
दुनिया हर साल 3 दिसंबर को International Day of Persons with Disabilities यानी अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस मनाती है। यह एक विशेष दिन है, जो Disable लोगों की गरिमा, उनके अधिकारों और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए और समाज में उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने साल 1992 में इसकी शुरुआत की थी, लेकिन आज 33 साल बाद भी कई Disable लोगों को अपनी स्थिति से ज्यादा समाज के व्यवहार से लड़ना पड़ता है।
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इस लेख में हम आपको ऐसे ही एक शख्स से मिलावा रहे हैं, जिन्हें बहुत कम उम्र में एक हादसे में अपना हाथ खोना पड़ा। इस हादसे ने उनकी जिंदगी का रास्ता बदल दिया, लेकिन उन्होंने रुकना नहीं चुना।
एक हादसा... जिसने जीवन का रास्ता बदल दिया
ये कहानी है रायबरेली के 28 वर्षीय नीरज मौर्या की।
बचपन से हम बिना सोचे समझे अपने शरीर का इस्तेमाल करते हैं। हम दौड़ते हैं, खेलते हैं, चीजें उठाते हैं, खाना खाते हैं… और हमें लगता है कि ये सब हमेशा ऐसे ही रहेगा। लेकिन कभी-कभी जिंदगी एक सेकंड में बदल जाती है। नीरज भी ऐसे ही थे। 22 साल की उम्र, गांव की खुली हवा, सपने और एक पूरा भविष्य सामने। लेकिन एक दिन 11000 वोल्ट का करंट लगा और उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा दुख उन्हें दे गया।
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हादसे के बाद उनकी दुनिया वहीं रुक गई। पहले लगा शायद कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा। शुरुआत में उन्हें लगा कि बस उंगलियों तक असर होगा। लेकिन धीरे-धीरे पूरा हाथ काम करना बंद कर चुका था। डॉक्टरों ने साफ कहा कि हाथ काटना पड़ेगा, वरना इन्फेक्शन जानलेवा हो सकता है।
परिवार के लिए ये फैसला बेहद कठिन था। लेकिन कोई विकल्प नहीं था, इसलिए नीरज ने हिम्मत दिखाई और अपना हाथ कटवाने का फैसला लिया।
उस दिन सिर्फ नीरज का एक हाथ नहीं गया था, उनके अंदर का वो हिस्सा भी टूट गया था, जो खुद को बेबस देखना नहीं चाहता था। हादसे के बाद सबसे मुश्किल था दूसरों पर निर्भर होना, लोगों की नजरें झेलना, और वो चुप्पी… जिसमें कभी ताने छिपे होते थे और कभी दया।

हादसे के बाद शुरू हुआ असली संघर्ष
हाथ खोने के बाद नीरज को सिर्फ शारीरिक कमी नहीं झेलनी पड़ी, बल्कि मानसिक और सामाजिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। कटे हुए हिस्से में इंफेक्शन हो गया। बदबू इतनी तेज थी कि परिवार और आसपास के लोग दूरी बनाने लगे थे। यह स्थिति नीरज के लिए बेहद अपमानजनक और दर्दनाक थी। इस दौरान वे टूटने लगे और कई बार खाना-पीना भी छोड़ देते थे। उन्हें लगने लगा कि जिंदगी जैसे एकदम रुक गई है।
सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि हर काम के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता था।
छोटे-छोटे काम, जो पहले बिना सोचे किए जाते थे, अब किसी और के इंतजार पर निर्भर थे। गांव में रहने के कारण जब भी उन्हें शहर जाना होता था, उन्हें किसी से मदद मांगनी पड़ती थी।
और हर बार जवाब मिलना आसान नहीं होता था। नीरज बताते हैं कि लोग कई बार कहते थे, "आज व्यस्त हैं… कल चलेंगे" और यह सुनकर उन्हें सबसे ज्यादा चोट पहुंचती थी।
जब बदलने लगीं लोगों की नजरें और व्यवहार
जिंदगी का एक मुश्किल सच यह भी था कि हादसे के बाद समाज का नजरिया उनके प्रति बदल गया। नीरज बताते हैं, “जब आप किसी अंग से लाचार हो जाते हैं, तो समाज आपको वो सम्मान नहीं देता। हम कहीं जाते थे, तो लोग हमें बहुत अलग नजर से देखते थे और अलग समझते थे। अगर आप किसी से किसी चीज में पीछे रह गए, तो समाज में उतनी इज्जत नहीं मिलती, जितनी नॉर्मल इंसान को मिलती है।”
