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World Prematurity Day 2025 : समय से पहले जन्मे शिशुओं से जुड़े मिथकों की सच्चाई बताई डॉक्टर ने

Myths of Premature Baby: प्रीमेच्योर शिशुओं को लेकर अक्सर लोगों में मिथक होते हैं, जिनकी सच्चाई जानना बहुत जरूरी है। इस लेख में डॉक्टर ने 7 मिथकों का सच्चाई के बारे में बताया।

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World Prematurity Day 2025 : समय से पहले जन्मे शिशुओं से जुड़े मिथकों की सच्चाई बताई डॉक्टर ने

Myths of Premature Baby: दुनियाभर में लाखों बच्चे समय से पहले जन्म लेते हैं और इन शिशुओं को प्रीमेच्योर बेबी कहा जाता है। हालांकि दुनिया में पैरेंट्स प्रीमेच्योर शिशुओं को लेकर काफी डर जाते हैं, लेकिन उनमें ज्यादा मिथक नहीं होते। इसके उलट भारत में प्रीमेच्योर बच्चों को लेकर कई तरह के मिथक देखने को मिलते हैं। लोगों को लगता है कि प्रीमेच्योर बच्चे कमजोर होते हैं और उन्हें जीवनभर सेहत से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। World Prematurity Day के मौके पर प्रीमेच्योर बेबी से जुड़े मिथकों की सच्चाई जानने के लिए हमने दिल्ली के क्लाउडनाइन ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के पीडियाट्रिशियन और नियोनेटोलॉजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. रजत ग्रोवर (Dr. Rajat Grover, Senior Consultant, Paediatrics and Neonatology Department, Cloudnine group of Hospitals, New Delhi, Patparganj) से बात की।


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प्रीमेच्योर बेबी से जुड़े मिथक और उनकी सच्चाई

मिथक: समय से पहले जन्म लेना पैरेंट्स की गलती होती है।

सच्चाई: डॉ. रजत कहते हैं, “कई बार लोग मान लेते हैं कि अगर बच्चा समय से पहला पैदा हुआ है तो इसका कारण मां का लाइफस्टाइल या स्ट्रेस होगा। यह हमेशा पैरेंट्स की गलती नहीं होती। कई बार गर्भाशय की संरचना, इंफेक्शन, हाई ब्लड प्रेशर या एक से ज्यादा भ्रूण होने की वजह से डिलीवरी समय से पहले हो जाती है। कुछ केस ऐसे भी होते हैं जहां यह स्थिति डॉक्टर के कंट्रोल से बाहर होती है। इसलिए सेहतमंद लाइफस्टाइल और रेगुलर चेकअप कराने से रिस्क कम हो सकता है।”

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मिथक: हर प्रीमेच्योर बच्चा कमजोर या विकलांग होता है।

सच्चाई: डॉ. रजत कहते हैं, “आमतौर पर लोग मान लेते हैं कि प्रीमेच्योर शिशुओं को भविष्य में शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो सकता है, लेकिन सच्चाई यह है ज्यादातर प्रीमेच्योर बच्चे सामान्य बच्चों की तरह ही विकसित होते हैं। आजकल मेडिकल डिवाइस इतने विकसित हो चुके हैं कि शिशुओं को ग्रोथ सामान्य होती है। आजकल NICU (Neonatal Intensive Care Unit) के जरिए प्रीमेच्योर शिशु को पूरी तरह से विकसित किया जाता है। सही न्यूट्रिशन, रेगुलर फॉलो-अप और डॉक्टर की देखरेख से ये बच्चे धीरे-धीरे पूरी तरह सेहतमंद हो जाते हैं। मेरे पास कई केस ऐसे आए हैं, जिसमें प्रीमेच्योर शिशुओं ने स्कूल में टॉप किया है और वे स्पोर्ट्स में भी बहुत एक्टिव हैं।”

