Blue baby syndrome: इस बीमारी में नीला पड़ जाता है बच्चों का शरीर, जानें कारण, लक्षण और बचाव के उपाय

3 महीने से कम उम्र के शिशुओं को ब्लू बेबी सिंड्रोम होने का सबसे अधिक खतरा होता है। लेकिन ये कुछ कारणों से इससे ज्यादा उम्र के बच्चों को भी हो सकता है।
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Blue baby syndrome: इस बीमारी में नीला पड़ जाता है बच्चों का शरीर, जानें कारण, लक्षण और बचाव के उपाय


दुनिया भर में बढ़ता प्रदूषण कई नई बीमारियों का कारण बन रहा है। प्रदूषण सिर्फ आपके फेफड़े और दिल के ही स्वास्थ्य को प्रभावित नहीं करता बल्कि आपके बच्चों को भी बीमार बना रहा है। जैसे कि प्रदूषित पानी बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम (blue baby syndrome) नामक बीमारी का कारण बनता है। ब्लू बेबी सिंड्रोम में बच्चे का शरीर नीला पड़ने लगता है। होता ये है कि इस बीमारी में बच्चे के शरीर में ऑक्‍सीजन की मात्रा कम हो जाती है और नाइट्रेट जैसे हानिकारक अणुओं की मात्रा बढ़ जाती है। खून में  इस तरह ये ऑक्‍सीजन की कमी के कारण स्किन का रंग नीला पड़ जाता है। पर इसके अलावा भी ब्लू बेबी सिंड्रोम के कारण कई हैं, जिसके बारे में हमने द्वारा डॉ. फजल नबी (Dr. Fazal Nabi), निदेशक विभाग बाल रोग विशेषज्ञ, जसलोक अस्पताल से बात की। जिन्होंने हमें इस बीमारी के कारणों, लक्षण और उपायों के बारे में बताया। 

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ब्लू बेबी सिंड्रोम का कारण -Causes of blue baby syndrome

1. नाइट्रेट से दूषित पानी

 डॉ. फजल नबी (Dr. Fazal Nabi) बताते हैं कि ब्लू बेबी सिंड्रोम (blue baby syndrome) या मेथेमोग्लोबिनेमिया (Methemoglobinemia), एक ऐसी स्थिति है जो तब होती है जब बच्चे के खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा में कमी हो जाती है और शिशु की त्वचा नीली हो जाती है। ये कई कारणों से हो सकता है।  ब्लू बेबी सिंड्रोम का सबसे आम कारण नाइट्रेट से दूषित पानी पीना । दरअसल, होता ये है कि बच्चा अगर नाइट्रेट युक्त पानी पी लेता है, तो शरीर नाइट्रेट्स को नाइट्राइट में बदल देता है। ये नाइट्राइट शरीर में हीमोग्लोबिन से बंधते हैं, जिससे मेथेमोग्लोबिन बनता है, जो ऑक्सीजन ले जाने में असमर्थ होता है। डॉ. फजल नबी  बताते हैं कि कुएं के पानी का उपयोग करने वाले लोगों के यहां पीने के पानी में नाइट्रेट होना सबसे आम हैं। यह प्रदूषण उर्वरकों और खाद के उपयोग के कारण होता है।

2. फैलोट (टीओएफ) का टेट्रालॉजी

टीओएफ (Tetralogy of Fallot) एक गंभीर जन्मजात हृदय स्थिति है जो हृदय में चार संरचनात्मक असामान्यताएं पैदा करती है जिससे रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। जैसे कि पलमोनरी आर्टरी का पतला होना (स्टेनोसिस), वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट, एरोटा का ऊपर आ जाना और दाहिना वैंट्रिकल का बड़ा हो जाना। यह स्थिति बच्चे को नीला दिखने का कारण बन सकती है, हालांकि यह आमतौर पर जन्म के समय होता है।

3. जन्मजात हृदय से जुड़ी समस्याओं के कारण

कोई भी जन्मजात हृदय असामान्यता जो बच्चे के रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा को प्रभावित करती है, उसके कारण आपकी त्वचा नीली हो सकती है। दरअसल, दिल, फेफडों या खून में कोई भी दिक्‍कत होने पर भी खून में ऑक्‍सीजन की कमी हो जाती है। इससे स्किन का रंग नीला पड़ने लगता है। 

4. अन्य कारण

ब्लू बेबी सिंड्रोम के अन्य कारणों में शामिल है इनहेल्ड नाइट्रिक ऑक्साइड, एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल, अल्सर या गैस्ट्र्रिटिस, किडनी फेल्योर और अन्‍य हार्ट डिफेक्‍ट। इसके अलावा वेस्ट डंप या आस-पास खुले शौचालयों का होना भी इसका कारण बनता है। 

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ब्लू बेबी सिंड्रोम के लक्षण-Symptoms of blue baby syndrome

