When To Avoid Scolding Kids: आज के समय में पेरेंटिंग काफी मुश्किल हो गई है। वर्तमान समय में भी पेरेंट्स अपने बच्चों को ऑफिस के कामकाज के साथ अच्छी परवरिश देने की कोशिश करते हैं। उनके पेरेंट्स से ज्यादा उनके दोस्त बनने की कोशिश करते हैं। लेकिन, अच्छी पेरेंटिंग के लिए ये भी जरूरी है कि आप अपने बच्चे को अनुशासन में रखने की कोशिश करें। सही समय पर और सही बातों के लिए बच्चों को डांटना और समझाना बहुत जरूरी है। हालांकि, कभी-कभी पेरेंट्स बच्चों को ऐसे समय पर डांट देते हैं, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ने के साथ-साथ उनके आत्मविश्वास और इमोशनल हेल्थ पर भी गहरा असर पड़ता है। ऐसे में आइए गंगाराम हॉस्पिटल की सीनियर साइकोलॉजिस्ट आरती आनंद से जानते हैं कि माता-पिता अपने बच्चों को कब-कब डांटने से बचें (bachon par kab gussa nahi karein), ताकि उनके मानसिक स्वास्थ्य और दिनभर के कामों पर उसका असर न पड़ें।
बच्चों पर गुस्सा कब नहीं करना चाहिए? - When To Avoid Scolding Kids in Hindi
1. जैसे ही बच्चा नींद से उठे - Just After They Wake Up
नींद से उठते ही बच्चा मानसिक रूप से बहुत ज्यादा सेंसिटिव होता है। यह समय उनके दिन की शुरुआत के लिए होता है और अगर सुबह-सुबह उन्हें डांट सुनने को मिल जाए तो उनका पूरा दिन तनाव में गुजर सकता है। सुबह की शुरुआत उनके मूड, कॉन्सेंट्रेशन और व्यवहार पर नकारात्मक असर डाल सकता है। सुबह उठने के बाद बच्चों से मुस्कुराकर बात करें, उन्हें प्यार से उठाएं और दिन की अच्छी शुरुआत के लिए प्रेरित करें।
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2. जब वे स्कूल जाने के लिए निकल रहे हों - While They Are Leaving for School
स्कूल जाने से पहले बच्चों का मानसिक संतुलन और आत्मविश्वास उनकी पढ़ाई को लेकर बहुत मायने रखता है। इस समय डांटने से वे खुद को दोषी महसूस कर सकते हैं, उनका पढ़ाई से मन हट सकता है और दोस्तों या शिक्षकों के साथ उनके व्यवहार में फर्क पड़ सकता है। अगर बच्चे ने कुछ गलत किया है तो उसे शांत रहकर समझाएं और उन्हें प्यार के साथ स्कूल भेजें।
3. जब वे स्कूल से लौटें - When They Return from School
स्कूल से वापस लौटने के बाद बच्चा थका हुआ होता है और कई बार दिनभर घटी घटनाओं के कारण उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है, जिस कारण वे परेशान हो सकते हैं। ऐसे समय में उन्हें डांटने से बचें, क्योंकि ये उनके लिए ज्यादा तनावपूर्ण हो सकता है। ऐसे समय डांटने से उन्हें और ज्यादा तनाव हो सकता है, जो उनके मन में एक डर की भावना बढ़ा सकता है। इसलिए, स्कूल से वापस लौटने के बाद पहले उन्हें आराम दें, उनसे दिनभर की बातें पूछें और फिर अगर कुछ कहना हो तो आराम से बात करें।
4. जब वे पढ़ाई कर रहे हों - While They Are Studying
पढ़ाई करते समय बच्चों का पूरा ध्यान पढ़ाई की ओर होना चाहिए। ऐसे में अगर आप उसे डांटेंगे तो उसका ध्यान भटक जाएगा और पढ़ाई में फोकस करना मुश्किल हो जाएगा। पढ़ाई के लिए पढ़ते समय डांटने से पढ़ाई को लेकर उनके मन में नकारात्मक भावना आ सकती है, जिससे वे पढ़ाई को सजा की तरह महसूस कर सकते हैं और इससे उनकी पढ़ाई पर फर्क पड़ सकता है। अगर पढ़ाई को लेकर बच्चे ने कोई गलती की है तो उसे पढ़ाई करने के बाद या ब्रेक के समय बात करें और उनके मन में आपको या पढ़ाई को लेकर डर न आने दें।
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5. सोने से ठीक पहले - Just Before Sleep
सोने से पहले की मानसिक स्थिति पूरे स्लीप साइकिल को प्रभावित करती है। डांट खाने के बाद बच्चे के दिमाग में वो डांट घूमती रहेगी, जिससे वे बेचैन हो सकते हैं, नींद में खलल आ सकता है, और सपनों में भी डर सकते हैं। यह उनके मानसिक स्वास्थ्य और नींद की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। इसलिए आप सोने से पहले बच्चे को शांत और सुरक्षित माहौल देने की कोशिश करें।
निष्कर्ष
पेरेंट्स का गुस्सा स्वाभाविक हो सकता है, लेकिन ये बच्चे के इमोशनल और मेंटल हेल्थ पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। गलत समय पर बच्चे को डांटने से उनके आत्मविश्वास, मानसिक स्वास्थ्य और आपके साथ बच्चे के रिश्ते पर गलत असर भी पड़ सकता है। इसलिए, बच्चे को डांटने के स्थान पर समझाने की कोशिश करें।
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FAQ
बच्चों के गुस्से को शांत करने के क्या उपाय हैं?
बच्चों के बढ़ते गुस्से को सही तरह से शांत करना और पर उनके गुस्से पर कंट्रोल पाना पेरेंट्स के लिए बहुत जरूरी है। इसलिए, उनके गुस्से को शांत करने के लिए आप उनकी बात सुने, उन्हें गले लगाएं, उनके नजरिए को समझें और उन्हें शांत होने के लिए समय दें।बच्चों का चिड़चिड़ापन कैसे दूर करें?
बच्चों में चिड़चिड़ापन दूर करने के लिए, ध्यान दें कि वे अपनी नींद पूरी करें, हेल्दी डाइट लें और शारीरिक गतिविधियां करें।पॉजिटिव पेरेंटिंग क्या है?
पॉजिटिव पेरेंटिंग, बच्चे के पालन-पोषण का एक तरीका है, जिसमें बच्चों को बहुत ही प्यार, सम्मान और लाड के साथ बड़ा किया जाता है। उनकी गलतियों को प्यार से समझाकर, उनमें अच्छी आदतों को बढ़ावा दिया जाता है। ऐसा करने से पेरेंट्स के साथ बच्चों का रिश्ता पॉजिटिव रहने के साथ मजबूत भी बनता है।