Symptoms Of Uterus Infection After Child Birth In Hindi: जिस तरह प्रेग्नेंसी का सफर किसी भी महिला के लिए आसान नहीं होता है। इसी तरह, डिलीवरी भी मुश्किल प्रक्रियाओं से गुजरती है। कई महिलाओं को तो डिलीवरी के दौरान बहुत बुरे अनभवों से गुजरना पड़ता है। उन्हें असहनीय दर्द होता है। अगर नेचुरल डिलीवरी न हो, तो सिजेरियन करना पड़ता है। डिलीवरी के बाद भी महिला का संघर्ष खत्म नहीं होता है। उन्हें रिकवरी में कम से कम 40 दिन का समय लगता है। वहीं, अगर कुछ कॉम्पलिकेशन हो जाएं, तो महिलाओं को गर्भाशय में इंफेक्शन भी हो सकता है। गर्भाशय में इंफेक्शन होना सही नहीं है। अगर समय रहते महिला ने इंफेक्टेड गर्भाशय का ट्रीटमेंट न करवाया, तो गर्भाशय खराब हो सकता है। यहां तक कि कुछ गंभीर मामलों में इसे निकालना भी पड़ता है। इसलिए, बच्चेदानी में हो रहे इंफेक्शन की अनदेखी न करें। यहां हम बता रहे हैं कि डिलीवरी के बाद बच्चेदानी में इंफेक्शन होने पर कैसे लक्षण नजर आते हैं।
डिलीवरी के बाद बच्चेदानी में इंफेक्शन के लक्षण- Symptoms Of Infections Of The Uterus After Delivery In Hindi
वृंदावन और नई दिल्ली स्थित मदर्स लैप आईवीएफ सेंटर की चिकित्सा निदेशक, स्त्री रोग और आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. शोभा गुप्ता कहती हैं, "अगर डिलीवरी के बाद किसी महिला को बच्चेदानी में इंफेक्शन हो जाए, तो उन्हें कई तरह के लक्षण नजर आ सकते हैं-
- डिलवरी के पहले दिन से तीसरे दिन के बाद पेट के निचले हिस्से में दर्द होना।
- ठंड महसूस करना और बुखार आना।
- कंपकंपी महसूस करना।
- सिरदर्द होना।
- भूख न लगना।
- हार्ट रेट का बढ़ना।
- गर्भाशय में सूजन होना।
- डिस्चार्ज से तीव्र गंध आना।
कुछ मामलों में डिलीवरी के बाद गर्भाशय में इंफेक्शन होने पर गंभीर लक्षण भी नजर आ सकते हैं। हालांकि, ऐसा बहुत कम मामलों में देखा जाता है-
- पेट के निचले हिस्से में सूजन होना।
- पेल्विक की नसों में ब्लड क्लॉट यानी रक्त के थक्के जमना।
- लंग्स तक ब्लड क्लॉटिंग होना जाना, जिससे आर्टरी का ब्लॉक हो जाना।
- संक्रामक बैक्टीरिया द्वारा उत्पादित टॉक्सिंस का स्तर बढ़ना, पूरे शरीर को संक्रामक कर सकता है।
डिलीवरी के बाद बच्चेदानी में इंफेक्शन का ट्रीटमेंट- Treatment of Infections of the Uterus After Delivery In Hindi
डॉ. शोभा गुप्ता बताती हैं, "आमतौर पर डिलीवरी के बाद अगर महिला की बच्चेदानी में इंफेक्शन हो गया है, तो डॉक्टर उसे एग्जामिन करते हैं। कुछ टेस्ट किए जाते हैं, जिससे पता चलता है कि इंफेक्शन कितना फैला और उसे कंट्रोल करने के लिए क्या जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए। सामान्यतः बच्चे में इंफेक्शन की जांच के लिए डॉक्टर यूरिन सैंपल लेते हैं। सैंपल को एनालाइज किया जाता है और बैक्टीरिया के स्तर को चेक किया जाता है। जरूरी हो, तो दूसरे टेस्ट्स भी करवाए जाते हैं। जहां तक, इसके ट्रीटमेंट की बात है, तो डॉक्टर कंडीशन के आधार पर महिला को एंटीबायोटिक देते हैं। आमतौर पर सिजेरियन करने से पहले डॉक्टर्स महिला को एंटीबायोटिक का डोज देते हैं, ताकि डिलीवरी के बाद गर्भाशय यानी बच्चे के इंफेक्शन का रिस्क खत्म हो जाए।"
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