जब एक बच्चा ब्लू बेबी सिंड्रोम के संपर्क में आता है, तो उनकी त्वचा सायनोसिस या नीले रंग के पिगमेंटेशन की स्थिति में प्रवेश करती है, जो तब होती है जब त्वचा की सतह के पास श्लेष्म झिल्ली में ऑक्सीजन कम पड़ जाती है। इसके अन्य लक्षणों की बात करें तो, मेथेमोग्लोबिनेमिया 10% से ऊपर के स्तर पर होने पर

  • - सांस की तकलीफ
  • - सायनोसिस
  • -सिरदर्द
  • - थकान
  • - एक्सरसाइज करने में परेशानी
  • - चक्कर आना 
  • -बेहोशी 
  • -चिड़चिड़ापन
  • -सुस्ती
  • -वजन ना बढ़ना
  • -बच्चे का विकास ना हो पाना
  • -क्लब्ड यानी कि गोल आकार की अजीब सी उंगलियां 

ब्लू बेबी सिंड्रोम की जांच और इलाज

डॉक्टर आमतौर पर नियमित जांच के दौरान ब्लू बेबी सिंड्रोम का इलाज करते हैं। लेकिन अगर आप देखते हैं कि आपके बच्चे की त्वचा का रंग नीला पड़ गया है, तो जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करें। डॉक्टर पूरी तरह से चिकित्सा और पारिवारिक इतिहास लेकर और घर पर किसी भी लक्षण, खाने के पैटर्न और स्थितियों के बारे में पूछ कर इसकी जांच शुरू करते हैं। फिर वे शरीर के फीके पड़े रंगों को देखकर और बच्चे के दिल और फेफड़ों को सुनकर एक टेस्ट लिखते हैं। जैसे कि 

  • -ब्लड टेस्ट
  • -फेफड़ों और हृदय के आकार की जांच के लिए छाती का एक्स-रे
  • -इसीजी 
  • -दिल की शारीरिक रचना देखने के लिए इकोकार्डियोग्राम
  • -हृदय की धमनियों की जांच के लिए कार्डिएक कैथीटेराइजेशन

ब्लू बेबी सिंड्रोम का इलाज के लिए सबसे पहले को बच्चे में नाइट्रेट प्वाइजिंग की दवा दी जाती है या इसे रोकने के उपाय बताए जाते हैं।  मेथेमोग्लोबिनेमिया के गंभीर मामलों के लिए दवा मेथिलीन ब्लू दी जाती है, जो खून को ऑक्सीजन प्रदान करती है।अन्य उपचारों में एस्कॉर्बिक एसिड और ऑक्सीजन थेरेपी आदि दी जाती हैं।

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ब्लू बेबी सिंड्रोम से बचाव के उपाय-Prevention tips for blue baby syndrome

ब्लू बेबी सिंड्रोम के ज्यादातर ग्रामीण इलाकों या फिर गंदगी वाली जगहों के आस पास रहने वाले लोगों के बच्चों में हो सकता है। ऐसे में कुछ चीजें हैं जिससे आप बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम को रोक सकते हैं। जैसे कि 

-कुएं के पानी का प्रयोग न करें। कुएं के पानी से शिशु का फार्मूला तैयार न करें या 12 महीने से अधिक उम्र तक बच्चों को पीने के लिए पानी न दें। 

-ध्यान दें कि पानी को उबालने से भी नाइट्रेट नहीं हटेंगे। पानी में नाइट्रेट का स्तर 10 मिलीग्राम/लीटर से अधिक नहीं होना चाहिए। आपका स्थानीय स्वास्थ्य विभाग आपको इस बारे में अधिक जानकारी दे सकता है कि वहां का पानी कैसा है।

-नाइट्रेट युक्त खाद्य पदार्थों को सीमित करें। 

-नाइट्रेट से भरपूर खाद्य पदार्थों में ब्रोकोली, पालक, चुकंदर और गाजर को बच्चे के खाने में शामिल ना करें।  

-अपने बच्चे के 7 महीने का होने से पहले उसे दूध पिलाने की मात्रा सीमित करें। अगर आप अपना खुद का शिशु आहार बनाते हैं और इन सब्जियों का उपयोग करना चाहते हैं, तो ताजी के बजाय फ्रोजन का उपयोग करें।

साथ ही ब्लू बेबी सिंड्रोम से बचाव के लिए सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात ये है कि गर्भावस्था के दौरान अवैध ड्रग्स, धूम्रपान, शराब और कुछ दवाओं से बचें। इनसे बचने से जन्मजात हृदय दोषों को रोकने में मदद मिलेगी। अगर आपको डायबिटीज है, तो सुनिश्चित करें कि पूरी प्रेग्नेंसी के समय ये अच्छी तरह से नियंत्रित रहे और आप डॉक्टर की देखरेख में रहें।

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