वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए एक शोध से पता चला है कि मुंहासे वाले लोगों में डिप्रेशन के विकसित होने का खतरा काफी बढ़ सकता है। लेकिन डिप्रेशन जैसी समस्याओं से ग्रसित होने कर खतरा मुंहासों के निदान के बाद पहले पांच वर्षों तक ही रहता है। ब्रिटिश जर्नल ऑफ डर्मेटोलॉजी ने यूनाइटेड किंगडम के एक बड़े प्राथमिक देखभाल डेटाबेस द हेल्थ इंप्रूवमेंट नेटवर्क (THIN) के सन् 1986 से 2012 तक के आंकड़ों का विश्लेषण किया। इस विश्लेषण के आधार पर वैज्ञानिकों का मानना है कि मुंहासे के कारण डिप्रेशन का खतरा अधिक बढ़ जाता है।
इस अध्ययन में पाया गया है कि मुंहासे के निदान के पहले 1 वर्ष डिप्रेशन जैसी समस्याओं का जोखिम अत्याधिक रहती है। डिप्रेशन का खतरा मुंहासे के बिना व्यक्तियों की तुलना में मुंहासे वाले व्यक्तियों में 63 प्रतिशत अधिक रहता है और इसकी संभावना 1 वर्ष के बाद कम होते चली जाती है।
इसलिए यह आवश्यक है कि त्वचा-चिकित्सक को मुंहासे के रोगियों में समय पर डिप्रेशन के लक्षणों की भी जांच करते रहना चाहिए और इसके जोखिम को कम करने के लिए शीघ्र उपचार शुरू कर देनी चाहिए। अगर इलाज के दौरान कोई समस्याएं उत्पन्न होती है तो ऐसे स्थिति में मनोचिकित्सक से परामर्श अवश्य लेनी चाहिए।
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यूनिवर्सिटी ऑफ कैलगरी कनाडा के प्रमुख लेखक डॉ इसाबेल वलेरंड ने कहा कि जब पहली बार कोई मरीज को मुंहासे के ईलाज के लिए त्वचा-चिकित्सक के पास जाता है तो इसके निदान के पहले 1 वर्ष डिप्रेशन के ज्यादा खतरे को देखते हुए यह अध्ययन त्वचा रोगों और मानसिक बीमारियों के बीच महत्वपूर्ण लिंक पर प्रकाश डालता है। इससे यह पता चलता है कि हमारी त्वचा हमारे समस्त मानसिक स्वास्थ्य के लिए कितनी प्रभावशाली हो सकती है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि मुंहासे वाले लोगों के लिए उनकी दमकती और सुन्दर त्वचा से ज्यादा महत्वपूर्ण मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल है। अगर इस समस्या को गंभीरता से लिया गया तो आगे चलकर यह और भी खतरनाक साबित हो सकता है।
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डिप्रेशन ऐसी बीमारी है जो गंभीर समस्याओं को पैदा कर सकती है इसलिए इसके शुरुआती लक्षणों को समझकर इससे बचने की कोशिश करनी चाहिए। इस समस्या के कारण आपके शरीर और दिमाग में तालमेल बिगड़ने लगती है और आप कोई भी काम ठीक ढंग से नही कर पाते हैं। आइए डिप्रेशन के कुछ समान्य लक्षणों के बारे में जानते हैं।
- अधिक गुस्सा करना
- एकाग्रता की कमी
- नींद में गड़बड़
- चिड़चिड़ापन
- थकान
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