मिथक: प्रीमेच्योर बच्चों का वैक्सीनेशन देर से होना चाहिए।

सच्चाई: डॉ. रजत ने कहा, “कुछ पैरेंट्स सोचते हैं कि उनका बच्चा प्रीमेच्योर हुआ है, तो वह कमजोर और छोटा है, इसलिए उसे वैक्सीन देने में देर करनी चाहिए लेकिन यह सोच बहुत गलत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार, प्रीमेच्योर शिशुओं को भी जन्म की उम्र के अनुसार (chronological age) वैक्सीन देनी चाहिए। इससे उनका इम्यून सिस्टम मजबूत होता है और इंफेक्शन का रिस्क कम होता है। कई बार वजन या कंडीशन देखकर डॉक्टर कुछ वैक्सीन की टाइमिंग एडजस्ट करते हैं, लेकिन देरी करना बच्चे की सेहत के लिए रिस्की हो सकता है।”

मिथक: माता-पिता NICU में अपने बच्चे से जुड़ नहीं पाते।

सच्चाई: डॉ. रजत कहते हैं, “अक्सर पैरेंट्स को लगता है कि NICU में मशीनों और वायर से जुड़े अपने बच्चे से वे इमोशनल रूप से दूर हो गए हैं, लेकिन सच इससे बिल्कुल उलट है। कंगारू केयर यानी स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट से मां और बच्चे की बीच इमोशनल बॉन्ड मजबूत होता है। यह बच्चों के हार्ट बीट को स्थिर रखता है और वजन बढ़ाने में मदद करता है। हम NICU में पैरेंट्स को कहते हैं कि वे अपने शिशु को को गोद में लें, बात करें और समय बिताएं। इससे बच्चे का रिकवरी रेट तेज होता है।”

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मिथक: प्रीमेच्योर बच्चे ब्रेस्टफीड नहीं कर सकते।

सच्चाई: डॉ. रजत कहते हैं, “कई लोग मानते हैं कि ऐसे बच्चे इतने कमजोर होते हैं कि वे ब्रेस्टफीड नहीं कर सकते, लेकिन सच यह है कि मां का दूध उनके लिए सबसे बहुत महत्वपूर्ण है। शुरुआती दिनों में बच्चे को ब्रेस्टफीड करने में दिक्कत हो सकती है, लेकिन ब्रेस्ट पंप से दूध निकालकर भी शिशु को दिया जा सकता है। अगर शिशु को ब्रेस्टफीड कराना सिखाया जाए, तो वे सीख लेते हैं। ब्रेस्टफीड में एंटीबॉडीज बच्चे को इंफेक्शन से बचाती हैं और वजन बढ़ाने में मदद करती हैं।

मिथक: प्रीमेच्योर बच्चे हमेशा कमजोर रहते हैं।

सच्चाई: डॉ. रजत कहते हैं, “यह सबसे आम मिथक है, जो पैरेंट्स सोचते हैं और यह मिथक उनके मन में डर पैदा करता है कि प्रीमेच्योर बच्चे जीवनभर कमजोर रहते हैं। मैं हमेशा पैरेंट्स को सलाह देता हूं कि ऐसा बिल्कुल नहीं होता। हालांकि जन्म के समय शिशु छोटे जरूर दिखाई देते हैं, लेकिन वे कमजोर नहीं होते। प्रीमेच्योर बच्चे असली फाइटर्स होते हैं। NICU की खास देखभाल, ब्रेस्टफीड और रेगुलर मॉनिटरिंग से बच्चे पूरी तरह सामान्य जीवन जी सकते हैं।”

निष्कर्ष

डॉ. रजत कहते हैं कि समय से पहले जन्मे बच्चे न तो कमजोर होते हैं और न ही उन्हें किसी तरह की कोई शारीरिक या मानसिक परेशानी होती है। बस प्रीमेच्योर शिशुओं को ज्यादा केयर की जरूरत होती है और पैरेंट्स के पॉजिटिव नजरिए और प्यार से वे सेहतमंद जीवन बिताते हैं।

 

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  • Nov 17, 2025 16:13 IST

    Published By : Aneesh Rawat

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