पीठदर्द को हम अक्सर एक सामान्य समस्या मान लेते हैं क्योंकि अधिक काम करने, भारी चीज उठाने, थकान, गलत पोजीशन में बैठने आदि के कारण पीठ में दर्द की समस्या होना आम बात है। ऐसी समस्याएं 1-2 दिन के आराम के बाद ठीक हो जाती हैं। मगर कुछ लोगों को लगातार पीठ दर्द की शिकायत रहती है। इस तरह के पीठदर्द का कारण एक खास बीमारी हो सकती है, जिसे स्पाइनल स्टेनोसिस (Spinal stenosis) कहते हैं। आर्टमिस अस्पताल, गुरुग्राम के अग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेस के स्पाइन सर्जरी विभाग के हेड डॉक्टर एस के राजन से जानें इस बीमारी के क्या हैं कारण और लक्षण, साथ ही इसके इलाज के बारे में।
हमारी पीठ का निचला हिस्सा यानी कि लंबर स्पाइन 5 बड़ी हड्डियों से मिलकर बनती है, इन हड्डियों के बीच डिस्क के नाम से जाने वाली मुलायम गद्दियां मौजूद होती हैं। हर हड्डी में एक छेद होता है, जो हड्डियों को एक पाइप यानी कि नलिका का रूप देता है। हड्डियों के बीच का यह छेद रीढ़ की नसों के लिए रास्ते का काम करता है। जब यह छेद पतला होने लगता है तो इसे लंबर केनल स्टेनोसिस (एलसीएस) कहते हैं। परिणामस्वरूप, पीठ के निचले हिस्से से पैरों तक जाने वाली नसों पर दबाव पड़ता है।
हालांकि, यह समस्या युवा आबादी को जन्म संबंधी कारणों से प्रभावित करती है लेकिन विशेषकर 50 या उससे अधिक उम्र के लोगों को यह समस्या ज्यादा प्रभावित करती है। बढ़ती उम्र के साथ डिस्क का गुदगुदापन कम होता जाता है, जिसके कारण डिस्क छोटी और सख्त होने लगती है। वर्तमान में, अनुमानित तौर पर 60 वर्ष से अधिक उम्र के लगभग 4 लाख भारतीय इसके लक्षणों से ग्रस्त हैं और लगभग 12-15 लाख भारतीय स्पाइनल स्टेनोसिस की किसी न किसी प्रकार की समस्या से ग्रस्त हैं।
स्पाइनल स्टेनोसिस के लक्षण (Spinal stenosis)
लंबर स्पाइनल स्टेनोसिस के लक्षण स्थिति की गंभीरता पर निर्भर करते हैं। हालांकि, इसके लक्षण अपने आप नहीं बल्कि नसों पर पड़े दबाव की वजह से आई सूजन के कारण नज़र आते हैं। इसके लक्षण हर व्यक्ति में भिन्न हो सकते हैं, जैसे कि
- पैर, नितंबो और पिंडली में दर्द, कमज़ोरी या सुन्नपन
- दर्द एक या दोनों पैरों में हो सकता है (इस समस्या को साइटिका कहते हैं)
- कुछ मामलों में इसमें पैर काम करना बंद कर देते हैं और मरीज के मल स्त्राव पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाता है।
- चलते समय भयानक दर्द जो पैर मोड़ने पर, बैठने पर या लेटने पर बढ़ जाता है।
लंबर स्पाइनल स्टेनोसिस से संबंधित 2 और स्थितियां हैं जिन्हें डिजेनरेटिव स्पोंडिलोलिस्थीसिस और डिजेनरेटिव स्कोलियोसिस के नाम से जाना जाता है। डिजेनरेटिव स्पोंडिलोलिस्थीसिस रीढ़ की हड्डियों के जोड़ों में आर्थराइटिस के कारण होता है। इसका इलाज भी लंबंर स्पाइनल स्टेनोसिस की तरह पुराने या सर्जिकल विकल्प के साथ किया जाता है।
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स्पाइनल स्टेनोसिस की जांच कैसे की जाती है? (Diagnosis of Spinal stenosis)
