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Mother's Day 2025: प्रेग्नेंसी की दिक्कतों के बाद पल्लवी को पोस्टपार्टम डिप्रेशन ने भी किया था परेशान, परिवार के सपोर्ट ने बढ़ाया हौसला

True Story of Postpartum in Hindi: बच्चे की डिलीवरी के बाद माताएं आमतौर पर पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजरती हैं, और उन्हें इसका एहसास भी नहीं होता। लेकिन पल्लवी जैन ने इस समस्या को समझा और सुलझाया भी, इस लेख में उनकी कहानी जानें।
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Mother's Day 2025: प्रेग्नेंसी की दिक्कतों के बाद पल्लवी को पोस्टपार्टम डिप्रेशन ने भी किया था परेशान, परिवार के सपोर्ट ने बढ़ाया हौसला


True Story of Postpartum in Hindi: महिलाओं को प्रेग्नेंसी में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, लेकिन अक्सर उनका मानना होता है कि डिलीवरी के बाद सब नार्मल हो जाएगा। हालांक कई मामलों में ऐसा नहीं हो पाता, क्योंकि डिलीवरी के बाद महिलाएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजरती हैं। वे अपनी नन्हीं सी जान की देखभाल करने में इतना समय लगा देती हैं, कि खुद के भीतर चल रहे है इस इमोशनल ट्रामा को समझ ही नहीं पाती। इस मामले में मॉम ब्लोगर पल्लवी काफी खुशकिस्मत रहीं। मदर्स डे (Mother’s Day) के मौके पर हम Maa Strong Campaign लेकर आएं हैं, जिसमें हम मॉम ब्लॉगर्स की प्रेग्नेंसी से जुड़ी सच्ची कहानियां बताएंगे, जिन्होंने अपनी समस्याओं को समझा और उसका समाधान भी निकाला। आज पल्लवी जैन की पोस्टपार्टम डिप्रेशन से निकलने की जर्नी जानते हैं। 

प्रेग्नेंसी के दौरान पल्लवी थी काफी परेशान

33 साल की बैंगलरु में रहने वाली पल्लवी आज दो साल की प्यारी सी बेटी की मां है। जब हमने उनसे प्रेग्नेंसी से जुड़े सफर की चर्चा की, तो उन्होंने बताया, “मेरी प्रेग्नेंसी काफी मुश्किलों भरी थी। दरअसल, मेरा प्लेसेंटा काफी लो था, तो डॉक्टर ने शुरुआत में ही कह दिया था कि मेरी डिलीवरी सर्जरी से ही होगी। इसके अलावा, मैंने पूरी प्रेग्नेंसी सिर्फ बैड रेस्ट ही किया। इस कारण मुझे काफी तकलीफ हुई। जब भी डॉक्टर के पास चेकअप के लिए जाती थी, तो मुझे डर ही लगता था कि कहीं कोई और समस्या न हो जाए। लो प्लेसेंटा के कारण मेरे बेबी का वजन नहीं बढ़ रहा था, तो डॉक्टर ने समय से पहले डिलीवरी होने के लिए भी तैयार रहने को कहा था। इतनी सारी परेशानियों के बीच सबसे अच्छी बात यह रही थी कि मेरी 39वें हफ्ते में डिलीवरी हुई।”

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डिलीवरी के बाद पल्लवी हुई इमोशनल

पल्लवी उस समय को याद करते हुए बताती हैं, “हालांकि मेरी प्रेग्नेंसी काफी मुश्किल थी, लेकिन मैं वो सब दिक्कते भूल गई, जब मैंने अपनी बेटी को गोद में लिया। मैं इतनी ज्यादा इमोशनल हो गई कि आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। जब पहली बार बेटी गोद में थी, तो ममता में मैं भूल ही गई कि मेरी सर्जरी हुई है और मेरा शरीर अभी भी रिकवरी में है। उस समय मुझे लग रहा था कि बेटी का जो वजन कम है, उसे मैं ब्रेस्टफीडिंग से बढ़ा दूंगी। उस वक्त मैं यह अंदाजा नहीं लगा पा रही थी कि आगे का सफर थोड़ा और मुश्किल होने वाला है।”

