
आयुर्वेद में हरड़ यानी हरीतकी को शरीर के लिए एक जरूरी औषधि माना गया है। आयुर्वेदिक डॉक्टर किरण बताती हैं कि हरड़ की कुल 6 प्रकार की जातियां मानी गई हैं, जिनमें छोटी, बड़ी और काली हरड़ शामिल हैं। हालांकि आमतौर पर चिकित्सा में बड़ी हरड़ का उपयोग अधिक किया जाता है। आयुर्वेद में हरीतकी को 'दूसरी मां' का दर्जा दिया गया है, क्योंकि यह शरीर की देखभाल और रोगों से रक्षा उसी तरह करती है, जैसे मां अपने बच्चे की करती है। यही वजह है कि इसका इस्तेमाल बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी आयु वर्ग में उचित मात्रा और सही रूप में किया जा सकता है। इस लेख में मेवाड़ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एवं प्राकृतिक चिकित्सालय बापू नगर, जयपुर की वरिष्ठ चिकित्सक योग, प्राकृतिक चिकित्सा पोषण और आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. किरण गुप्ता (Dr. Kiran Gupta, Yoga, Naturopathy, Nutrition and Ayurveda Specialist, Professor at Mewar University and Senior Physician at Naturopathy Hospital, Bapunagar, Jaipur) से जानिए, हरीतकी चूर्ण कब लें और किसे नहीं लेना चाहिए?
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हरीतकी की आयुर्वेदिक प्रकृति - Ayurvedic nature of Haritaki
डॉ. किरण गुप्ता बताती हैं कि आयुर्वेद में हरीतकी को पंचरस प्रधान औषधि कहा गया है, यानी इसमें पांच रस (स्वाद) पाए जाते हैं, कषाय, मधुर, अम्ल, कटु और तिक्त। हालांकि इसमें कषाय रस प्रमुख होता है। इसकी प्रकृति रूक्ष (सूखी) और ऊष्ण वीर्य (गर्म प्रभाव) वाली होती है, जिसके कारण यह शरीर की अग्नि यानी पाचन शक्ति को बढ़ाती है। हरीतकी को मेध्य औषधि भी कहा गया है, जो बुद्धि, स्मरण शक्ति और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है। खास बात यह है कि भले ही इसका वीर्य ऊष्ण है, लेकिन इसका विपाक (अंतिम रस) मधुर है, जो इसे शरीर के लिए सौम्य और संतुलित बनाता है।
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- हरीतकी को आयुर्वेद में रसायन माना गया है, एक ऐसी औषधि जो शरीर की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करती है, रोगों से रक्षा करती है और संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है।
- यह पचने में हल्की मानी जाती है और मल को बाहर निकालने में मदद करती है।
- इसलिए कब्ज जैसे पाचन संबंधी समस्याओं में इसका उपयोग पारंपरिक रूप से किया जाता है।
- आयुर्वेद में एक विशेष शब्द प्रयुक्त होता है 'ऋतु हरीतकी' इसका अर्थ है कि हर मौसम के अनुसार हरीतकी को अलग-अलग द्रव्यों के साथ लेने की सलाह दी जाती है, ताकि यह शरीर को संतुलित लाभ दे सके।
हरड़ पाउडर कब लेना चाहिए?
