बेटी पैदा होने पर फीस नहीं लेती हैं ये महिला डॉक्टर, जानें डॉ. शिप्रा के इस मिशन के पीछे क्या है कारण

डॉ. शिप्रा बेटियों के पैदा होने पर कोई शुल्क नहीं लेतीं, बल्कि मिठाइयां बंटवाती है। लोगों को उपहार देती हैं ताकि वे बेटी को बोझ न समझें।
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बेटी पैदा होने पर फीस नहीं लेती हैं ये महिला डॉक्टर, जानें डॉ. शिप्रा के इस मिशन के पीछे क्या है कारण


‘’बेटी पैद हो जाए तो सन्नाटा और मातम पसर जाता है और बेटा होने पर ढोल-नंगाड़े बजते हैं। अस्पताल में बेटियों के पैदा होने पर यह मातम देखकर मुझे दुख होता था इसलिए बेटियों के पैदा होने पर फीस लेना बंद कर दिया।’’ वाराणसी की शिप्रा धर का यह कहना है। शिप्रा पेशे से एक डॉक्टर हैं। वाराणसी में ही अपना अस्पताल चलाती हैं। प्रशानिसक तौर पर कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट देखें तो इन प्रयासों पर संदेह होने लगता है। संघ की रिपोर्ट के मुताबिक 2013 से 2017 के बीच 4.6 लाख लड़कियां गायब हो गईं। बटियों के जन्म से पहले ही मार दिया जाता है। अगर कोई जन्म ले भी ले तो जन्म के बाद उसे बराबरी के अधिकार व सुविधाएं नहीं दी जाती हैं। आज के इस लेख में हम जानेंगे उस बहादुर और खूबसूरत महिला की कहानी जो 2014 से बेटियों के प्रसव पर कोई शुल्क नहीं लेती हैं। बेटी पैदा होने पर खुशियां मनाती हैं, मिठाइयां बंटवाती हैं।

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‘पति ने दिया था आइडिया’

डॉ. शिप्रा बताती हैं कि जब अस्पताल में औरतें आती थीं डिलेवरी के लिए और अगर लड़की हो गई तो बहुत ही उदास हो जाती थीं। यह मायूसी और उदासी देखकर डॉ. शिप्रा परेशान हो गई थीं, तब उन्होंने सोचा कि ऐसा क्या किया जाए कि बेटी पैदा होने पर परिवारों को दुख न हो। उन्होंने सोचा कि बेटी पैदा होने पर परिवारों को कोई उपहार दे देना चाहिए, लेकिन पति ने आइडिय दिया कि उपहार से तो लोग थोड़ी देर के लिए खुश होंगे। इसलिए बेटियों की फ्री डिलेवरी करो। तब उन्हें बेटियां बोझ नहीं लगेंगी। शिप्रा ने पति के इस आइडिया पर काम किया। और आज तक 419 बेटियों फ्री डिलेवरी कर चुकी हैं। 

डॉ. शिप्रा ने बताया कि उनके पिता बचपन में गुजर गए थे। इस वजह से उनका लालन-पालन उनके ननिहाल में हुआ। ज्यादातर समय महिलाओं के बीच ही रहीं। यही वजह थी कि उनमें महिलाओं के प्रति संवेदना ज्यादा थी। और भविष्य में बेटिोयों के लिए इतना हिम्मती काम कर पाईं। शिप्रा बताती हैं कि मेरी इस सोच को केवल मेरे पति ही नहीं बल्कि मेरे ससुराल वालों ने भी सपोर्ट किया। 

डॉ. शिप्र बताता हैं कि बेटियों के पैदा होने पर अगर परिवार को फीस देनी पड़ जाए तब उनका पहला रिएक्श होता ‘अरे मैडम एक तो पेट चीर दिया, लड़की निकाल दी अब ऊपर से आप पैसे भी मांगेंगी।’ शिप्रा बताती हैं कि  ये बात वे तब नहीं कहते जब लड़का हो जाए और ऑपरेशन करना पड़े। शिप्रा बताती हैं कि एक औरत होने के नाते बेटियों के प्रति ऐसा रवैया देखकर मैं परेशान हो जाती थी। शिप्रा बताती हैं कि हमारे अस्पताल में किस दिन लड़का हुआ है और किस दिन लड़की। यह हमारे बच्चों को भी पता चल जाता है। शिप्रा का घर ऊपर है और नर्सिंग होम नीचे चलता है। जिस दिन लड़का होता है उस दिन हल्ला होता है और बच्चों को आवाजें सुनाई देती हैं कि ‘अरे बेटा भइले ला। दादी बन गऐलु।’  बेटी होने पर सन्नाटा रहता है। 

