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50 की उम्र में सुजाता ने दी स्टेज 3 ब्रेस्ट कैंसर को मात, जानें कीमो से लेकर रेडिएशन थेरेपी तक की जर्नी

50 की उम्र में ब्रेस्ट कैंसर का पता चलने पर सुजाता ने खुद को पॉजिटिव रखते हुए इलाज कराया। आइये जानते हैं उनकी जर्नी।
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50 की उम्र में सुजाता ने दी स्टेज 3 ब्रेस्ट कैंसर को मात, जानें कीमो से लेकर रेडिएशन थेरेपी तक की जर्नी


Breast Cancer Awareness Month: सोशल मीडिया और टीवी के जरिए ब्रेस्ट कैंसर को लेकर काफी जानकारियां दी जाती है। इसी वजह से शायद महिलाओं में इसे लेकर काफी जागरूकता है। शहरों और कस्बों में खासतौर पर महिलाएं खुद ही ब्रेस्ट को चेक करके कैंसर की जांच कर लेती है। ब्रेस्ट कैंसर को लेकर महिलाएं कितनी सचेत हैं और किस तरह इलाज के दौरान खुद को पॉजिटिव रखती है। इसकी एक मिसाल पेश की है, 50 साल की सुजाता पोहले ने (Breast Cancer Survivor), जिन्हें ब्रेस्ट कैंसर स्टेज 3 था और उन्होंने कैसे इसे मात दी। उनकी जर्नी को आगे जानेंगे। ब्रेस्ट कैंसर के प्रति सचेत कराने के लिए ही हर साल अक्टूबर के महीने को ब्रेस्ट कैंसर जागरुकता माह (Breast Cancer Awareness Month) मनाया जाता है। इस महीने कैंसर से जुड़ी जानकारी लोगों तक पहुंचाई जाती है। इसके साथ महिलाओं की ऐसी कहानियां बताई जाती है, जिन्होंने ब्रेस्ट कैंसर को मात दी है। आज सुजाता ब्रेस्ट कैंसर को हराकर आज सामान्य जिंदगी बिता रही हैं। ब्रेस्ट कैंसर के प्रति जागरूकता के चलते ही उन्हें इसके लक्षणों की पहचान हुई। 

खुद ही लगा लिया पता 

50 साल की उम्र में भी सुजाता पोहले अपनी सेहत को लेकर हमेशा सचेत रहती है। कैंसर की जानकारी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा,”एक दिन नहाते हुए मैंने नोटिस किया कि मेरे स्तनों में कुछ सख्त सी गांठ थी। इसके साथ मैंने ये भी देखा कि मेरी ब्रेस्ट का आकार और साइज में भी बदलाव हुआ है।” ये नोटिस करने के बाद सुजाता ने इन लक्षणों को अनदेखा न करके डॉक्टर से सलाह लेने की सोची। इसलिए उन्होंने पुणे के जुपिटर अस्पताल की ब्रेस्ट कैंसर सर्जरी विभाग की कंस्लटेंट डॉ. शिल्पी डोलास से मुलाकात की। 

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Breast cancer survivor story dr shillpy dolas

डॉक्टर ने करवाए टेस्ट 

डॉ. शिल्पी ने सुजाता के लक्षणों को सुनने के बाद उनकी गांठ चेक की। इस बारे में डॉ. शिल्पी कहती हैं, “गांठ देखने के बाद मैंने सुजाता को मेमोग्राम और अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह दी, ताकि गांठ को और बेहतर तरीके से समझा जा सके। इस जांच से पता चला कि गांठ की बॉयोप्सी कराना जरूरी है। मैंने ही सुजाता की बॉयोप्सी की और पता चला कि वह ट्रिपल नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर (triple-negative breast cancer) से जूझ रही थी। ये काफी अग्रेसिव और चुनौतीभरा सबटाइप होता है।”

इलाज के दौरान सुजाता रही पॉजिटिव

कैंसर शरीर के किस भाग तक फैला है, ये जानने के लिए डॉ. शिल्पी ने पीईटी-सीटी स्कैन (PET-CT) करवाया। स्कैन से कंफर्म हो गया कि सुजाता को स्टेज 3 ब्रेस्ट कैंसर था। हालांकि कैंसर एडवांस स्टेज पर था, लेकिन इसका इलाज किया जा सकता था। इस दौरान सुजाता पूरी तरह से पॉजिटिव तरीके से डॉ. शिल्पी का साथ दे रही थी। सुजाता ने बताया, “ मुझे पता था कि अब मेरी मुश्किल घड़ी शुरू हो चुकी है, लेकिन मैं अपने इलाज को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थी। डॉ. शिल्पी और उनकी टीम ने मुझे इलाज की पूरी प्रक्रिया समझाई। उन्होंने बताया कि कीमोथेरेपी के जरिए ट्यूमर को छोटा किया जाएगा। इसके बाद सर्जरी की जाएगी और फिर रेडिएशन थेरेपी के जरिए मैं बिल्कुल कैंसर फ्री हो जाऊंगी।” 

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इलाज के साथ ब्रेस्ट की प्लास्टिक सर्जरी की

कीमोथेरेपी के बाद डॉ. शिल्पी ने ब्रेस्ट की रिकंस्ट्रशन के जरिए ओन्कोप्लास्टिक सर्जरी भी प्लान की। इस प्रक्रिया में कैंसर सर्जरी के साथ कोस्टमेटिक सर्जरी की जाती है, ताकि उनके स्तनों का प्राकृतिक रूप बरकरार रहे। डॉ. शिल्पी कहती है, “ऑन्कोलॉजिस्ट प्रतीक पाटिल और एनेस्थेसिया टीम ने सुजाता को काफी हद तक सामान्य कराने में मदद की और सुजाता ने भी सर्जरी से पहले और बाद में हमें पूरा सहयोग दिया। सर्जरी के दौरान उनमें कीमोपोर्ट डाला गया ताकि कीमोथेरेपी देना आसान हो जाए। सर्जरी सफल रही और सुजाता को जो ब्रेस्ट लगाए गए, वह भी बिल्कुल सामान्य लग रहे थे।”

सुजाता ने कहा, “मैंने सोचा था कि ब्रेस्ट दोबारा लगाने पर शायद वह प्राकृतिक न लगे, लेकिन ये नार्मल लग रहे थे। ये देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। इसके बाद डॉ. विकास कोठावडे ने मेरी रेडिएशन थेरेपी की। हालांकि ये थेरेपी मेरे लिए मुश्किल रही लेकिन कैंसर की जंग से लड़ने के लिए मैं मजबूती से खड़ी थी।”

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पूरी तरह से जीवन सामान्य हुआ

थेरेपी पूरी होने के बाद सुजाता पोहले अब बिल्कुल सामान्य जीवन बिता रही हैं। वह कहती है,”मुश्किल भरा लंबा समय अब बीत चुका है। मैंने हर चुनौती का डटकर सामना किया और अब मैं जिंदगी के हर पल को अपनों के बीच जी रही हूं। कैंसर की इस जर्नी ने मुझे बहुत मजबूत बनाया है और डॉ. शिल्पी की टीम ने मेरा सहयोग किया और मुझे मानसिक रूप से मजबूत किया।  मैं सभी को सलाह दूंगी कि कैंसर के लक्षणों पर नजर रखें और ये भी याद रखें कि मेडिकल तकनीक के जरिए बीमारी का इलाज हो सकता है। साथ आप हमेशा उम्मीद जरूर बनाए रखें।”

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