यूपी के सरकारी अस्पतालों में लगाई जाएंगी पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीनें, जानें कैसे करती हैं ये काम

यूपी में स्वास्थ्य व्यवस्था के प्रति जागरुकता देखने को मिल रही है। अब प्रदेश में पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीनों की व्यवस्था की जाएगी। 
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यूपी के सरकारी अस्पतालों में लगाई जाएंगी पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीनें, जानें कैसे करती हैं ये काम


यूपी में स्वास्थ्य व्यवस्था के प्रति जागरुकता देखने को मिल रही है। अब प्रदेश में पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीनों की व्यवस्था की जाएगी। दरअसल, उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने गुरुवार को इस बात की जानकारी दी कि अब प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीन (USG) और डिजिटल रेडियोग्राफी मशीनें लगाई जाएंगी, जिससे लोगों को बेडसाइड सुविधाएं मिल सकेंगी। पाठक के मुताबिक अगले दो महीनों में मशीन लगाने का काम पूरा हो जाएगा साथ ही इसमें होने वाली देरी और कोताही बरतने पर एक्शन लिया जाएगा। 

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10 जिलों में लगाई जाएंगी मशीनें 

उपमुख्यमंत्री के अनुसार मशीनों के लगने के बाद मरीजों को इलाज कराने में काफी आसानी होगी। मशीनें लगाने की व्यवस्था 10 जिलों मे की जाएगी। पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीन कन्नॉज, छिब्रामउ, कैंट बोर्ड हॉस्पिटल, मैनपुरी, मउ, संत कबीर नगर, शामली, अलीगढ़, अमरोहा, छिछोली, औरैया में लगाई जाएंगी। वहीं डिजिटल रेडियोग्राफी मशीनें सहारनपुर, अलीगढ़, अमरोहा, औरैया, अयोध्या, बागपत, बलरामपुर, बांदा, चित्रकूट, फर्रुखाबाद, हाथरस, कन्नॉज, देहात, कासगंज, कशीनगर, कैंट हॉस्पिटल, महोबा, मैनपुरी, मउ और संत कबीर नगर में लगाई जाएंगी।  

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क्या है पोर्टेबल अल्ट्रसाउंड मशीन ? 

पोर्टेबल अल्ट्रसाउंड मशीन एक छोटे आकार की मशीन है, जिसे आसानी से हाथ में उठाया या फिर किसी भी जगह पर स्थानांत्रित किया जा सकता है। यह अन्य अल्ट्रासाउंड मशीनों की तुलना में थोड़ी फास्ट होती है। इसे शरीर के किसी हिस्से की गहराई में देखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह मशीन भी कई प्रकार की होती है, जिसे न केवल पेट की समस्याओं बल्कि, कार्डियक और वैस्कुलर सिस्टम के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। 

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कई देशों में किया जाता है इस्तेमाल 

पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीन का इस्तेमाल जर्मनी, इटली, फ्रांस, यूनाइटेड स्टेट और कनाडा आदि जैसे अन्य भी कई देशों में काफी पहले से किया जाता है। हालांकि, भारत में भी कई अस्पतालों में इसका इस्तेमाल हो रहा है। इसके परिणाम थोड़ा जल्दी देखने को मिल सकते हैं। सरकारी अस्पतालों में ये मशीनें लगने से मरीजों को अधिक पैसों में निजी अस्पतालों या फिर लैब में नहीं जाना पड़ेगा।

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