Postpartum Depression: बच्चे को जन्म देने के बाद डिप्रेशन का शिकार हुई इस महिला की कहानी से समझें इस समस्या को

शिशु को जन्म देने के बाद कैसे किसी मां के स्वभाव में चिड़चिड़ापन, दुख और निराशा आ जाती है और उसका सामना कैसे करना है, समझें अनु चौहान की कहानी से।
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Postpartum Depression: बच्चे को जन्म देने के बाद डिप्रेशन का शिकार हुई इस महिला की कहानी से समझें इस समस्या को

भारत में मां बनना किसी उपलब्धि से कम नहीं है। हमारे समाज में एक उक्ति प्रचलित है कि एक औरत जब मां बनती है, तब वह पूर्ण स्त्री होती है। वास्तव में मां बनने के बाद अलग-अलग महिलाओं के अलग-अलग अनुभव हो सकते हैं। शुरुआती दिनों में ज्यादातर नई मांओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन देखा जाता है कि शिशु के जन्म की खुशी के सामने उन्हें अपने कष्ट नगण्य लगते हैं। वहीं कुछ मामलों में ऐसा भी देखा गया है कि शिशु को जन्म देने के बाद महिला का अंतर्मन व्यथित हो जाता है और महिला डिप्रेशन जैसी स्थिति का शिकार हो जाती है। इसे मेडिकल भाषा में पोस्टपार्टम डिप्रेशन (Postpartum Depression) कहते हैं। कई बार ये डिप्रेशन इतना गंभीर होता है कि महिला अपने बच्चे को नुकसान पहुंचाने के बारे में भी सोच सकती है। बच्चा होने के बाद औरतों में केवल शारीरिक बदलाव नहीं होते, बल्कि उनकी मानसिक स्थिति में भी बदलाव आता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में हर साल 10 मिलियन से ज्यादा औरतें इस पोस्टपार्टम डिप्रेशन (पीपीडी) की शिकार बनती हैं। आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी ही महिला की सच्ची कहानी, जो पोस्टपार्टम डिप्रेशन का शिकार हुई थीं। नोएडा की रहने वाली डॉ. अनु चौहान पेशे से प्रोफेसर हैं। 4 साल पहले जब उन्होंने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया, तो उन्हें खुद में डिप्रेशन जैसे लक्षणों का सामना करना पड़ा। आइए उन्हीं से जानते हैं कि उन्होंने क्या महसूस किया था।

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डिलीवरी के बाद डिप्रेशन में चली गई थीं अनु

अनु चौहान बताती हैं कि ‘’अस्पताल में मेरा पेट फटा पड़ा था और वहां मौजूद लोग मेरे बजाय बच्चे की तरफ ध्यान दे रहे थे। मैं जिस दर्द से निकली थी उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा था। परिवार में पहला लड़का हुआ था इसलिए परिवार का पूरा ध्यान बच्चे पर था। तब मैं डिप्रेशन में चली गई थी। मेरे इस डिप्रेशन को मेरी ऑफिस कलीग ने समझा और मुझे बताया कि डिलीवरी के बाद होने वाले इस डिप्रेशन को पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहते हैं। इसके बारे में जानकारी होने के बावजूद मैं चिड़चिड़ी हो रही थी। मैं स्टाइलिश और फैशनेबल लड़की थी और डिलीवरी के बाद मेरे सारे कपड़े छोटे हो गए थे, इसका तनाव तो आज तक है। अपने पहले वाले फिगर को वापस पाने के लिए मैं आज तक कोशिशें कर रही हूं। मेरी बहुत रातें तो ऐसी कटीं जिनमें बस रोना ही होता था।’’ 

‘’मैं हमेशा से एक आजाद लड़की थी लेकिन बच्चा होने के बाद मैं घर में कैद हो गई थी। घर में कितनी ही मेड हों, लेकिन फिर भी बच्चे की चिंता लगी रहती थी। मैं खुद को एक गाय की तरह महसूस करने लगी थी जो खूंटे से बंध गई थी। फिर ऑफिस, बच्चा और घर का तनाव मैं झेल नहीं पा रही थी। ये सारा गुस्सा मेरे पति पर निकलता था। मेरे पति ने मेरी उस दौर में बहुत मदद की। ‘’ अनु की इन बातों को समझने के प्रयास में हमने एक महिला मनोवैज्ञानिक से भी बात की है।

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क्या कहती हैं मनोवैज्ञानिक?

