Importance Of Genetic Testing For Women In Hindi: आमतौर पर देखने में आता है कि महिलाएं घर में मौजूद हर सदस्य के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहती हैं। जबकि, वे अपनी सेहत की चिंता करना भूल जाती हैं। इसका नतीजा यह निकलता है कि कम उम्र से उन्हें गंभीर बीमारियां अपनी चपेट में ले लेती हैं। यहां तक कई बार तो इतनी देर हो जाती है कि जब बीमारी का पता चलता है, तब तक ट्रीटमेंट का समय जा चुका होता है। किसी भी महिला को अपने स्वास्थ्य को लेकर इस तरह की लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। घर के हर सदस्य की अपनी तरह अपनी सेहत पर भी ध्यान देना चाहिए। सवाल है, ऐसा कैसे किया जा सकता है? इसके लिए जरूरी है कि आप अपनी उम्र के हिसाब जेनेटिक टेस्ट करवाएं। यहां हम सही उम्र में किए जाने वाले कुछ जेनेटिक टेस्ट की जानकारी दे रहे हैं। साथ ही, जानेंगे कि इन टेस्ट का क्या खास महत्व है। से बात की।
महिलाओं के लिए जेनेटिक टेस्टिंग के फायदे- Importance Of Genetic Testing For Women In Hindi
कैरियर स्क्रीनिंग (18 से 40 की उम्र में)
मेडजीनोम में मुख्य जीनोम एनालिस्ट डॉ. संध्या नायर बताती हैं, “महिलाओं को कैरियर स्क्रीनिंग भी करवानी चाहिए। खासकर 18 से 40 साल की उम्र की महिलाओं के लिए यह टेस्ट जरूरी होता है। इस टेस्ट के माध्यम से यह पता चलता है कि महिला में किसी तरह की आनुवांशिक बीमारी तो नहीं है। इस टेस्ट की मदद से महिलाएं जीन में मौजूद बीमारी से अपनी भावी पीढ़ी को बचा सकती है। हेमोफिलिया, सिस्टिक फाईब्रोसिस, थैलेसेमिया, और सिकल सेल एनीमिया जैसी कई बीमारियों से भावी पीढ़ी को बचाया जा सकता है।
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प्रि-इंप्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग (पीजीएस/पीजीटी) (20 से 40 साल उम्र में)
प्रि-इंप्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग टेस्ट उन महिलाओं को लिए बहुत जरूरी है, जो आईवीएफ के जरिए गर्भधारकण करने की सोच रही हैं। पीजीटी की मदद से आईवीएफ के जरिए विकसित हो रहे भ्रूण को गर्भ में स्थापित करने से पहले विभिन्न अनुवांशिक विकारों के लिए उसका परीक्षण किया जा सकता है। इसकी मदद से बच्चों में अनुवांशिक विकारों को पहुंचाने से रोका जा सकता है।
आरएचडी स्क्रीनिंग (20 से 40 साल उम्र)
गर्भवती महिलाओं की आरएचडी स्क्रीनिंग का उद्देश्य मां और भ्रूण के बीच आरएच फैक्टर असंगति का पता लगाना है। इसकी वजह से गर्भ में जटिलताएं या गर्भपात हो सकता है। गर्भ के शुरुआती चरण में जिन महिलाओं में आरएचडी-नेगेटिव पाया जाता है, उन्हें आरएच इम्युनोग्लोबुलिन दिया जाता है। इससे आरएच फैक्टर के नेगेटिव परिणामों को रोका जा सकता है। इस तरह, बच्चा और शिशु दोनों स्वस्थ रह सकते हैं।
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सर्वाइक कैंसर की स्क्रीनिंग (16 से 25 साल उम्र)
डॉ. संध्या नायर बताती हैं कि मौजूदा समय में सर्वाइकल कैंसर भारत में 15 से 44 साल की महिलाओं में पाया जाने वाला दूसरा सबसे आम कैंसर है। इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर पहले से इस बीमारी का पता चल जाए, तो समय रहते सही से उपचार संभव हो सकता है। विशेषकर, 16 से 25 साल की उम्र की महिलाओं के लिए स्क्रीनिंग महत्वपूर्ण होती है क्योंकि युवावस्था में स्क्रीनिंग द्वारा समय पर उपाय किया जा सकता है और इलाज को काफी प्रभावी बनाया जा सकता है।
ओवेरियन कैंसर
डॉ. संध्या नायर कहती हैं, "यह बीमारी बीआरसीए1 और बीआरसीए2 जीन्स में अनुवांशिक म्यूटेशन के कारण होती है। इन म्यूटेशंस के लिए जेनेटिक स्क्रीनिंग को कैंसर स्क्रीनिंग कार्यक्रमों में शामिल कर लेने से समय पर पहचान करने के प्रयास बढ़ेंगे और इसके होने का जोखिम भी कम किया जा सकेगा।"
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