डॉ. किरण गुप्ता के अनुसार हरीतकी पाउडर सुबह खाली पेट, रात को सोते समय या भोजन के बाद, तीनों समय अलग-अलग उद्देश्यों के लिए लिया जा सकता है।
1. कब्ज या धीमी पाचन शक्ति में
हरड़ पाउडर को गर्म पानी के साथ रात को लेने से कब्ज में राहत मिलती है। यह मल को नीचे की ओर ले जाने वाली यानी अनुलोमनकारी औषधि है, इसलिए सुबह bowel movement सुचारू रहता है।
2. अपच, भारीपन या गैस की समस्या
यदि पाचन कमजोर है या भोजन भारी लग रहा है, तो भोजन के बाद थोड़ी मात्रा में हरड़ का सेवन हल्का डाइजेशन देता है।
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3. वजन कंट्रोल और मेटाबॉलिज्म सुधारने के लिए
सुबह खाली पेट हरड़ लेना मेटाबॉलिज्म बढ़ाता है, शरीर को डिटॉक्स करता है और फैट बर्न प्रक्रिया को सहारा देता है।
4. बार-बार बीमार पड़ने वाले लोगों के लिए
चूंकि यह रसायन है, इसलिए रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी मदद करती है। नियमित और सही मात्रा में लेने से शरीर में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस कम होता है।

किसे हरड़ नहीं लेनी चाहिए? - Who should not take haritaki
हालांकि हरीतकी कई गुणों वाली औषधि है, लेकिन हर व्यक्ति के लिए उपयुक्त नहीं है। डॉक्टर निम्न स्थितियों में हरीतकी से बचने की सलाह देती हैं-
1. गर्भवती महिलाएं
हरीतकी का स्वभाव रुक्ष और अनुलोमनकारी है, जो गर्भाशय पर प्रभाव डाल सकता है। इसलिए गर्भावस्था में इसका सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
2. अत्यधिक कमजोर या बहुत दुबले लोग
इसके रूक्ष गुण शरीर से नमी को कम कर सकते हैं और कमी को बढ़ा सकते हैं।
3. दस्त वाले मरीज
हरीतकी मल को नीचे ले जाने वाली होती है, इसलिए दस्त की समस्या को और बढ़ा सकती है।
4. गंभीर बीमारी या सर्जरी के बाद कमजोर रोगी
ऐसी स्थिति में शरीर पहले से ही कमजोर होता है और हरड़ का तासीर उसके लिए उपयुक्त नहीं रहती।
5. अत्यधिक गर्म तासीर वाले लोग
चूंकि इसका वीर्य ऊष्ण होता है, ऐसे लोगों में यह पित्तजन्य समस्याएं बढ़ा सकती है।
निष्कर्ष
हरड़ यानी हरीतकी आयुर्वेद की सबसे प्रभावी और बहुउपयोगी औषधियों में से एक है। यह पाचन, बुद्धि, प्रतिरोधक क्षमता और उम्र बढ़ने को कंट्रोव करने में लाभकारी है लेकिन किसी भी औषधि की तरह इसका सेवन व्यक्ति की प्रकृति, स्थिति और बीमारी के आधार पर किया जाना चाहिए। सही मात्रा और सही समय पर इसका उपयोग इसके लाभ को कई गुना बढ़ाता है, जबकि गलत उपयोग दुष्प्रभाव पैदा कर सकता है। इसलिए हरीतकी शुरू करने से पहले किसी आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।
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FAQ
क्या आयुर्वेद में इलाज का असर धीमा होता है?
कई समस्याओं जैसे अपच, कब्ज या सर्दी में आयुर्वेदिक दवाएं जल्दी असर करती हैं। हालांकि, क्रॉनिक बीमारी में यह जड़ से सुधार करता है, इसलिए थोड़ा समय लग सकता है।क्या आयुर्वेदिक दवाओं के कोई साइड इफेक्ट होते हैं?
यदि दवाएं सही आयुर्वेदाचार्य की सलाह से, सही मात्रा में ली जाएं, तो सामान्यतौर पर साइड इफेक्ट नहीं होते, लेकिन गलत मात्रा, गलत औषधि या बिना सलाह के सेवन से दुष्प्रभाव संभव हैं।क्या आयुर्वेदिक दवाएं रोज ली जा सकती हैं?
यह दवा पर निर्भर करता है। कुछ औषधियां जैसे त्रिफला, आंवला, हरीतकी आदि लंबे समय तक ली जा सकती हैं, जबकि कुछ दवाएं सीमित अवधि के लिए ही सुरक्षित हैं।
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Dec 12, 2025 13:53 IST
Published By : Akanksha Tiwari