दिल्ली विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की सेवानिवृत्त प्रोफेसर और प्राइवेट प्रैक्टिशनर, मनोवैज्ञानिक डॉ. अरुणा ब्रूटा का कहना है कि ‘’यों तो पोस्टपार्टम डिप्रेशन बहुत कॉमन है लेकिन ज्यादातर लोगों को इसके बारे में मालूम नहीं होता। पोस्टपार्टम डिप्रेशन अक्सर महिलाओं को होता है। जब वे बेबी को डिलीवर कर देती हैं तब ये डिप्रेशन होता है। इसमें उदासी होती है। विचारों में बहुत तेजी आ जाती है। आगे की बहुत फिक्र होने लगती है। मैं कुछ कर पाउंगी या नहीं कर पाउंगी या सास क्यों आई थीं। ऐसे विचार मन में आने लगते हैं। महिला का मूड ज्यादातर समय खराब स्थिति में रहने लगता है, जिसमें महिला बच्चे को न प्यार करना चाहती है, न गोद में उठाना चाहती है और न बच्चे को दूध पिलाना चाहती है। इसलिए नहीं कि उसे कोई विद्रोह है बल्कि उसका मन ही नहीं करता।’’ डॉक्टर ब्रूटा का कहना है कि ‘’अगर महिला में पहले से डिप्रेशन या मेनिया की हिस्ट्री नहीं रही है तो यह पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहलाता है।’’

बच्चे को मार डालने या खुद मर जाने का मन करता है

गोंडा के जीवनदीप चिकित्सालय एंड आइवीएफ सेंटर में गाइनाकॉलोजिस्ट गुंजन भटनागर का कहना है कि ‘’भारत में ज्यादातर लोगों को मालूम ही नहीं है कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन (पीपीडी) क्या होता है। लेकिन ये औरतों में बहुत कॉमन है।’’ उन्होंने बताया कि ‘’पोस्टपार्टम दो प्रकार को होता है। एक पोस्टपार्टम ब्लूज और दूसरा पोस्टपार्टम डिप्रेशन। पोस्टपार्टम ब्लूज बहुत खतरनाक नहीं होता। वह परिवार के सहयोग से ठीक हो सकता है। लेकिन पोस्टपार्टम डिप्रेशन के गंभीर मामलों में हम परिवार को कह देते हैं कि अभी बच्चे को मां से दूर ही रखें।’’ डॉ. भटनागर आगे बताते हैं कि ‘’हमारे पास जब पोस्टमार्टम डिप्रेशन के मामले आते हैं तब उसमें मां यह शिकायत करती है कि बहुत बार बच्चे को मार डालने तक का मन करता है। या खुद मर जाने का मन करता है। तब हम उनकी काउंसलिंग करते हैं।’’ 

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पोस्टपार्टम डिप्रेशन का कारण

मनोचिकित्सक डॉ. अरुणा ब्रूटा के अनुसार डिप्रेशन के निम्न कारण हो सकते हैं-

-पोस्टपार्टम डिप्रेशन इसलिए होता है कि क्योंकि बच्चा होने के बाद शरीर और दिमाग में बहुत से बायोकैमिलक बदलाव आते हैं। दिमाग और शरीर के हार्मोन एक रेशों में आपस में मिलते हैं। इनमें जरूरत से ज्यादा असंतुलन होने से पोस्टपार्टम डिप्रेशन होता है।