इस बीमारी की पुष्टि के लिए मेडिकल हिस्ट्री, लक्षणों और आनुवंशिक जोखिम के आधार पर फिजिकल एग्जामिनेशन और लैब टेस्ट की आवश्यकता पड़ती है। एक्स-रे, सीटी स्कैन और एमआरआई आदि रेडियोलॉजी टेस्ट जोड़ों की रूपरेखा की पहचान करने में सहायक हैं। इन इमेजिंग तकनीकों की मदद से सर्जन को स्पाइनल केनल की पूरी रूपरेखा को अच्छे से देखने में सहायता मिलती है। एमआरआई के जरिए निकलने वाली 3डी इमेजिंग नसों की जड़ों, आस-पास के स्थानों, कोई सूजन, डिजेनरेशन या ट्यूमर आदि का विशलेषण करने में भी सहायक हैं।
कुछ मामलों में मायलोग्राम की आवश्यकता पड़ सकती है, जो रीढ़ के लिए एक खास प्रकार का एक्स-रे होता है। यह एक्स-रे आसपास के सेरीब्रोस्पाइनल फ्लुइड (सीएसएफ) में कॉन्ट्रास्ट सामग्री इंजेक्ट करने के बाद किया जाता है। यह रीढ़ की हड्डी या संबंधित नसों में दबाव, स्लिप्ड डिस्क, हड्डी में रगड़ या ट्यूमर की निगरानी करने में सहायक होता है।
स्पाइनल स्टेनोसिस का इलाज कैसे होता है? (Treatment of Spinal stenosis)
इस बीमारी के इलाज के लिए सबसे पहला विकल्प मेडिकेशन और फिज़िकल थेरेपी होता है। यदि इसके बाद भी मरीज में कोई सुधार नहीं नज़र आता है तो सर्जरी करना आवश्यक हो जाता है।
मेडिकेशन और इंजेक्शन: शुरुआती चरणों में दर्द को कम करने के लिए एंटी इंफ्लेमेटरी मेडिकेशन और दर्दनाशक दवाएं सहायक साबित होते हैं। लेकिन यदि समय के साथ दर्द ठीक नहीं हो रहा है या गंभीर होता जा रहा है तो डॉक्टर मरीज को अन्य मेडिकेशन या इंजेक्शन की सलाह दे सकता है। एपिड्यूरल इंजेक्शन भी दर्द और सूजन को कम करने में सहायक होते हैं लेकिन यह केवल कुछ ही समय के लिए प्रभावी होता है।
फिज़िकल थेरेपी: कुछ विशेष एक्सरसाइज़ के साथ फिज़िकल थेरेपी आपकी रीढ़ को स्थिर करने के साथ उसे लचीला और मजबूत बनाने में मदद करती है। थेरेपी आपकी जीवनशैली और शारीरिक गतिविधियों को फिर से सामान्य करने में सहायक होती है।
जिन मरीजों को इससे लाभ नहीं मिलता है उनकी सर्जरी करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं रह जाता है। मरीज की उम्र, समग्र स्वास्थ्य, संबंधित बीमारियों और वर्तमान की समस्याओं के आधार पर यह तय किया जाता है कि उसे किसी प्रकार की सर्जरी की आवश्यकता है।
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सर्जिकल ट्रीटमेंट (Surgical Treatment of Spinal stenosis)
इस बीमारी के इलाज के लिए कई प्रकार की सर्जिकल प्रक्रियाएं उपलब्ध हैं। इसका चयन मरीज की स्थिति की गंभीरता के आधार पर किया जाता है। बहुत ही कम मरीजों में, स्पाइन फ्यूज़न की जरूरत पड़ सकती है और इसका फैसला आमतौर पर सर्जरी से पहले लिया जाता है। स्पाइनल फ्यूज़न एक ऑपरेशन है जो दो या अधिक कशेरुकाओं को पास लाता है। यह प्रक्रिया रीढ़ को स्थिर और मजबूत बनाने में सहायक होती है, इसलिए यह गंभीर या पुराने दर्द को भी ठीक कर सकती है।
