Conn's Syndrome: कॉन सिंड्रोम, सेहत से जुड़ी एक गंभीर समस्या है। कॉन सिंड्रोम को हाइपरअल्डोस्टेरोनिज्म भी कहा जाता है। दुर्लभ अंतःस्रावी विकार है जिसमें आपके एड्रिनल ग्रंथि से बहुत ज्यादा एल्डोस्टेरोन हार्मोन का प्रोडक्शन होता है। यह हार्मोन आपके शरीर के ब्लड प्रेशर और इलेक्ट्रोलाइट्स (सोडियम और पोटेशियम) के स्तर को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब शरीर में इस हॉर्मोन का प्रोडक्शन बढ़ जाता है, तो इसकी वजह से कई गंभीर समस्याओं का खतरा रहता है। आइए इस लेख में विस्तार से समझते हैं, कॉन सिंड्रोम के बारे में।
कॉन सिंड्रोम के लक्षण
कॉन सिंड्रोम के लक्षण धीरे-धीरे विकसित होते हैं । इसके कुछ प्रमुख लक्षण ये हैं-
- हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन)
- लो पोटेशियम का लेवल (हाइपोकैलेमिया)
- लगातार पेशाब आना
- थकान
- मांसपेशियों की कमज़ोरी
- मांसपेशी में ऐंठन
- सिरदर्द
- मतली
- उल्टी

कॉन सिंड्रोम के कारण
कॉन सिंड्रोम के मुख्य लक्षण इस तरह से हैं-
- एड्रिनल ग्रंथि के एडेनोमा: यह एक गैर-कैंसरयुक्त ट्यूमर है जो आपके अधिवृक्क ग्रंथि में विकसित होता है और अतिरिक्त एल्डोस्टेरोन का उत्पादन करता है। यह कॉन सिंड्रोम का सबसे आम कारण है।
- एड्रिनल ग्रंथि का हाइपरप्लेसिया: यह स्थिति तब होती है जब आपके अधिवृक्क ग्रंथि का ऊतक अतिवृद्धि हो जाता है और अधिक एल्डोस्टेरोन का उत्पादन करता है।
- दवाएं: कुछ दवाएं, जैसे कि एस्ट्रोजन और कुछ प्रकार के गर्भ निरोधक गोलियां, आपके शरीर में एल्डोस्टेरोन के स्तर को प्रभावित कर सकती हैं।
कॉन सिंड्रोम का इलाज और बचाव
कॉन सिंड्रोम की जांच के लिए ब्लड टेस्ट करने की सलाह दी जाती है। ब्लड टेस्ट में आपके एल्डोस्टेरोन और रेनिन के स्तर की जांच की जाती है। यह एक तरह का हॉर्मोन है, जो ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद करता है।
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इसके अलावा गंभीर मामलों में इमेजिंग परीक्षण जैसे सीटी स्कैन या एमआरआई भी करवाने की जरूरत पड़ सकती है। इसके इलाज के लिए आपको दवाओं का सेवन, सर्जरी और डाइट का विशेष ध्यान रखने की सलाह दी जाती है।
नोट: यह आर्टिकल बाबू ईश्वर शरण हॉस्पिटल के सीनियर फिजीशियन डॉ समीर से मिले इनपुट पर आधारित है।
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