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क्या गर्भावस्था में भ्रूण में आनुवंशिक विकारों का पता लगाया जा सकता है? डॉक्टर से जानें

कई बीमारियों माता-पिता से बच्चों में आती है, लेकिन क्या इनका पता प्रेग्नेंसी के दौरान आनुवंशिक विकारों लगाया जा सकता है? आइए लेख में जानें -
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क्या गर्भावस्था में भ्रूण में आनुवंशिक विकारों का पता लगाया जा सकता है? डॉक्टर से जानें


Can Genetic Disorders In A Fetus Be Detected During Pregnancy In Hindi: सभी माता-पिता की इच्छा होती है कि उनका बच्चा स्वस्थ पैदा होता है, लेकिन कई बार कुछ परिवारों में स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं या जेनेटिक बीमारियां होती है, जो माता-पिता या दादा दादी से अगली पीड़ी के बच्चों में आ जाती है या बच्चों में इन बीमारियों का खतरा बना रहता है। ऐसे में अक्सर नए पेरेंट्स के मन में यह सवाल उठता है कि क्या हमसे कोई जेनेटिक बीमारी बच्चे में तो नहीं जा रही है? या इनके कारण बच्चे को कोई गंभीर परेशानी तो नहीं होगी? और क्या इन बीमारियों का पता बच्चे के पैदा होने से पहले पता लगाया जा सकता है? ऐसे में आइए कटक के बिरला फर्टिलिटी एंड आईवीएफ में फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट डॉ. रसमीन साहू (Dr. Rasmeen Sahu, Fertility Specialist at Birla Fertility & IVF, Cuttack) से जानें क्या गर्भावस्था के दौरान भ्रूण में आनुवंशिक विकारों का पता लगाया जा सकता है?

क्या प्रेग्नेंसी के दौरान भ्रूण में आनुवंशिक विकारों का पता लगाया जा सकता है? - Kya Pregnancy Mein Fetus Genetic Disorders Ka Pta Lagaya Ja Sakta Hai?

डॉ. रसमीन साहू के अनुसार, आज के समय में टेक्नोलॉजी की मदद से इन आशंकाओं का सामधान करने में मदद मिल सकती है, खासकर आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) की प्रक्रिया कराने वाले कपल के लिए यह जांच कराना आसान है। आईवीएफ की प्रक्रिया कराने वाले कपल्स गर्भधारण से पहले ही ये जांच करा सकते हैं कि बच्चे को कई जेनेटिक डिसऑर्डर की समस्या तो नहीं। यह जांच प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग (PGT) तकनीक के जरिए होती है। इससे बच्चे के हेल्दी जीवन की शुरुआत में मदद मिल सकती है, साथ ही, इससे बच्चे के स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से बचा जा सकता है और सुनिश्चित किया जा सकता है कि बच्चा स्वस्थ है।

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क्या होती है प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग (PGT)?

प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग यानी पीजीटी एक आधुनिक तकनीक है। इसके जरिए भ्रूण (embryo) की इंप्लांटेशन (implantation) से ही आनुवंशिक विकारों की जांच की जाती है। इस प्रोसेस में भ्रूण का एक छोटा सा सेंपल लिया जाता है और उसके डीएनए की जांच की जाती है, जिससे यह पता लगाया जाता है कि भ्रूण में कोई जेनेटिक म्यूटेशन या क्रोमोसोमल असमानता तो नहीं है। 

पीजीटी जांच कितने प्रकार की होती है और इनकी उपयोगिता क्या हैं? - How Many Types Of PGT Tests Are There And What Is Their Utility?

