
Abhinav Bindra Interview: अभिनव बिंद्रा ने साल 2008 में बीजिंग ओलम्पिक में एयर राइफल में गोल्ड मेडल जीतकर भारत के पहले व्यक्तिगत गोल्ड पदक विजेता बने थे और सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह एक ऐसा रिकॉर्ड है, जो अभी तक उनके ही नाम है। अभिनव बिंद्रा की जीत ने शूटिंग के खेल में भारत को सबसे आगे लाकर खड़ा कर दिया है और इससे देश के खिलाड़ी अब अभिनव बिंद्रा को प्रेरणा मानते हैं। हाल ही में अभिनव बिंद्रा दिल्ली के अपोलो स्पैक्ट्रा अस्पताल में द एडवांस्ड मल्टी रोबोट सर्जिकल प्रोग्राम में आए थे। वहां हमने उनसे एथलीट के मेंटल लेवल से लेकर उनकी इंजरी के बारे में बात की।
इस पेज पर:-
अभिनव बिंद्रा से मेंटल हेल्थ और एथलीट की इंजरी और प्रेशर से जुड़े सवाल
सवाल: जब भी आप शूटिंग में हिस्सा लेते थे, तब अपने मेंटल लेवल को कैसे रिसेट करते थे, ताकि पूरा ध्यान सिर्फ खेल पर ही रहे?
अभिनव बिंद्रा: मैं हमेशा वर्तमान में रहता हूं और शूटिंग के समय न तो मैं past और न ही future के बारे में सोचता हूं। हालांकि इस तरह का फोकस एकदम नहीं होता, क्योंकि यह कोई मशीन का बटन नहीं है, जो तुरंत हो जाएगा। यह एक तरह का स्किल है, जो धीरे-धीरे विकसित होता है। इसमें सबसे ज्यादा दिलचस्प यह है कि इसे आप फील्ड ऑफ प्ले पर जितना सीखते हो, उससे ज्यादा आपको इसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में प्रैक्टिस करना पड़ता है। यही सोच मैं अपने साथ भी रखता हूं। इसका मतलब है कि जो आप मैदान के बाहर करते हैं, वही आप मैदान में लेकर जाते हैं। इसलिए मैं हमेशा रोजमर्रा के कामों में भी mindfulness की प्रैक्टिस करता हूं।

यह भी पढ़ें- गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा ने विपश्यना को बताया फायदेमंद, जानें क्या है ये मेडिटेशन और इसके फायदे
सवाल: खेल के प्रेशर को निपटने के लिए आप क्या करते थे?
अभिनव बिंद्रा: मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से मेरा अनुभव यह था कि प्रेशर कुछ ऐसा है जिसे आप वास्तव में खत्म नहीं कर सकते। प्रेशर हमेशा रहेगा चाहे खेल में हो या फिर कोई भी सेक्टर हो। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे स्वीकार किया जाए और इसके साथ रहना सीखा जाए। मुझे लगता है कि मानव स्वभाव है ऐसा है कि जब हम दबाव का सामना करते हैं तो हम इससे भागने की कोशिश करते हैं क्योंकि यह कंफर्टेबल है, लेकिन जिस पल आप इसे स्वीकार कर लेते हैं, आप बस इसके साथ काम करना सीखते हैं और यह आप में से सर्वश्रेष्ठ बाहर लाता है।
सवाल: खेलों में एथलीट को चोट का डर सबसे ज्यादा रहता है? आपकी एथलीट्स को क्या सलाह है ताकि उन्हें चोट कम से कम लगे?
अभिनव बिंद्रा: एथलीट की जिंदगी में चोट लगना आम है। हालांकि लोगों को लगता है कि एथलीट बहुत फिट होते हैं, लेकिन उन्हें कई बार ऐसी चोट लग जाती है, जो खिलाड़ी का भविष्य तक तय कर देता है। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि जो स्पोर्ट्स asymmetrical होते हैं, यानी शरीर का एक हिस्सा दूसरे से ज्यादा काम करता है, तो उन्हें चोट से बचने की बहुत जरूरत होती है। इसलिए ऐसे खेलों में खासतौर पर बैलेंस बनाने के लिए एथलीट को बहुत काम करना पड़ता है। दरअसल शरीर का एक हिस्सा बहुत ज्यादा इस्तेमाल हो जाता है, तो उस हिस्से को रिकवर करना और शरीर का दूसरा हिस्सा जो कम इस्तेमाल होता है, उसे मजबूत रखना बहुत जरूरी है। इस तरह से ही एथलीट खुद को चोट से बचा सकते हैं। इसके साथ-साथ एथलीट की ट्रेनिंग के साथ उनका रिहैबिटेशन को भी प्राथमिकता देना बहुत जरूरी है। इसलिए हमेशा इंजरी को रोकने पर काम किया जाना चाहिए , न कि सिर्फ इंजरी होने पर काम करना चाहिए।

यह भी पढ़ें- सर्दियों में बढ़ सकता है लकवा का खतरा, इन तरीकों से करें अपना बचाव
सवाल: एथलीट्स की मेंटल हेल्थ पर आपका क्या कहना है?
अभिनव बिंद्रा: मुझे लगता है कि एथलीट्स को लेकर एक गलतफहमी रहती है कि दुनिया हमें किसी भी तरह की मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं के प्रति इम्यून मानती है। लेकिन बहुत ईमानदारी से कहूं तो, एक एथलीट का जीवन भी काफी चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि हम रोजाना के प्रेशर का सामना करते हैं। हमें असफलता से निपटना होता है। हमें सफलता से निपटना होता है। कॉम्पिटिशन का प्रेशर होता है। लगातार सफर करने से नींद पूरी नहीं होती। तो एक एथलीट के करियर में भी कई red flags होते हैं, जो उन्हें मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं के प्रति सेंसिटिव बनाते हैं। मुझे लगता है कि हम कभी-कभी यह भूल जाते हैं कि एथलीट होने से पहले, हम इंसान हैं और एथलीट के तौर पर हम कभी-कभी अपना ख्याल रखना भूल जाते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि human well being को परफोर्मेंस का केंद्र बनाना चाहिए।
सवाल: भारत में छोटे शहरों या गांवों में स्कूलों और कॉलेजों में मेडिकल सपोर्ट कैसे दिया जा सकता है?
अभिनव बिंद्रा: मुझे लगता है कि इस ओर फोकस करने की बहुत जरूरत होती है और सुधार भी धीरे-धीरे हो सकता है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि छोटे-छोटे गांव में सब बढ़िया है, लेकिन पॉजिटिव बदलाव देखने को मिल रहा है और मैं मानता हूं कि हमें इस पर ध्यान देने की जरूरत है और यही उम्मीद है कि हमारे स्कूल और कॉलेज खेल व्यवस्था को आगे ले जा सकते हैं।
अभिनव बिंद्रा को 18 साल की उम्र में ही राजीव गांधी खेल रत्न सम्मान मिला था और यह सम्मान पाने वाले वह सबसे कम उम्र के एथलीट थे। इसके अलावा, उन्हें देश के सबसे बड़े सम्मान पद्मभूषण से नवाजा गया है और आजकल अभिनव बिंद्रा फाउंडेशन के जरिए वह जमीनी स्तर पर खेलों को बढ़ावा देना और एथलीटों के मेंटल हेल्थ से लेकर उन्हें ट्रेनिंग देने का समर्थन कर रहे हैं।
यह विडियो भी देखें
How we keep this article up to date:
We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.
Current Version
Dec 11, 2025 20:23 IST
Published By : Aneesh Rawat