Princess Syndrome: बेटी के जन्म के बाद से ही घर में रौनक हो जाती है। कोई उसे लक्ष्मी का स्वरूप मानता है, तो कोई फूलों की तरह पालता है। बेटियों को तैयार करना, उनकी छोटी-छोटी डिमांड को पूरा करना सभी पेरेंट्स को पसंद होता है। लेकिन क्या हो अगर आपका यही लाड़-प्यार आपकी बच्ची की सही परवरिश में बाधा बन रहा हो? दरअसल, जिन बच्चियों को हर वक्त प्रिंसेस ट्रीटमेंट दिया जाता है, उन्हें उसकी आदत हो जाती है। इस तरह से पलकर बड़ी होने वाली कई बच्चियों में प्रिंसेस सिंड्रोम देखा जाता है। यह सिंड्रोम क्या है और यह कैसे आपके बच्चे की मेंटल हेल्थ पर बुरा असर डाल सकता है। इस बारे में जानने के लिए हमने गंगाराम हॉस्पिटल की सीनियर साइकोलॉजिस्ट आरती आनंद से बात की। आइये लेख में एक्सपर्ट से जानें इस बारे में।
प्रिंसेस सिंड्रोम क्या है? What Is Princess Syndrome
प्रिंसेस सिंड्रोम एक मानसिक स्थिति है, जो बच्चियों में ओवर पैम्परिंग की वजह से होती है। ऐसे में बच्ची हर चीज अपने मन मुताबिक करना चाहती है। अगर उसे किसी चीज के लिए मनाही होती है, तो इससे उसका गुस्सा बढ़ने लगता है और वो जिद्द पर उतर आती है। ऐसे में बच्चों को डांट या किसी का गुस्सा झेलना बर्दाश्त नहीं हो पाता है और इससे उसका व्यहवार बदलने लगता है।
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प्रिंसेस सिंड्रोम के क्या संकेत है?
ऐसे में बच्चे बहुत ज्यादा जिद्दी हो जाते हैं। हर छोटी से छोटी चीज की डिमांड करने लगते हैं और कोई भी बात बर्दाशत कर पाना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। ऐसे में बच्चे अपने ख्बाबों की दुनिया में जीते हैं और खुद को सब कुछ मानते हैं। उन्हें लगता है जो काम उन्होंने बचपन से नहीं किया, वो काम अब भी नहीं करेंगी।
प्रिंसेस सिंड्रोम से बच्चों की मेंटल हेल्थ पर क्या असर पड़ता है?
प्रिंसेस ट्रीटमेंट के साथ बड़े होने से बच्चों को इसकी आदत हो सकती है। उनके लिए बिना किसी की सपोर्ट के कुछ करना या आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में उनकी सेल्फ-ग्रोथ पर असर पड़ सकता है। समय से साथ बच्चों जिद्दी होते जाते हैं और उन्हें हर छोटी बात पर गुस्सा आने लगता है। ऐसे में बच्चे दूसरों की रिस्पेक्ट करना भी भूल जाते हैं। बच्चों को सपोर्ट और सहानुभूति की आदत हो जाती है। ऐसे में बड़े होने के बाद भी वो इमोशनली स्ट्रांग नहीं बन पाते हैं।
प्रिंसेस सिंड्रोम से बच्चों को कैसे बाहर उभारे?
अगर आपकी बच्ची भी बहुत ज्यादा जिद्दी हो गई है, तो पहले बच्ची को प्रिंसेस ट्रीटमेंट देना बंद करें। बच्चों को गलती होने पर डांटे और कुछ अच्छा करने पर शाबाशी दें। बच्चों को हर वक्त सपोर्ट करने के बजाय अपना काम खुद करना सिखाएं। बच्चों को सही-गलत में फर्क करना सिखाएं और हर चीज उदाहरण के साथ समझाने की कोशिश करें।
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निष्कर्ष
बच्चों को लाड़-प्यार से पालना जरूरी है, लेकिन उन्हें सही-गलत की जानकारी देना भी बहुत जरूरी है। अगर बच्चों को मैनेज करना, सही-गलत में फर्क समझना या दूसरों की वैल्यू करना नहीं आएगा, तो वो गलत रास्ते पर जा सकते हैं।
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