जेनेटिक टेस्टिंग (Genetic Testing) क्या है और क्यों पड़ती है इसकी जरूरत?

आनुवंशिक परीक्षण या जेनेटिक टेस्टिंग के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाली आनुवंशिक बीमारियों के बारे में पता लगाया जाता है।
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जेनेटिक टेस्टिंग (Genetic Testing) क्या है और क्यों पड़ती है इसकी जरूरत?


मेडिकल साइंस ने जीन से जुड़ी हजारों बीमारियों के बारे में खोज की है। जीन से जुड़ी बीमारियां जिन्हें आनुवंशिक बीमारी भी कहते हैं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में होती है। कई दुर्लभ बीमारियां जैसे हीमोफिलिया, थैलेसीमिया, कोलोरेक्टल कैंसर आदि आनुवंशिक होती हैं। बीमारियों के बारे में पता लगाने के लिए अनेकों प्रकार की चिकित्सीय जांच की जाती है। इन्हीं चिकित्सीय जांच में से एक है जेनेटिक टेस्टिंग। आनुवंशिक परीक्षण या जेनेटिक टेस्टिंग (Genetic Testing) भी एक चिकित्सकीय जांच है जिसका इस्तेमाल अनुवांशिक बीमारियों और जटिलताओं के बारे में जानने के लिए किया जाता है। यह जांच गुणसूत्रों, जीनों या प्रोटीन में परिवर्तन की पहचान करने के लिए होती है। आनुवंशिक परीक्षण के जरिये आपके जीन में होने वाले परिवर्तन (म्यूटेशन) के बारे में पता लगाया जाता है जिससे आपके बच्चों में भविष्य में होने वाली बीमारियों के बारे में पता चलता है। आइये विस्तार से जानते हैं जेनेटिक टेस्टिंग के बारे में।

क्या होती है जेनेटिक टेस्टिंग? (What is Genetic Testing?)

बीमारियों का पता लगाने के लिए की जाने वाली जांच में से एक है जेनेटिक टेस्टिंग। इसके जरिये यह पता लगाया जाता है कि आनुवंशिक बीमारी अगली पीढ़ी में जा सकती है या नहीं। इस टेस्ट को करने के लिए डीएनए (DNA) का सैंपल लिया जाता है। डॉक्टर खून, बाल, स्किन या टिश्यू के नमूने के माध्यम से यह टेस्ट करते हैं। अगर इस टेस्ट में डीएनए, प्रोटीन या गुणसूत्रों में कोई परिवर्तन पाया जाता है तो उसी आधार पर बीमारी के बारे में पता चलता है। हालांकि जेनेटिक टेस्टिंग की अपनी सीमा भी है, सभी मामलों में यह जरूरी नहीं कि इसके आधार पर यह बता दिया जा सके कि जिस व्यक्ति का टेस्ट हुआ है उसे भविष्य में जीन से जुड़ी कोई बीमारी होगी ही नहीं। इस जांच का प्रमुख फायदा यह है कि इसकी सहायता से नवजात बच्चों में होने वाले आनुवंशिक समस्याओं के बारे में पता लगाकर समय पर उनका इलाज किया जा सकता है।

जेनेटिक टेस्टिंग कैसे की जाती है? (How Genetic Testing is Done?)

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जेनेटिक टेस्टिंग करने के लिए डीएनए का सैंपल लिया जाता है। डीएनए के सैंपल में बाल, स्किन, ब्लड और टिश्यू शामिल हो सकते हैं। जिसके बाद लैब में इस सैंपल का टेस्ट किया जाता है। संदिग्ध बीमारी के आधार पर नमूनों में गुणसूत्र, डीएनए या प्रोटीन में होने वाले म्युटेशन के बारे में पता लगाया जाता है। नवजात बच्चों की जांच में उनके लोड का सैंपल लिए जाता है। और इस जांच की रिपोर्ट के आधार पर बच्चों में बीमारी के बारे में पता लगाया जाता है।

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जेनेटिक टेस्टिंग के कितने प्रकार हैं? (Methods or Types of Genetic Testing)

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आनुवंशिक परीक्षण या जेनेटिक टेस्टिंग के आधार पर किसी व्यक्ति के जीन और गुणसूत्रों में होने वाले म्युटेशन के बारे में पता लगाया जाता है। इसी म्युटेशन के आधार पर बीमारी की स्थिति के बारे में भी जानकारी ली जाती है। यह जांच मुख्यतः 7 प्रकार की होती है।

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1. नैदानिक परीक्षण (Diagnostic Testing)

