Khushkhabri with IVF: धीरे-धीरे आईवीएफ प्रक्रिया काफी कॉमन होती जा रही है। इसका एक कारण यह है कि मौजूदा समय में जिस तरह की हमारी जीवनशैली या खानपान हो गया है, उसका बहुत बुरा असर महिलाओं और पुरुषों की फर्टिलिटी पर पड़ने लगता है। विशेषकर, वर्क कल्चर और बढ़ते तनाव ने लोगों को बहुत परेशान किया है, जिसका निगेटिव असर उनकी हेल्थ पर पड़ता है। ऐसे ही एक कपल है अनुराग और ज्योति। उन्हें अपनी शारीरिक समस्याओं के कारण शादी के 6 साल तक निःसंतान जीवन बिताना पड़ा। आइए, जानते हैं अनुराग और ज्योति की स्टोरी।
आईवीएफ को लेकर अक्सर लोगों के मन में कई सवाल होते हैं। इन्हीं सवालों को ध्यान में रखते हुए ऑनलीमायहेल्थ Khushkhabri with IVF नाम से एक स्पेशल सीरीज चला रहा है। इस सीरीज में आपको IVF से जुड़े तमाम विषयों पर आलेख मिल जाएंगे। आज इस लेख में हम आपको अनुराग और ज्योति की IVF जर्नी के बारे में बताएंगे। इस बारे में हमने वृंदावन और नई दिल्ली स्थित मदर्स लैप आईवीएफ सेंटर की चिकित्सा निदेशक, स्त्री रोग और आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. शोभा गुप्ता से बात की। अगर आप भी IVF के जरिये प्रेग्नेंसी प्लान करने की सोच रहे हैं, तो इस स्टोरी से आपको मदद मिल सकती है।
शुरुआती दिनों में सब सामान्य था
किसी भी सामान्य कपल की तरह अनुराग और ज्योति की शादी हुई और वे नॉर्मल जीवन जीने लगे। घर और दफ्तर के बीच दोनों की जिंदगी अच्छी चल रही थी। जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, दोनों पर अपने परिवार को बढ़ाने का दबाव बनने लगा। हालांकि, वे इस संबंध में स्पष्ट थे कि जब शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होंगे तभी संतान सुख प्राप्त करेंगे। लेकिन, देखते-देखते काफी समय बीत गया। जल्दी ही ज्योति को लगा कि बिना देर किए अब उन्हें अपने परिवार को बढ़ाना चाहिए। लेकिन, जितनी बार कोशिश की, उतनी बार असफलता हाथ लगी।
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नेचुरली कंसीव न करने का गहरा झटका लगा
जब संतान सुख प्राप्त नहीं हो रहा था, तो अनुराग को लगा कि छोटी-मोटी परेशानी है, जो कि धीरे-धीरे अपने आप ठीक हो जाएगी। संतान सुख प्राप्त करने की चाह में अनुराग और ज्योति ने अपनी लाइफ में कई जरूरी बदलाव किए। अच्छी आदतों को अपनाया और बड़े-बुजुर्गों तथा अनुभवी लोगों की सलाह भी ली। उनके बताए हुए सभी तौर-तरीके अपनाए गए। लेकिन, तब भी असफलता हाथ लगी।
कराए गए कई जरूरी टेस्ट
जब लंबे समय तक प्रयास के बावजूद ये जोड़ा पेरेंट्स बनने में असफल रहा, तो अपने दोस्तों और रिश्तेदारों की सलाह पर डॉक्टर के पास जाना जरूरी समझा। वहां जाकर ज्योति के कई टेस्ट किए गए। जिससे पता चला कि ज्योति को पीसीओएस है। यह खबर ज्योति के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था। उसने कभी सोचा ही नहीं था कि उसे इस तरह की समस्या हो सकती है। क्योंकि लंबे समय तक उसे पीरियड्स से जुड़ी किसी तरह की प्रॉब्लम नहीं हुई। इस खबर से ज्योति पूरी तरह टूट गई। उसे यकीन हो गया कि उसी की वजह से अनुराग और ज्योति पेरेंट्स नहीं बन पा रहे हैं। ज्योति सदमें थी और वह खुद को मां बनने में असफल महसूस कर रही थी। इस खबर ने ज्योति को पूरी तरह तोड़ दिया।
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मिली दूसरी बुरी खबर