-पोस्टपार्टम डिप्रेशन का दूसरा कारण है जेनेटिक हिस्ट्री। कई बार पेशेंट की जेनेटिक हिस्ट्री रहती है। जैसे अगर खून के रिश्तों में यह पोस्टपार्टम डिप्रेशन होता आया है तो आगे भी हो सकता है। 

-पोस्टपार्टम डिप्रेशन की ऐसे लोगों को संभावना ज्यादा रहती है जिनका पहले से मूड स्विंग होता है। डॉक्टर का कहना है कि अगर ये मूड स्विंग्स डिलेवरी से पहले हैं तो इसे बाइपोलर डिप्रेशन कहते हैं लेकिन अगर डिलेवरी के बाद हो रहे हैं तो इसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहते हैं।

-परिवार की खींचतान अगर दिखाई देने लगती है तब भी यह पोस्टपार्टम डिप्रेशन होता है। जब आप बहुत लो होते हैं तब यह होता है। रात को सो नहीं पातीं। स्लो डाउन होने लगता है।

 पोस्टपार्टम डिप्रेशन का इलाज

1. गाइनाकॉलोजिस्ट डॉ. भटनागर का कहना है कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन महिला को डिलेवरी के बाद तनाव, चिंता, डर और गुस्सा महसूस होता है। ऐसे मामलों में हम पेशेंट की काउंसलिंग करते हैं। और उन्हें बताते हैं कि आप अकेली नहीं हैं इस परेशानी को झेलनी वाली। हर औरत इसे झेलती है।

2. डॉ. ब्रूटा का कहना है कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन परिवार के सहयोग से ठीक हो सकता है। अगर परिवार को यह समझ आ जाए कि महिला बच्चे को दूध नहीं पिला रही है या बिस्तर से हिल ही नहीं रही है तो उसे ऐसा न मानें कि वह एटिड्यूट दिखा रही बल्कि वह एक रोग से ग्रसित है, जिसका उसे इलाज चाहिए। 

3. डॉक्टर ब्रूटा के अनुसार पोस्टपार्टम डिप्रशन परिवार के सहयोग से ठीक हो सकता है। इसके अलावा एक्सरसाइज, वॉक आदि करके भी इसे ठीक किया जा सकता है। 

4. डॉक्टर ब्रूटा बताती हैं कि बहुत से मामलों में पेशेंट को दवा भी देनी पड़ती है। अगर उसे दवा देनी पड़ती है तो बच्चे को फीड कराना बंद करना पड़ता है। टॉप फीड कराना पड़ता है। 

5. डॉक्टर ब्रूटा ने बताया कि हर बीमारी में एक इंटेंसिटी लेवल होता है जैसे माइल्ड, मोडरेट और सिवेयर। अगर मोडरेटली पोस्टपार्टम है तो साइकोलजी से भी ठीक होता है जैसे काउंसलिंग और थेरेपी। लेकिन अगर मॉडरेट (हल्का-फुल्का) और सीवियर (गंभीर) है तो दवाई देनी पड़ती है महिला से फीड बंद करवानी पड़ती है।

 पोस्टपार्टम डिप्रेशन बहुत ही कॉमन समस्या है, जो अमूमन हर महिला को होती है। लेकिन दिक्कत ये है कि बहुत सी महिलाओं को इसके बारे में जानकारी ही नहीं है। इस वजह से वे इसका सही इलाज नहीं करवा पातीं। बहुत बार तो वे इस ट्रॉमा में जिंदगी निकाल देती हैं। दूसरा सबसे बड़ा कारण है कि भारत में डॉक्टर्स भी पेशेंट को नहीं बताते कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन नाम का कोई मानसिक रोग होता है। जानकारी की कमी की वजह से इसका सही इलाज नहीं होता। हालांकि अब धीरे-धीरे नई माएं इस रोग को समझ रही हैं।

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