बच्चों की इम्यूनिटी कमजोर होती है, ऐसे में उनको हल्के संक्रमण में भी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन, कुछ बीमारियों के कारण बच्चे की सेहत पर बुऱा असर पड़ता है। इस बीमारी को पाइलोरिक स्टेनोसिस कहा जाता है। भले ही यह दुर्लभ बीमारी क्यों न हो, लेकिन यह बच्चों के जीवन को प्रभावित कर सकती है। यह समस्या ज्यादातर नवजात शिशु में देखने को मिलती है, जो पेट और बच्चे की छोटी आंत के बीच का वाल्क का मोटा होना या सिकुड़ने की वजह से होती है। एक सामान्य बच्चे के पेट और छोटी आंत के बीच में एक वाल्व लगा होता है। इसी वाल्व को पाइलोरस कहा जाता है, यह वाल्व भोजन को तब तक पेट में रखता है, जब तक भोजन आगे की प्रक्रिया के लिए तैयार न हुआ हो। इस लेख में कोकिलाबेन अस्पताल के पीयिडेट्रिक्स डॉक्टर रुचिरा से आगे जानते हैं कि पाइलोरिक स्टेनोसिस बच्चों में क्यो (Pyloric Stenosis Causes) होती है। साथ ही, इसके लक्षण, कारण और इलाज (Pyloric Stenosis Symptoms And Treatment) क्या हो सकते हैं?
पाइलोरिक स्टेनोसिस क्या है? - What Is Pyloric Stenosis in Hindi
पाइलोरस, जो कि पेट और छोटी आंत के बीच का हिस्सा होता है, पाइलोरिक स्टेनोसिस में यह मांसपेशी असामान्य रूप से मोटी हो जाती है। इस संकुचन के कारण भोजन पेट से आंतों में नहीं जा पाता है। यह स्थिति अधिकांशतः नवजात शिशुओं में देखी जाती है और विशेष रूप से 2 से 8 सप्ताह की उम्र के बीच इसका खतरा बढ़ जाता है।
पाइलोरिक स्टेनोसिस के कारण - Causes Of Pyloric Stenosis in Hindi
पाइलोरिक स्टेनोसिस के मुख्य कारण अभी भी पूरी तरह से ज्ञात नहीं है, लेकिन इसके कुछ संभावित कारको को आगे बताया गया है।
- आनुवंशिकता: परिवार में यदि किसी को पाइलोरिक स्टेनोसिस रहा हो, तो शिशु में इसके होने की संभावना बढ़ सकती है।
- एंटीबायोटिक्स का उपयोग: अगर शिशु को जन्म के तुरंत बाद एरिथ्रोमाइसिन जैसी एंटीबायोटिक्स दी गई हों, तो इसके कारण भी पाइलोरिक स्टेनोसिस होने का खतरा बढ़ सकता है।
- हार्मोनल असंतुलन: कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि हार्मोनल असंतुलन भी पाइलोरिक स्टेनोसिस का एक कारण हो सकता है।
- लिंग का प्रभाव: यह स्थिति लड़कों में लड़कियों की अपेक्षा अधिक देखी जाती है।
- पर्यावरणीय कारक: गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करने से शिशु में पाइलोरिक स्टेनोसिस का खतरा बढ़ सकता है।
पाइलोरिक स्टेनोसिस के लक्षण - Symptoms Of Pyloric Stenosis in Hindi
- शिशु को हर बार दूध पिलाने के बाद उल्टी होने लगती है। यह उल्टी अक्सर बहुत ज़ोर से होती है, जिसे प्रोजेक्टाइल वॉमिटिंग कहा जाता है।
- भोजन का पाचन न हो पाने की वजह से शिशु का वजन बढ़ने की बजाय कम होने लगता है।
- शिशु लगातार भूखा महसूस करता है क्योंकि पेट में खाना नहीं टिक पाता। इस कारण वह बार-बार दूध पीने की कोशिश करता है।
- पेट के ऊपरी हिस्से में एक छोटी सी गांठ महसूस की जा सकती है, जो पाइलोरस मांसपेशी का संकुचन है।
- उल्टी के कारण शरीर में पानी की कमी हो जाती है, जिससे शिशु में डिहाइड्रेशन के लक्षण दिख सकते हैं, जैसे कि कम पेशाब आना और मुंह का सूखा रहना।
पाइलोरिक स्टेनोसिस का उपचार - Treatment Of Pyloric Stenosis In Hindi
पाइलोरिक स्टेनोसिस का उपचार केवल सर्जरी से संभव है, जिसे पाइलोरोटोमी कहा जाता है। यह एक छोटी सी प्रक्रिया होती है जिसमें पाइलोरस मांसपेशी को काटकर चौड़ा किया जाता है ताकि भोजन आसानी से आंत में जा सके।
पाइलोरोटोमी
यह सर्जरी एक साधारण प्रक्रिया है और इससे शिशु की रिकवरी जल्दी होती है। इसमें एक छोटी चीरा लगाकर मांसपेशी को चौड़ा कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद शिशु सामान्य रूप से दूध पी सकता है और उल्टी की समस्या भी खत्म हो जाती है।
डिहाइड्रेशन का उपचार
सर्जरी से पहले, शिशु को डिहाइड्रेशन से बचाने के लिए नसों के माध्यम से तरल पदार्थ दिया जाता है ताकि उसके शरीर में पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स का संतुलन बना रहे।
पोस्ट-सर्जरी देखभाल
सर्जरी के बाद शिशु को थोड़ी मात्रा में दूध देना शुरू किया जाता है और धीरे-धीरे इसकी मात्रा बढ़ाई जाती है। डॉक्टर की सलाह के अनुसार शिशु की देखभाल करनी चाहिए और सर्जरी के स्थान की सफाई का ध्यान रखना चाहिए।
इसे भी पढ़ें: बच्चों के फेफड़ों को प्रभावित करती है ये बीमारी, जानें इसके लक्षण और इलाज के बारे में
पाइलोरिक स्टेनोसिस नवजात शिशुओं में पाई जाने वाली एक सामान्य स्थिति है, लेकिन इसका उपचार सही समय पर किया जाए तो शिशु का स्वास्थ्य सामान्य हो सकता है। यदि शिशु में बार-बार उल्टी, वजन कम होना, और भूख का बढ़ना जैसे लक्षण दिखें, तो इसे हल्के में न लें और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।