आज के समय में खानपान और लाइफस्टाइल के कारण डायबिटीज के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। वैश्विक स्तर पर भारत को डायबिटीज कैपिटल कहा जाने लगा है। आमतौर पर लोगों को लगता है कि सभी डायबिटीज (Diabetes) के रोगी एक जैसी ही होते हैं, लेकिन असल में ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। डायबिटीज मुख्य रूप से 2 प्रकार के होते हैं। पहला टाइप- 2 डायबिटीज। टाइप-2 डायबिटीज (Type 2 Diabetes) अधिकतर वयस्कों में पाई जाती है, लेकिन एक दूसरी प्रकार की डायबिटीज- टाइप-1 डायबिटीज, जो विशेषकर बच्चों और टीएनएज लोगों में देखी जाती है। टाइप-1 डायबिटीज एक गंभीर स्थिति है और जीवनभर व्यक्ति को मैनेज करनी पड़ती है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं टाइप-1 डायबिटीज के बारे में।
टाइप-1 डायबिटीज
दिल्ली के जनरल फिजिशियन और एमबीबीएस डॉ. सुरिंदर कुमार का कहना है कि टाइप-1 डायबिटीज को पहले जुवेनाइल डायबिटीज (Juvenile Diabetes) या इंन्सुलिन-डिपेंडेंट डायबिटीज मेलिटस (IDDM) भी कहा जाता था। टाइप-1 डायबिटीज एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर इंसुलिन बनाना बंद कर देता है। इंसुलिन की बात करें, तो ये एक जरूरी हार्मोन है जो खून में मौजूद ग्लूकोज को एनर्जी के रूप में कोशिकाओं में प्रवेश कराने में मदद करता है। जब इंसुलिन नहीं बनता, तब खून शुगर यानी चीनी की मात्रा अनियमित रूप से बढ़ने लगती है।
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टाइप-1 डायबिटीज के कारण
किसी भी उम्र के लोगों को डायबिटीज की बीमारी क्यों होती है, इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं है। मायो क्लीनिक की रिसर्च का हवाला देते हुए डॉ. सुरिंदर कुमार कहते हैं कि टाइप-1 डायबिटीज ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया के कारण होता है। रिसर्च के अनुसार, डायबिटीज के प्रमुख कराणों में शामिल हैः
1. ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया- शरीर की इम्यून सिस्टम गलती से पैंक्रियाज की बीटा कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है। इससे शरीर में इंसुलिन नहीं बनता है।
2. वायरल संक्रमण- हवा में मौजूद कुछ संक्रमण जैसे मम्प्स या रुबेला से संक्रमित होने से भी टाइप-1 डायबिटीज ट्रिगर हो सकता है।
3. जेनेटिक कारण- अगर परिवार में किसी को टाइप-1 डायबिटीज है, तो जोखिम बढ़ जाता है। विशेषकर HLA-DR3 और DR4 जीन से जुड़े लोग ज्यादा संवेदनशील होते हैं।
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टाइप-1 डायबिटीज के सामान्य लक्षण
टाइप-1 डायबिटीज के लक्षण धीरे-धीरे बढ़ सकते हैं। इनमें शामिल हैं:
अत्यधिक प्यास लगना
बार-बार पेशाब आना
वजन का तेजी से कम होना
शारीरिक थकावट और कमजोरी
धुंधला नजर आना
चिड़चिड़ापन या मूड स्विंग्स
बच्चों में बिस्तर गीला करना (अगर पहले नहीं होता था)
त्वचा में खुजली और बार-बार संक्रमण होना
सांस की बदबू (किटोन सांस)
अगर आपको अपने छोटे बच्चे और किशोर में इस तरह के लक्षण नजर आते हैं, तो इस विषय पर डॉक्टर से बात जरूर करें।
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टाइप-1 डायबिटीज की जांच कैसे की जाती है?
बच्चों और किशोरों में टाइप-1 डायबिटीज का पता लगाने के लिए डॉक्टर कई प्रकार के मेडिकल टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। इनमें शामिल हैः
फास्टिंग ब्लड शुगर टेस्ट
रैंडम ब्लड शुगर टेस्ट
HbA1c टेस्ट
केटोन टेस्ट (पेशाब या खून में)
सी-पेप्टाइड टेस्ट (बॉडी में इंसुलिन का पता लगाने के लिए)
ऑटोइम्यून एंटीबॉडी टेस्ट
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टाइप-1 डायबिटीज का इलाज क्या है-
डॉ. सुरिंदर कुमार बताते हैं कि वर्तमान में टाइप-1 डायबिटीज का कोई स्थायी इलाज नहीं है। लेकिन रोजमर्रा की जीवनशैली, खानपान में बदलाव किया जाए, तो इसे मैनेज किया जा सकता है। टाइप-1 डायबिटीज को मैनेज करने के लिए आप नीचे बताए गए उपायों का अपना सकते हैं।
इंसुलिन थेरेपी
ब्लड शुगर मॉनिटरिंग
संतुलित आहार
रेगुलर एक्सरसाइज और योग
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बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज का ध्यान कैसे रखें?
बच्चे को खुद से इंसुलिन लगाना सिखाएं।
लो शुगर की स्थिति को पहचानना और संभालना सिखाएं।
अगर आपको बच्चा स्कूल जाता है, तो टीचर्स और वहां से स्टाफ को इस बीमारी की जानकारी जरूर दें।
जनरल फिजिशियन का कहना है कि डायबिटीज एक लाइलाज बीमारी है। लेकिन रोजमर्रा की जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव करके इसे मैनेज किया जा सकता है।समय पर इंसुलिन लेना, ब्लड शुगर की निगरानी, संतुलित आहार और सकारात्मक नजरिया डायबिटीज को मैनेज करने में आपकी मदद कर सकते हैं।
FAQ
टाइप 1 डायबिटीज कैसे होती है?
टाइप 1 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें शरीर की इम्यून सिस्टम पैनक्रियास की बीटा कोशिकाओं पर हमला करके इंसुलिन बनाना बंद कर देती है। यह आमतौर पर बचपन या किशोरावस्था में होता है और अनुवांशिक कारणों से भी हो सकता है।टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज में क्या अंतर होता है?
टाइप 1 डायबिटीज में शरीर इंसुलिन बनाना बंद कर देता है, जबकि टाइप 2 में शरीर इंसुलिन का सही उपयोग नहीं कर पाता। टाइप 1 जल्दी शुरू होती है और जीवनभर इंसुलिन पर निर्भर रहती है, जबकि टाइप 2 अधिकतर वयस्कों में होती है और जीवनशैली से नियंत्रित की जा सकती है।टाइप 1 डायबिटीज को कैसे ठीक करें?
फिलहाल टाइप 1 डायबिटीज का कोई स्थायी इलाज नहीं है। इसे इंसुलिन इंजेक्शन, संतुलित आहार, नियमित ब्लड शुगर मॉनिटरिंग और व्यायाम के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है। नई रिसर्च में स्टेम सेल थेरेपी और आर्टिफिशियल पैनक्रियास जैसे विकल्प सामने आ रहे हैं।