अजनबियों के व्यवहार को वे समझ भी लेते थे, लेकिन जब कभी-कभी परिवार के लोग भी मदद करते हुए थक जाते थे या मन में असहजता महसूस करते थे, तो वह चुभता था। नीरज कहते हैं, “इग्नोर करने लगते हैं लोग, चाहे जितना खास हो या अपने घर का ही हो... फिर भी उनके अंदर कभी न कभी ये भावनाएं आ जाती हैं… खासकर जब वो गुस्से में हों, तो उनके मुंह से भी ऐसी बातें निकल जाती थीं, जो आहत करती थीं।”
ये सब नीरज को अंदर से तोड़ रहा था।
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Prosthetic Hand ने दी नई उम्मीद
एक दिन नीरज को लखनऊ के एक डॉक्टर से एक मेडिकल कैंप की जानकारी मिली। वहां उनकी मुलाकात डॉक्टरों से हुई, जिन्होंने उन्हें Prosthetic Hand के बारे में बताया। पहले उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसा भी संभव है कि वो फिर से खुद से रोजमर्रा के काम कर पाएंगे। कई टेस्ट हुए, हाथ का माप लिया गया और लगभग एक महीने बाद उन्हें दोबारा बुलाया गया।
वो पल शायद उनकी जिंदगी का सबसे भावुक पल था… जब कई दिनों की डर, उदासी और उम्मीद के बीच अंत में उन्होंने अपने हाथ की जगह एक नया Prosthetic Hand पहना। हॉस्पिटल में उन्हें 4-5 दिन ट्रेनिंग दी गई कि इसे कैसे इस्तेमाल करना है, कैसे संभालना है, कैसे धीरे-धीरे इसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाना है।
यहीं से उनकी जिंदगी बदलनी शुरू हुई।
Prosthetic Hand से लौट आया आत्मविश्वास
Prosthetic Hand लगने के बाद सबसे बड़ा बदलाव यह था कि नीरज फिर से आत्मनिर्भर हो गए। अब वे खुद बाइक चलाते हैं। हालांकि गति सीमित रखते हैं, लेकिन अब उन्हें किसी से मदद मांगने की जरूरत नहीं पड़ती। यही नहीं, लोगों का उनके प्रति नजरिया भी बदल गया। कई लोग पहली नजर में पहचान भी नहीं पाते कि उनका हाथ कृत्रिम है।
घर में माहौल बदला और जिंदगी फिर से सामान्य होने लगी।

हादसे के बाद परिवार को उनकी शादी की चिंता थी, लेकिन Prosthetic Hand लगने के बाद धीरे-धीरे चीजें बदलीं। हाल में करीब छह महीने पहले नीरज की शादी भी हो गई और नीरज बताते हैं कि वो बहुत खुश हैं कि उन्हें एक ऐसा जीवनसाथी मिला है, जो समझता है, साथ देता है और उनके साथ हर कदम पर खड़ा है। आज नीरज पढ़ाई कर रहे हैं और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं।
प्रेम और भाव से ही समाज चलता है
नीरज की कहानी यह साबित करती है कि तकनीक इंसान को शारीरिक रूप से सक्षम बना सकती है, लेकिन उसे मानसिक और सामाजिक रूप से सबल बनाने के लिए मानवीय संवेदना की जरूरत होती है। अपने संघर्ष और समाज के रवैये को देखने के बाद नीरज एक बहुत बड़ी बात कहते हैं, "प्रेम और भाव से ही समाज चलता है"।
अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर नीरज का यह संदेश हमें याद दिलाता है कि दिव्यांग जनों को केवल कृत्रिम अंगों (Prosthetics) की ही नहीं, बल्कि हमारे और आपके सहयोग, सम्मान और प्रेम की भी उतनी ही आवश्यकता है। अगर 'सही दिशा, सही लोग और सही तकनीक' साथ मिल जाएं, तो दिव्यांग जनों का जीवन भी बहुत आसान और सामान्य हो सकता है।
आइए इस अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर हम और आप ये संकल्प लें कि कभी भी किसी दिव्यांग का मजाक नहीं बनाएंगे और जितना संभव हो सके, उनकी मदद करेंगे। अगर आपको नीरज की ये कहानी पसंद आई, तो इसे अपने दोस्तों और परिचितों के साथ शेयर करें। सेहत और स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियों के लिए पढ़ें ओनलीमायहेल्थ। हम यहां हर रोज न सिर्फ आपको स्वस्थ रहने से जुड़ी जानकारियां देते हैं, बल्कि रोगों और समस्याओं को समझने और इनके बेहतर इलाज से जुड़ी जानकारियां भी देते हैं।
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Dec 03, 2025 11:12 IST
Modified By : Anurag GuptaDec 03, 2025 11:12 IST
Published By : Anurag Gupta