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बिना सरकारी मदद करती हैं काम

डॉ. शिप्रा बताती हैं कि वे साल 2000 से प्रैक्टिस कर रही हैं। काम के दौरान जब बेटा और बेटी को लेकर भेदभाव देखा तो बेटी नहीं है बोझ, आओ बदलें सोंच जैसी मुहिम चलाई। अस्पताल का खर्च कैसे निकालती हैं, इस सवाल के जवाब में वे कहती हैं कि जब आवश्यकताओं को कम कर दो तो खर्च कम हो जाता है। बस इसी सोच पर हॉस्पिटल चला रहे हैं। डॉ. शिप्रा ने बताया कि अब तो ऐसे भी मामले आने लगे हैं जब महिलाएं पूरे नौ महीने कहीं और से इलाज कराती हैं और जब प्रसव का समय आता है तब हमारे अस्पातल में आती हैं। 

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प्रधानमंत्री मोदी ने भी की तारीफ

शिप्रा की अब तक दो बार प्रधानमंत्री मोदी से बात हो चुकी है। वे बताती हैं कि मोदी जी लोकसभा चुनाव से पहले जब वाराणसी आए थे एक कार्यक्रम में। जिसमें 10 विशिष्ट जनों को बुलाया गया था। तो उसमें से हम भी एक थे। हम सब ने भी अपने काम के बारे में बताया। फिर मोदी जी ने अपने भाषण के बीच में मेरे काम के बारे में बोला। तब मुझे बहुत खुशी हुई थी। हम तो रोने ही लगे थे। इतने बड़े आदमी ने मेरे बारे में इतना अच्छा बोला। 

शिप्रा बताती हैं कि जब कोई मेरे काम के बारे में कहता है कि मोदी जी से प्रेरणा लेकर शुरू किया। तब हम गर्व से कहते हैं कि नहीं हमने मोदी जी से पहले शुरूआत की थी। मोदी जी का बेटी बचाओ अभियान बाद में शुरू हुआ। शिप्रा बताती हैं कि बेटी बचाओ अभियान से हमें फायदा ये हुआ कि हमारे काम को भी पहचान मिलने लगी।

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गरीब बच्चों को पढ़ाती हैं शिप्रा 

शिप्रा मुफ्त प्रसूति कराने के अलावा गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाती हैं। उनके यहां आसपास कई बच्चे पढ़ने आते हैं। इसके अलावा वे हर शनिवार को ओपीडी भी मुफ्त रखती हैं। ताकि गरीब लोग भी अपना इलाज करा सकें। शिप्रा बताती हैं कि हम अपनी तरफ से तो कोशिश कर रहे हैं लेकिन समाज में अभी और लोगों को भी कोशिश करने की जरूरत है। तभी हमारी बेटियां गर्भ में मरने से बच पाएंगी।

सोच बदलने की जरूरत : डॉ. शिप्रा

डॉ. शिप्रा ने बेटियों की मुफ्त प्रसूति की शुरूआत जुलाई 2014 से की थी, लेकिन आज 2021 तक वे अपना काम वैसे ही कर रही हैं। शिप्रा कहती हैं कि किसी एक के करने से पूरा समाज नहीं बदल जाएगा, बल्कि हमें समाज की पूरी सोच को बदलना होगा। शिप्रा अपने काम के अनुभव सांझा करते हुए कहती हैं कि अब तो ऐसे केस आते हैं जिसमें लड़की होने पर लोग खुशी जताते हैं और कहते हैं मैडम बधाई हो लक्ष्मी आई है। अब मेरा पैसा नहीं लगेगा। शिप्रा खुश होकर कहती हैं कि जो डायलॉग हम लोगों से बोलते थे अब वो मुझे बोलते हैं।

शिप्र के प्रयासों से आज उन्होंने अपने राज्य में 419 बेटियों बचा ली हैं। उनका काम आज भी वैसे ही जारी है। हमें शिप्रा जैसे लोगों से सीख लेनी चाहिए। बेटियों को भी अगर लड़कों के बराबरी शिक्षा और आजादी देंगे तो वो बेटों से ज्यादा नाम कमाएंगी। 

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