नैदानिक परीक्षण में यदि आपमें किसी बीमारी के लक्षण हैं जो अनुवांशिक कारणों से हो सकती है उसके बारे में पता लगाया जाता है। इस जांच में उत्परिवर्तित जीन या जीन में होने वाले बदलाव के बारे में जानकारी मिलती है। डायग्नोस्टिक परीक्षण के जरिये किसी विशिष्ट आनुवंशिक या गुणसूत्र स्थिति की पहचान में मदद मिलती है। नैदानिक परीक्षण नवजात के जन्म से पहले या किसी व्यक्ति के जीवन के दौरान किसी भी समय की जा सकती है।

2. नवजात की जांच (Newborn Screening)

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यह जांच नवजात बच्चे के जन्म के तुरंत बाद की जाती है। इसमें नवजात के आनुवंशिक विकारों की पहचान करते हैं जिसके बाद बच्चों में बीमारी का पता लगते ही इलाज शुरू कर दिया जाता है।

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3. कैरियर टेस्टिंग (Carrier Testing)

कैरियर टेस्टिंग के माध्यम से सिकल सेल एनीमिया या सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी बीमारियों का पता लगाया जाता है। अगर आपके परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी आनुवंशिक बीमारियों का इतिहास रहा है तो ऐसे में आने वाली पीढ़ी में इसकी स्थिति का पता लगाने के लिए यह जांच होती है।  

4. प्रसव से पूर्व जांच (Prenatal Testing)

जन्म से पहले भ्रूण के जीन या गुणसूत्रों में परिवर्तन के बारे में जानकारी के लिए यह जांच की जाती है। यह जांच प्रेग्नेंसी के दौरान की जाती है। बच्चे को आनुवंशिक बीमारी होने के खतरे को देखते हुए यह जांच की जाती है। हालांकि इस जांच से सभी आनुवंशिक बीमारियों के बारे में पता नहीं लगाया जा सकता है।

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5. फार्माकोजेनेटिक्स (Pharmacogenetics)

विशेष आनुवंशिक बीमारियों की जानकारी के लिए यह परीक्षण किया जाता है। इस टेस्ट के माध्यम से यह पता लगाया जाता है कि बीमारी की स्थिति में कौन सी दवा आपके लिए प्रभावी और फायदेमंद होगी।

6. प्रीइम्प्लांटेशन टेस्टिंग (Preimplantation Testing)

प्रीइम्प्लांटेशन टेस्टिंग भी जेनेटिक टेस्टिंग का एक प्रकार है, जिसे प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस (पीजीडी) भी कहा जाता है। इस विशेष जांच के जरिये बच्चों में आनुवंशिक या गुणसूत्र से जुड़ी बीमारी के जोखिम को कम किया जाता है। इसका जांच का उपयोग भ्रूण में आनुवंशिक परिवर्तनों के बारे में जानकारी के लिए किया जाता है।

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7. प्रेडिक्टिव या प्रीसिम्पटोमैटिक टेस्टिंग (Predictive and Presymptomatic Testing)

प्रेडिक्टिव या प्रीसिम्पटोमैटिक टेस्टिंग का उपयोग उन बीमारियों से जुड़े जीन म्युटेशन का पता लगाने के लिए किया जाता है जो जन्म के बाद दिखाई देते हैं। यह जांच उन लोगों के लिए बेहद फायदेमंद होती है जिनके परिवार के किसी भी व्यक्ति को आनुवंशिक बीमारी पहले से ही है। कुछ प्रकार के कैंसर की भी जांच इसी माध्यम से की जाती है। 

जेनेटिक टेस्टिंग के फायदे (Benefits of Genetic Testing)

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आनुवंशिक परीक्षण या जेनेटिक टेस्टिंग के माध्यम से जीन म्युटेशन के बारे में पता लगाया जाता है। इसके जरिये आनुवंशिक बीमारियों के बारे में पता लगाकर उसका सही समय पर इलाज किया जा सकता है। आनुवंशिक परीक्षण या जेनेटिक टेस्टिंग से होने वाले प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं।

  • - परिवार में आनुवंशिक बीमारी होने पर यह जांच आने वाली पीढ़ी में बीमारी की स्थिति पता करने में फायदेमंद होती है।
  • - पहले से किसी बीमारी से ग्रसित व्यक्ति में इलाज को आसान बनाने के लिए यह जांच उपयोगी होती है।
  • - नवजात शिशुओं में सही समय पर बीमारी की स्थिति का पता लगाने में यह जांच काम आती है।

हमें उम्मीद है कि जेनेटिक टेस्टिंग को लेकर दी गयी यह जानकारी आपको पसंद आयी होगी। अगर आपके पास जेनेटिक टेस्टिंग या जुड़े विषयों को लेकर कोई सवाल है तो उसे आप कमेंट कर हम तक पहुंचा सकते हैं। हम आपके सवाल का जवाब देने की कोशिश करेंगे।

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