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PCOS और गर्भाशय की समस्या के बाद IVF की मदद से मां बनीं दीपिका, ओव्यूलेशन में हो रही थी परेशानी

Khushkhabri With IVF: पीसीओएस और गर्भाशय से जुड़ी अन्य समस्या के कारण दीपिका कई सालों से गर्भधारण नहीं कर पा रही थीं। ऐसे में आईवीएफ को अपनाकर दीपिका ने किया सफल गर्भधारण।
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PCOS और गर्भाशय की समस्या के बाद IVF की मदद से मां बनीं दीपिका, ओव्यूलेशन में हो रही थी परेशानी


Khushkhabri With IVF: अनियमित दिनचर्या और बदली लाइफस्टाइल का प्रभाव महिला और पुरुषों के प्रजनन स्वास्थ्य पर देखने को मिलता है। यही वजह है कि आज के दौर में ज्यादतर महिलाओं को पीसीओएस, पीसीओडी, एंडोमेट्रियोसिस, फाइब्रॉइड्स आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह सभी समस्याएं महिलाओं के गर्भधारण करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं। ठीक इसी तरह की समस्या से दीपिका 33 वर्षीय (बदला हुआ नाम) भी पेरशान थी। दीपिका की शादी के बाद परिवार के अन्य सदस्य घर में नए मेहमान के आने का इंतजार कर रहे थें। ऐसे में काफी प्रयासों के बाद भी दीपिका को कंसीव करने में परेशानी आ रही थी। दो से तीन वर्ष बीत जाने के बाद दीपिका जैन और उनके पति ने गर्भधारण की संभावना को बढ़ाने और समस्या को कम करने के लिए कई डॉक्टरों से सलाह ली। लेकिन, इन्हीं प्रयासों और ट्रीटमेंट में करीब आठ सालों का समय बीत गया। इतने वर्ष बीतने के बाद दीपिका काफी मायूस हो गई थी। जिसके चलते उन्हें डिप्रेशन और मानसिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में उनकी एक दोस्त में उन्हें आईवीएफ ट्रीटमेंट लेने की सलाह दी। इस पर दीपिका और उनके पति ने बिरला फर्टिलिटी और आईवीएफ सेंटर गुरुग्राम के डॉक्टरों से संपर्क किया। इस सेंटर की हेड और सीनियर कंसल्टेंट डॉ प्राची बेनारा ने दीपिका की सभी समस्याओं को समझकर उन्हें आईवीएफ तकनीक के मां बनने का सुख प्रदान किया। आगे जानते हैं कि दीपिका को क्या समस्याएं थी और किस तरह से उन्हें कंसीव करने में सफलता मिली।

दीपिका को प्रजनन स्वास्थ्य से क्या समस्याएं थी - What Problems Did Deepika Have Related To Reproductive Health?

आईवीएफ प्रक्रिया से पहले प्राची बेनारा ने दीपिका की समस्याओं को समझने के लिए सेंटर की सलाहाकार डॉ रश्मिका गांधी के देखरेख में एक सही तरह की प्लानिंग शुरु की। इसमें दीपिका और उनके पति की मेडिकल हिस्ट्री की जांच की गई। इसमें टेस्ट के बाद महिला को पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस), टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस, हाइपोथायरायडिज्म, हाई ब्लड प्रेशर और मोटापा देखा गया। इसके साथ ही, डायग्नोस्टिक हिस्टेरोस्कोपी से पता चला कि दीपिका गर्भाशय एकतरफा (unicornuate uterus) था। इसके अलावा, वह गंभीर योनिजन्य रोग (severe vaginismus) के कारण शारीरिक संबंध बनाने पर भी पेरशानी का सामना करना पड़ रहा है।

डॉ. प्राची बेनारा ने मामले में बात करते हुए बताया कि, "इस मामले में न केवल प्रजनन विशेषज्ञता की आवश्यकता थी, बल्कि हर कदम पर सावधानीपूर्वक एनेस्थेटिक योजना और व्यक्तिगत देखभाल की भी जरूरत थी।" ऐसे में महिला की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए टीम ने एक व्यापक ट्रीटमेंट योजना बनाई।

Treatment Shared By Pcos Patient Deepika Jain in Ivf  in

पीसीओएस (PCOS)