डॉक्टर्स की सभी जांच सिर्फ ज्योति तक ही सीमित नहीं थे। असल में, डॉक्टरों ने अनुराग को भी कहा कि उन्हें भी अपने सीमन टेस्ट करवाने चाहिए। इससे यह पता चल सकेगा कि उनके स्पर्म हेल्दी हैं या नहीं। पहले पहल अनुराग इस टेस्ट के लिए राजी नहीं हुए। उन्हें लगता था कि भला उनमें किस तरह की परेशानी होगी। इसलिए, अब तक वे अपनी पत्नी ज्योति को पूरा सपोर्ट देते रहें। लेकिन, ज्योति के जिद पर अनुराग को भी अपना टेस्ट करवाना पड़ा। इसके बाद पता चला कि अनुराग के स्पर्म हेल्दी नहीं थे। उनकी मोटिलिटी कम थे। इसका मतलब है कि अनुराग के स्पर्म की क्वालिटी कमजोर थी और उन्हें मूवमेंट में भी कमी आती थी।
एक-दूसरे का बने सहारा
जहां एक ओर ज्योति को पीसीओएस था, वहीं स्पर्म मोटिलिटी की खबर ने अनुराग को पूरी तरह तोड़ दिया था। दोनों अपनी परिस्थितियों से बेहद परेशान हो चुके थे। उन्हें लगता था कि आखिर उनके साथ ही ऐसा क्यों हुआ? अनुराग अपनी कंडीशन किसी से शेयर भी नहीं करते थे। वे अक्सर अपनी कंडीशन के बारे में इंटरनेट में पढ़ते थे। जहां उन्होंने डॉ. शोभा गुप्ता के आईवीएफ से जुड़े कुछ लेख पढ़े।
मिली आशा की किरण
अनुराग और ज्योति पूरी तरह हार चुके थे। उनकी शादी को कई साल बीत चुके थे। लेकिन, संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो रही थी। ऐसे में पूरी तरह हार मानने के बाद वे डॉ. शोभा से मिले। जिनके बारे में उन्होंने एक वेबसाइट में पढ़ा था। वहां से उनका नंबर और पता लिया। वे डॉ.शोभा से मिले और अपनी हालत के बारे में सब कुछ बता दिया। डॉक्टर ने उन्हें यकीन दिलाया कि वे अपनी उम्मीद न खोएं। उनके घर भी नन्हे बच्चों की किलकारियां गूंज सकती हैं। बस, उन्हें वही करना है, जो उनसे कहा जाए। यानी अपना ट्रीटमेंट पर पूरा ध्यान देना।
ट्रीटमेंट हुआ शुरू
चूंकि, ज्योति को पीसीओएस था, जिस वजह से उसके अंडे रिलीज नहीं हो पाते थे और कंसीव करने में दिक्कत आती थी। वहीं अनुराग की स्पर्म क्वालिटी खराब थी। डॉ. शोभा ने दोनों का केस बहुत बारीकी से देखा और उन्हें आश्वस्त किया कि अगर वे सही तरह से ट्रीटमेंट फॉलो करेंगे तो पेरेंट्स बनने की संभावना दर बढ़ सकती है। प्रक्रिया के दौरान, ज्योति को हॉर्मोन थेरेपी दी गई ताकि अंडाणु तैयार हो सकें। इसके बाद, डॉक्टरों ने अंडाणुओं को निकाला और अनुराग के शुक्राणुओं के साथ लैब में मिक्स किया। जल्द ही, एक स्वस्थ भ्रूण विकसित हुआ जिसे ज्योति के गर्भ में प्रत्यारोपित किया गया।
आईवीएफ से मिल गई गुड न्यूज
कुछ हफ़्तों बाद, ज्योति का प्रेग्नेंसी टेस्ट हुआ, जिसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। यह उनके लिए एक चमत्कार जैसा था। कंसीव करने के बाद भी ज्योति और अनुराग ने किसी तरह की लापरवाही नहीं की। डॉक्टर ने उन्हें अपनी लाइफस्टाइल को हेल्दी रखने और खानपान की ओर विशेष ध्यान देने को कहा। हालांकि, ट्रीटमेंट के दौरान ज्योति को कई इंजेक्शन लगाए गए। कई बार, वे दर्द भरे होते थे। लेकिन, ज्योति ने इनसे हार नहीं मानी, वरन अपना हौंसला बुलंद रखा। नौ महीनों की इस पूरी प्रक्रिया के बाद, ज्योति ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। ज्योति और अनुराग की खुशी का ठिकाना नहीं था। आईवीएफ प्रक्रिया ने उन्हें करीब 6 साल बाद पेरेंट्स बनने का सुख दिया। वे अब एक स्वस्थ शिशु के माता-पिता हैं और उसकी परवरिश में सामान्य पेरेंट्स की तरह इंवॉल्व हैं।
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