डॉ. रसमीन के अनुसार, पीजीटी जांच मुख्य रूप से 3 तरह की होती हैं, जो अलग-अलग तरह के आनुवांशिक विकारों की पहचान के लिए की जाती हैं।

PGT-A (for Aneuploidy)

इस परिक्षण में भ्रूण की जांच की जाती है कि उनमें क्रोमोसोम की संख्या सही है या नहीं। बता दें, अगर भ्रूण में क्रोमोसोम की संख्या असामन्य होती है, तो उससे गर्भपात या जन्मजात विकार हो सकते हैं। यह टेस्ट उन महिलाओं के लिए फायदेमंद है, जो एडवांस मेटर्नल ऐज (advanced maternal age) में हैं और बार-बार IVF के असफल होने या बार-बार गर्भपात हो चुका है या पुरुष को इनफर्टिलिटी की समस्या है।

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PGT-M (for Monogenic Disorders)

यह परिक्षण सिंगल जीन (single gene) में होने वाले म्यूटेशन की जांच करता है। यह जांच उन कपल्स के लिए सही है, जिनकी फैमिली हिस्ट्री में सिकल सेल एनीमिया, न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस, थैलेसीमिया या अन्य आनुवंशिक बीमारियां रही हैं। ऐसे में इस जांच को कराया जा सकता है। इससे इन जेनेटिक डिसऑर्डर का पहले से पता लगाया जा सकता है।

PGT-SR (for Structural Rearrangements)

इस परीक्षण तब किया जाता है, जब पेरेंट्स में से किसी भी एक में क्रोमोसोम के स्ट्रक्चर में परिवर्तन (जैसे डिलीशन या डुप्लीकेशन) होता है। बता दें, इस बदलाव में पेरेंट्स पर असर नहीं होता है, लेकिन यह उनके बच्चे पर प्रभाव डाल सकता है। ऐसे में यह टेस्ट कई तरीकों से मदद करता है।

क्यों जरूरी है आनुवंशिक स्क्रीनिंग? - Why Is Genetic Screening Important?

बदलते लाइफस्टाइल के कारण आज के समय में ज्यादातर कपल्स व्यक्तिगत प्राथमिकताओं की वजह से प्रेग्नेंसी में देरी होती है और उम्र बढ़ने लगती है, जिसके कारण महिलाओं को प्रेग्नेंसी में कॉम्प्लिकेशन्स बढ़ जाती हैं और आनुवंशिक जोखिम का खतरा भी बढ़ सकता है।

ऐसे में पीजीटी परिक्षण की मदद से कपल्स गर्भधारण करने से पहले ही सुनिश्चित कर सकते हैं कि बच्चा आनुवंशिक रूप से स्वस्थ होगा। इससे गर्भधारण करने में मदद मिलती है और गर्भपात की संभावना भी कम होती है।

निष्कर्ष

आज के समय में आईवीएफ की प्रक्रिया के जरिए गर्भधारण करने वाले कपल्स गर्भधारण करने से पहले ही प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग (PGT) तकनीक के जरिए भ्रण की टेस्टिंग करा सकते हैं, जिससे पहले ही पता चल सकता है कि बच्चा आनुवंशिक रूप से स्वस्थ होगा की नहीं। नेचुरली कंसीव करने वाले माता-पिता में जेनेटिक डिसऑर्डर का पता लगाना मुश्किल है, लेकिन आईवीएफ की प्रक्रिया में इसका पता लगाया जा सकता है।

All Images Credit- Freepik

FAQ

  • महिलाओं में फर्टिलिटी कैसे बढ़ाएं?

    महिलाओं में फर्टिलिटी को बढ़ावा देने के लिए हेल्दी और पोषक तत्वों से युक्त डाइट लें, स्ट्रेस कम करें, नियमित एक्सरसाइज करें और पर्याप्त नींद लें। इससे स्वास्थ्य को बेहतर करने और फर्टिलिटी को बढ़ावा देने में मदद मिलती है। 
  • गर्भवती महिला को कौन सा खाना खाना चाहिए?

    प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को डाइट में अधिक फाइबर युक्त फूड्स, हरी पत्तेदार सब्जियों, डेयरी प्रोडक्ट्स, फल, ड्राई फ्रूट्स और साबुत अनाज को डाइट में शामिल किया जा सकता है। 
  • आईवीएफ क्या होता है?

    इन विट्रो फर्टिलाइजेशन को आईवीएफ के नाम से जाना जाता है। यह फर्टिलिटी की एक प्रक्रिया है, जो उन कपल्स के लिए होती है, जो नेचुरली कंसीव नहीं कर पाते हैं। इसमें शुक्राणु और अंडे को लैब में फर्टिलाइजड किया जाता है और फिर भ्रूण को गर्भाशय में ट्रांसप्लांट किया जाता है।

 

 

 

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