PCOS एक ऐसी स्थिति है जिसमें महिलाओं के एग्स में छोटे-छोटे सिस्ट बन जाते हैं और हार्मोनल असंतुलन पैदा हो जाता है। इससे एग्स बनने की प्रक्रिया (ovulation) प्रभावित होती है और प्रेग्नेंसी में मुश्किलें आती हैं। दीपिका को भी अनियमित पीरियड्स की समस्या थी, वजन बढ़ रहा था और चेहरे पर बाल आ रहे थे।

यूनिकॉर्नुएट यूट्रस (Unicornuate Uterus)

यूनिकॉर्नुएट यूट्रस एक दुर्लभ जन्मजात स्थिति है जिसमें महिला का गर्भाशय आधा विकसित होता है यानी एक तरफ ही होता है। इससे गर्भधारण करना और गर्भ को पूरा अवधि तक ले जाना बहुत मुश्किल होता है। इस स्थिति में गर्भाशय की क्षमता सीमित होती है और गर्भपात का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

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वैजिनिस्मस (Vaginismus)

वैजिनिस्मस एक ऐसी स्थिति है, जिसमें महिला के वैजाइनल मसल्स सिकुड़ जाती हैं, जिससे शारीरिक संबंध बनाना असंभव हो जाता है। यह स्थिति अक्सर मानसिक तनाव, ट्रॉमा या शारीरिक असहजता से जुड़ी होती है। इस समस्या के कारण दंपति नेचुरल तरीके से गर्भधारण नहीं कर पा रहे थे।

दीपिका को आईवीएफ से कैसे मिली सफलता - How Deepika got success with IVF in Hindi

  • आईवीएफ ट्रीटमेंट में सबसे पहले महिला के ओव्यूलेशन प्रक्रिया को स्टीम्यूलेट किया गया।
  • इसके बाद एग्स को निकालना और हेल्दी एंब्रियो को कम स्पेस के बावजूद गर्भाशय में सफलता पूर्वक ट्रांसफर किया गया।
  • शुरुआती दौर में इस प्रक्रिया को जटिल माना जा रहा था। इस वजह से करीब 5 ब्लास्टोसिसट को महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर किया गया।
  • इस प्रक्रिया के पहले ही प्रयास में महिला ने सफलता पूर्वक गर्भधारण किया।

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डॉक्टर बेनारा ने बताया कि इस मामले में कई चुनौतियां सामने आईं, लेकिन IVF सेंटर की टीम ने रोगी की स्वास्थ्य समस्या को ध्यान में रखते हुए सभी प्रक्रिया पर नजर रखी। साथ ही, दीपिका और उनके पति ने भी लाइफस्टाइल में कई तरह के बदलाव किए। आईवीएफ के जरिए देश के लाखों लोगों का मां-बाप बनने का सपना पूरा हुआ है। IVF प्रक्रिया से पीसीओएस, एंडोमेट्रियोसिस, फाइब्रोसिस व अन्य समस्याओं में गर्भधारण किया जा सकता है। Khushkhabri With IVF की आज की सीरीज की ये रियल स्टोरी आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ शेयर करें। साथ ही, गर्भधारण से जुड़ी किसी भी तरह की समस्या व आईवीएफ के बारे में जानने के लिए हमारी सीरीज को पढ़ते रहें।

FAQ

  • आईवीएफ प्रेगनेंसी में ब्लीडिंग क्यों होती है?

    जब भ्रूण गर्भाशय की दीवार से जुड़ता है तो रक्त शिराएं फट जाती हैं, जिससे इंप्लाटेशन ब्लीडिंग होती है, जो आमतौर पर महिला के मासिक धर्म से पहले होती है। यह ब्लीडिंग गुलाबी या हल्के भूरे रंग की हो सकती है। 
  • आईवीएफ प्रेगनेंसी कब नॉर्मल प्रेगनेंसी बन जाती है?

    अगर सब कुछ ठीक रहा तो आईवीएफ गर्भधारण को आम तौर पर दस से पंद्रह सप्ताह के बाद सुरक्षित माना जाता है। लेकिन, इस दौरान बच्चे की सेहत और प्रेग्नेंसी के हर चरण में डॉक्टरी चेकअप कराना जरूरी होता है।
  • आईवीएफ गर्भावस्था के क्या जोखिम हैं?

    आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) गर्भावस्था के कुछ जोखिम हो सकते हैं, लेकिन यह एक सुरक्षित और प्रभावी प्रक्रिया है। इन जोखिमों में शामिल हैं: एकाधिक गर्भावस्था, समय से पहले प्रसव, बर्थ डिफेक्ट, और एक्टोपिक प्रेग्नेंसी को शामिल किया जा सकता है।

 

 

 

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