एस्ट्रोजन एक हार्मोन होता है जो महिलाओं में बनता है। मदरहुड हॉस्पिटल में सीनियर आब्सट्रिशियन एंड गायनोकोलॉजिस्ट डॉ मनीषा रंजन बताती हैं कि वैसे तो यह हार्मोन शरीर में काफी थोड़ी सी मात्रा में मौजूद होता है। लेकिन महिलाओं का स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए इस हार्मोन की बहुत बड़ी भूमिका होती है। इसके कारण ही प्यूबर्टी के लक्षण, मासिक धर्म के दौरान यूटरीन लाइनिंग कंट्रोल होना और प्रेग्नेंसी में ब्रेस्ट का साइज बदलना आदि जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। इस हार्मोन का बहुत ज्यादा होना या बहुत कम होना दोनों ही सेहत के लिए हानिकारक हो सकते हैं। आज हम बात कर रहे हैं लो एस्ट्रोजन लेवल के बारे में। इसलिए लो एस्ट्रोजन लेवल के संकेतों का पता होना आवश्यक है ताकि समय पर ही इसे बैलेंस करने के लिए कदम उठाए जा सकें। तो आइए जानते हैं लो एस्ट्रोजन लेवल के शरीर में लक्षण।
लो एस्ट्रोजन लेवल के लक्षण
प्यूबर्टी और मेनोपॉज के दौर से गुजर रही लड़कियों/महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन का लेवल कम होता है। हालांकि यह स्थिति किसी भी उम्र में भी देखने को मिल सकती है। लो एस्ट्रोजन होने के कुछ आम लक्षण निम्न हैं :
- वेजाइनल लुब्रिकेशन के न होने के कारण सेक्स करते समय काफी ज्यादा दर्द होना।
- युरेथरा के काफी पतले हो जाने के कारण यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन का बहुत अधिक बढ़ जाना।
- अनियमित पीरियड्स
- मूड में काफी ज्यादा बदलाव देखने को मिलना।
- गर्मी लगना और पूरे शरीर का तापमान बढ़ जाना।
- छाती में अकड़न महसूस होना।
- डिप्रेशन
- सिर दर्द होना या माइग्रेन के बार बार एपिसोड देखने को मिलना
- थकान होना
- कंसंट्रेट और फोकस करने में दिक्कत महसूस होना।
- हड्डियों का काफी जल्दी टूटना या फ्रैक्चर होना। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एस्ट्रोजन की कमी की वजह से बोन डेंसिटी कम हो जाती है।
- अगर लो एस्ट्रोजन को समय रहते ठीक नहीं किया जाता है तो इससे महिलाओं में बांझपन भी देखने को मिल सकता है।
इसे भी पढ़ें : महिलाओं में थायराइड बढ़ने पर हो सकती हैं अनियमित पीरियड्स, इंफर्टिलिटी जैसी ये 5 समस्याएं
लो एस्ट्रोजन लेवल के कारण
- बहुत अधिक एक्सरसाइज कर लेना।
- ईटिंग डिसऑर्डर
- पिट्यूटरी ग्लैंड का कम काम करना।।
- प्री मैच्योर ओवेरियन फेलियर। इसके पीछे ऑटो इम्यून कंडीशन या जेनेटिक कारण हो सकते हैं।
- टर्नर सिंड्रोम।
- क्रोनिक किडनी डिजीज।
लो एस्ट्रोजन लेवल का इलाज
हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी
यह थेरेपी शरीर के प्राकृतिक हार्मोन लेवल को बढ़ाने के लिए प्रयोग की जाती है। अगर मेनोपॉज का समय है तो आपके डॉक्टर यह थेरेपी लेने के लिए कह सकते हैं। मेनोपॉज के समय एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन का लेवल थोड़ा सा कम हो जाता है। थेरेपी लेने से यह लेवल बढ़ सकता है। हार्मोन्स की कमी के हिसाब से इस थेरेपी की डोज़ तय की जाती है। अगर एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन दोनों हार्मोन्स के लिए ही यह थेरेपी ली जाती है तो ब्रेस्ट कैंसर, दिल की बीमारियों और स्ट्रोक आदि का रिस्क काफी बढ़ जाता है।
एस्ट्रोजन थेरेपी
जो महिलाएं 25 से 50 वर्ष की उम्र के बीच हैं और एस्ट्रोजन की कमी महसूस कर रही हैं, वह इस थेरेपी का प्रयोग कर सकती हैं। इससे बोन लॉस, दिल की बीमारियों और अन्य हार्मोनल असंतुलन का रिस्क काफी कम हो सकता है। हालांकि इसकी हाई डोज नहीं लेनी चाहिए। यह थेरेपी केवल कम समय के लिए ही प्रयोग की जानी चाहिए। इसे ओरल, टॉपिकल, वेजाइनल, इंजेक्शन के द्वारा लिया जा सकता है।
इसे भी पढ़ें : प्रेग्नेंसी के दौरान होली खेलते समय इन बातों का जरूर रखें ध्यान, जानें क्यों जरूरी है सावधानी
- लो एस्ट्रोजन लेवल के दौरान रखें इन बातों को ध्यान
- एस्ट्रोजन लेवल के कम हो जाने के कारण वजन भी बढ़ सकता है इसलिए इनका संतुलित होना काफी जरूरी होता है।
- मेडिकल इलाज के साथ साथ अपने लाइफस्टाइल को भी जितना हो सके उतना हेल्दी बना कर रखें।
- रोजाना थोड़ी एक्सरसाइज करने के साथ-साथ संतुलित आहार का सेवन करें।
- सबसे ज्यादा आवश्यक है अपने मूड को खुश रखना और स्ट्रेस व डिप्रेशन से दूरी बना कर रखना।
- ऐसा करने से ओबेसिटी, डायबिटीज और दिल की बीमारियों जैसी खतरनाक शारीरिक स्थितियों से बचा जा सकता है।
- अगर शरीर में ऐसे बदलाव देखने को मिल रहे हैं तो अपने डॉक्टर को जरूर दिखाएं।
all images credit: freepik
How we keep this article up to date:
We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.
Current Version