डिकंप्रेसिव लेमिनेक्टॉमी- लंबर स्पाइन की सबसे आम सर्जरी को डिकंप्रेसिव लेमिनेक्टॉमी कहते हैं। इसमें कशेरुका के ऊपरी भाग को हटाकर नसों के लिए अतिरिक्त जगह बनाई जाती है। न्यूरोसर्जन यह सर्जरी कशेरुका या डिस्क के भाग को हटाए बिना भी कर सकता है। स्पाइनल इंस्ट्रूमेंटेशन के साथ या इसके बिना स्पाइनल फ्यूज़न की सलाह तब दी जाती है जब स्पाइनल स्टेनोसिस के साथ स्पोंडिलोलिस्थीसिस या स्कोलियोसिस की समस्या भी हो जाती है। रीढ़ के अस्थिर क्षेत्रों को सपोर्ट देने या फ्यूज़न को बेहतर करने के लिए विभिन्न उपकरणों (स्क्रू या रॉड आदि) का उपयोग किया जा सकता है।
लंबर स्पाइनल स्टेनोसिस और संबंधित समस्याओं के इलाज के लिए स्पाइनल फ्यूज़न सहित कई अन्य प्रकार की सर्जरी भी शामिल हैं जैसे कि,
एंटीरियर लंबर इंटरबॉडी फ्यूज़न (एएलआईएफ): इसमें पेट के निचले हिस्से के जरिए डिजेनरेटिव डिस्क को बाहर निकाल दिया जाता है। हड्डियों वाली सामग्री या हड्डी से भरा मेटल का उपकरण डिस्क के पेस में स्थगित कर दिया जाता है।
फोरामिनोटॉमी: यह सर्जरी हड्डी के द्वार को बड़ा करने में सहायक होती है। यह सर्जरी लेमिनेक्टॉमी के बिना या साथ में की जा सकती है।
लेमिनोटॉमी: नसों की जड़ों के दबाव को कम करने के लिए लामिना में ओपनिंग बनाई जाती है।
लेप्रोस्कोपिक स्पाइनल फ्यूज़न: यह एक मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया है जिसमें पेट के निचले हिस्से में एक छोटा कट लगाया जाता है। इस कट के जरिए डिस्क में ग्राफ्ट को स्थगित किया जाता है।
मेडियल फेसेक्टॉमी: इस प्रक्रिया के जरिए जगह को बढ़ाने के लिए फेसेट (रीढ़ के केनल में हड्डी वाली संरचना) को निकाल दिया जाता है।
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पोस्टीरियर लंबर इंटरबॉडी फ्यूज़न (पीएलआईएफ): यह सर्जरी रीढ़ केनल के पीछे की हड्डी को हटाने, नसों के खिंचाव और डिस्क के अंदर से डिस्क सामग्री को हटाने, हड्डी के फ्यूज़न के लिए बोन ग्राफ्ट या कभी-कभी हार्डवेयर डालने के लिए की जाती है। इस प्रक्रिया को इंटरबॉडी फ्यूज़न इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका प्रदर्शन कशेरुक हड्डियों के बीच और बीमारी ग्रस्त डिस्क के आसपास किया जाता है। इस प्रक्रिया का प्रदर्शन रीढ़ के दोनो तरफ किया जाता है।
पोस्टीरोलेटरल फ्यूज़न: फ्यूज़न के लिए रीढ़ के पीछे और इसके पास हड्डी स्थगित की जाती है।
ट्रांसफोरमिनल लंबर इंटरबॉडी फ्यूज़न(टीएलआईएफ): यह सर्जरी रीढ़ के पीछे की हड्डी को हटाना, नसों को वापस खींचना और डिस्क में से डिस्क सामग्री को हटाने आदि के साथ हड्डी के फ्यूज़न के लिए बोन ग्राफ्ट या कभी-कभी हार्डवेयर डालने के लिए की जाती है। यह प्रक्रिया पीएलआईएफ के जैसी ही होती है लेकिन इसका प्रदर्शन ज्यादातर रीढ़ के एक तरफ ही की जाती है।
इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि हर सर्जरी के फायदे होने के साथ-साथ नुकसान भी हैं। हालांकि, लंबर स्पाइनल स्टेनोसिस के अधिकतर मरीजों को सर्जरी के बाद दर्द से राहत मिल जाती है लेकिन इस बात की गारंटी नहीं है कि सर्जरी से हर व्यक्ति को लाभ मिलेगा।
(यह आर्टिकल आर्टमिस अस्पताल, गुरुग्राम के अग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेस के स्पाइन सर्जरी विभाग के हेड डॉक्टर एस के राजन से बातचीत पर आधारित है।)
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