टेस्ट कराने दौड़ते हैं। खासतौर पर भारतीय तो बिना डॉक्टर की सलाह के ब्लड टेस्ट या एक्स रे तक करा लेते हैं। क्या आप जानते हैं कि बार-बार टेस्ट कराने या स्कैन कराने के फायदे कम, नुकसान ज्यादा हो सकते हैं। इसलिए डॉक्टर्स कई बार कहते हैं कि बिना एक्सपर्ट की सलाह के किसी भी तरह का टेस्ट न कराएं। हालांकि कुछ टेस्ट रेगुलर कराने चाहिए लेकिन कुछ टेस्ट तो लक्षण होने पर या फिर हाई रिस्क होने पर ही कराने चाहिए।कौन से मेडिकल टेस्ट बार-बार नहीं कराने चाहिए? इस बारे में हमने अकेडमी ऑफ फैमिली फिजिशियंस ऑफ इंडिया के चेयरमैन डॉ. रमन कुमार (Dr Raman Kumar, Chairman, Academy of Family Physicians of India) से बात की और उन्होंने विस्तार से इसके बारे में बताया।
कौन से टेस्ट नहीं कराने की सलाह दी जाती है?
डॉ. रमन कहते हैं कि कई टेस्ट बार-बार न कराने की सलाह इसलिए दी जाती है क्योंकि इससे शरीर में विभिन्न तरह के रेडिएशन जा सकते हैं, जो शरीर के लिए सही नहीं होते।
- एलर्जी के टेस्ट - एलर्जी की जांच में IgG टेस्ट या अनियंत्रित IgE बैटरी टेस्ट न करें।
- साइसाइटिस - इसमें बिना वजह एंटीबायोटिक्स के डोज न लें और एक्यूट साइनसाइटिस में सीटी स्कैन बार-बार न कराएं।
- कमर दर्द - अगर कमर में दर्द कम हो, तो पहले 6 हफ्तों के भीतर इमेजिंग (scans) न कराएं। अगर डॉक्टर सलाह दें, तभी स्कैन कराएं।
- कार्डियेक - बिना कोई कार्डियक लक्षण के शुरुआती चेकअप में स्ट्रेस कार्डियक इमेजिंग या एडवांस्ड नॉन-इनवेसिव इमेजिंग न करें जब तक हाई-रिस्क मार्कर्स न हों। अगर लक्षण न हो मरीजों को ईसीजी कराने की सलाह नहीं दी जाती।
- सिरदर्द - अगर सिरदर्द नार्मल हो, तो इमेजिंग जैसी तकनीकों का सहारा बिल्कुल न लें। डॉक्टर कभी भी कम से लेकर मध्यम सिरदर्द में MRI की सलाह नहीं देते।
- कोलन कैंसर - सामान्य-रिस्क वाले व्यक्ति में हाई क्वालिटी कॉलोनोस्कोपी के 10 साल बाद फिर से कोलन कैंसर स्क्रीनिंग नहीं की जाती।
- पल्मोनरी एम्बोलिज्म - PE के लिए इमेजिंग तभी की जाती है, जब मीडियम या बहुत ज्यादा प्री-टेस्ट की संभावना होती है।
इसके अलावा, किडनी की क्रोनिक बीमारी में रोगी का अगर हिमोग्लोबिन ≥ 10 g/dL है और एनीमिया का लक्षण नहीं है, तो उन्हें रेड सेल बनाने वाली दवाइयां नहीं दी जाती और GERD का इलाज लंबे समय तक चलता है, तो उसे कम से कम दवाई का डोज दिया जाता है।

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भारत में हुई स्टडी
द नेशनल जरनल ऑफ इंडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई में एक स्टडी की गई, जिसमें 8 क्लीनिक्स/हॉस्पिटल्स के 25 हेल्थ-पैकेज की समीक्षा की गई। इस स्टडी में आया कि इन पैकेजों में शामिल बहुत से टेस्ट जैसेकि Vitamin D, Vitamin B12, TSH (थायराइड), इलेक्ट्रोलाइट्स, पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट सामान्य आबादी के लिए मायने नहीं रखते। इस स्टडी में यह भी बताया गया कि इस तरह के टेस्ट से लोगों पर आर्थिक बोझ और ओवर-डायग्नोसिस और ओवर-ट्रीटमेंट का कारण बन सकते हैं।
ज्यादा टेस्ट कराने के नुकसान
डॉ. रमन ने बताया कि बिना डॉक्टर की सलाह के मेडिकल टेस्ट कराने के कई नुकसान है।
- बिना वजह टेस्ट कराने से मरीज का खर्चा बढ़ता है।
- टेस्ट कराने से स्ट्रेस बढ़ता है।
- कई बार लगातार टेस्ट कराने से जरूरी टेस्ट छूट जाते हैं।
- बार-बार टेस्ट कराना रिसोर्स की बर्बादी है।
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टेस्ट कब कराने चाहिए?
डॉ. रमन कहते हैं, “अगर किसी भी तरह के लक्षण नजर आते हैं, तो डॉक्टर से सलाह लें। बिना डॉक्टर की सलाह के स्कैन या टेस्ट नहीं कराने चाहिए। इसके अलावा, अगर हाई रिस्क की कंडीशन नहीं हैं, तो बड़े इमेजिंग टेस्ट बिल्कुल नहीं कराने चाहिए। जैसेकि अगर कमर में दर्द है, तो डॉक्टर पहले लक्षणों को देखते हुए उसे मैनेज करने की दवाई देंगे। अगर दवाइयों से आराम नहीं मिलता, तो ही डॉक्टर टेस्ट कराने की सलाह देते हैं। हमेशा पिछले टेस्ट की रिपोर्ट और डॉक्टर की प्रिस्क्रिप्शन संभालकर रखें।”
निष्कर्ष
डॉ. रमन कहते हैं कि हेल्थ चेकअप का मतलब यह नहीं होता कि जितने ज्यादा टेस्ट होगे, उतना ही बेहतर है। हमेशा याद रखना चाहिए कि मेडिकल टेस्ट हमारी सेहत को सेफ रखने के लिए बनाए गए हैं। बिना वजह बार-बार टेस्ट कराने से शरीर में तो रेडिएशन जाएंगे साथ ही बिना वजह स्ट्रेस और खर्चा बढ़ेगा। इसलिए किसी भी तरह के लक्षण होने पर सबसे पहले डॉक्टर से मिलें। वह ही लक्षणों को समझकर और मरीज की स्थिति के अनुसार इलाज की सलाह दे सकते हैं।
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Nov 04, 2025 17:30 IST
Modified By : Aneesh RawatNov 04, 2025 17:30 IST
Published By : Aneesh Rawat