ब्रेस्टफीड में हुई पल्लवी को हुई दिक्कत

पल्लवी उस समय को सोचकर कहती हैं, “जब मेरी बेटी रोती थी, तो मैं ब्रेस्टफीड कराने की कोशिश करती थी, लेकिन उससे बेटी की भूख नहीं मिटती थी। मेरा ब्रेस्टफीड इतना नहीं था कि उससे पूरा दिन मेरी बेटी का पेट भरा रहे। डॉक्टर ने सलाह दी कि इसे फार्मूला मिल्क देना पड़ेगा, क्योंकि बच्ची का पेट भरना पहली प्राथमिकता थी। मैं ब्रेस्टफीड करवा सकूं, इसके लिए मैं पौष्टिक खाना भी खाती थी, पर मिल्क ही नहीं हो पा रहा था। इससे मैं इमोशनली काफी परेशान रहने लगी थी कि मैं अपनी बेटी का पेट तक नहीं भर पा रही हूं। वो पहले से ही काफी कमजोर है, इसके बावजूद मुझे फार्मूला मिल्क देना पड़ रहा है।”

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पोस्टपार्टम डिप्रेशन का हुई शिकार

पल्लवी कहती हैं, “शायद बेटी को ब्रेस्टफीड न कर पाना, नींद पूरी न होना, खुद के लिए समय न होना, बाल झड़ना और सर्जरी के कारण शरीर में दर्द के चलते मुझे हर समय रोने का मन करता था। मैं सारा दिन रोती ही रहती थी। मैं सारा दिन बस सोचती रहती कि ऐसा सिर्फ मेरे साथ ही हो रहा है। मुझे किस बात की सजा मिल रही है। अब याद करती हूं तो लगता है कि उस समय मैं पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजर रही थी, जो मुझे समझ नहीं आ रहा था। मैं सारा दिन घर पर बेटी के साथ ही रहती, कहीं बाहर नहीं जा पाती थी। इस वजह से उस समय मैं इमोशनली काफी कमजोर हो गई थी।”

पोस्टपार्टम डिप्रेशन से बाहर आने में परिवार का सपोर्ट रहा

पल्लवी बताती हैं, “काफी दिनों तक परेशान रहने के बाद मैंने अपने पति से बात की और उन्हें अपनी समस्या बताई। वह बेटी को रात में संभालने लगे, जिससे मेरी नींद पूरी होने लगी। मुझे सिरदर्द और शरीर के दर्द से राहत मिलने लगी। मेरी सास ने इस समय मुझे बहुत सपोर्ट किया। उन्होंने मेरा और बेटी का बहुत ध्यान रखा। वह बेटी के कई काम कर देती थी, जिससे मुझे अपने लिए समय मिलने लगा। मैंने समय के साथ यह भी स्वीकार कर लिया कि बेटी का पेट भरने के लिए मुझे फार्मूला मिल्क देना ही पड़ेगा। तीन महीने बाद मैंने वर्कआउट शुरू किया। इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा। कुछ समय के लिए बेटी को घर पर छोड़कर जाती थी, ताकि मैं खुद को कुछ समय दे सकूं। इस तरह मैंने खुद को पोस्टपार्टम डिप्रेशन से बाहर निकाला और इसके लिए मैं हमेशा अपने पति और सास की आभारी रहूंगी कि उन दोनों की वजह से मैं आज आत्मविश्वासी मां बन सकी हूं।”

 

 

 

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पोस्टपार्टम को लेकर नई माताओं के लिए सलाह

पल्लवी कहती हैं, “मॉम ब्लोगर होने के नाते मैं सभी नई माताओं को कहना चाहूंगी कि खुद के लिए समय जरूर निकालें और इस समय में अपनी मनपसंद किताब पढ़ें, सीरीज देखें या फिर डायरी में कुछ लिखें। जो भी आपको पसंद हैं, वो काम करें। इस तरह खुद को समय देने से पोस्टपार्टम डिप्रेशन को कम करने में मदद मिलती है। दिन-रात सिर्फ बच्चे की देखभाल में ही न गुजारें, बल्कि इसमें परिवार की मदद लें। इसके अलावा, परिवार को अपनी समस्या बताएं और उनका सपोर्ट लें।”

 

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